Sunday, 9 February 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 10th February, 2020 at YouTube

          महोदय, एक गणतांत्रिक देश और एक स्‍वतंत्र व्‍यक्ति की मर्यादा को प्रतिष्ठित करने में जनसंचार का महत्‍वपूर्ण सहयोग रहता है और गणतांत्रिक अधिकार संरक्षण में एक जिम्‍मेवार अभिभावक की तरह काम करता है।  बशर्ते इसे सटीक और नियोजित तरीके से प्रयोग किया जाए।  इसिलए माध्‍यमों को निष्‍पक्ष, नि:स्‍वार्थ और जनमुखी होना भी आवश्यक हो जाता है।  अगर ऐसा नहीं हुआ तो एक प्रगतिशील, स्‍वस्‍थ और संस्‍कृति-निष्‍ठ मनुष्‍य को जन्‍म देने में देश कभी सफल नहीं होगा।  देश और देश में रहने वालों के बीच ये एक सेतु की तरह काम करता है।  दूसरी ओर निेडर, निरपेक्ष और जागरूक नागरिक गढ़ने में भी जनसंचार, बलिष्‍ठ हथियार के रूप में स्‍वीकृत है।  गणतंत्र के आश्रय में एक नायक तंत्र के विनाश में और गणतांत्रिक देश के पतन को टालने में जनसंचार बहुत प्रभावशाली भूमिका निभाता है।  दुख की बात तो यह है कि इन दिनों राजनीति की खींचतान में व्‍यक्ति अधिकार और स्‍वाधीनता की भावनाएँ मित्र रूप ले रही हैं।  अब खुलकर गणतांत्रिक अधिकार की बात करने का मतलब किसी एक दल या समूह के पक्ष में बात करना जैसा हो गया है जैसे इस अधिकार रक्षा का उत्‍तरदायित्‍व उसने स्‍वयं ले लिया हो और इसका एक ही कारण है, नागरिक अधिकार जिसे हमने संविधान के तहत प्राप्‍त किया है, उसका लगातार दुरुपयोग होते-होते हम गणतंत्र को ही संदेह की दृष्टि से देखने लगे हैं।  पर मैं यह भी नहीं कहना चाहूँगा कि देशवासियों की चेतना और मानसिकता में राजनीति अछूती रहे।  बल्कि मैं तो कहूँगा कि राजनीतिक शिक्षा के बिना गणतंत्र और स्‍वाधीनता अचल है।  इसके लिए आवश्‍यक नहीं कि अपनी राजनीतिक भावना लेकर किसी एक दल का सदस्‍य होना पड़ेगा।  यह राजनीतिक शिक्षा स्‍वयं के लिए अपने मानसिक विकास के लिए।  अत: वह किसी एक दल से प्रतिबद्ध नहीं भी हो सकती है।
    देश के नागरिक अगर राजनीतिक चेतना प्रवाह से अपने को अलग रखें तो यह गणतंत्र के लिए खतरे का कारण बन जाएगा।  क्‍योंकि मात्र मतदान ही बड़ी बात नहीं है।  असल बात तो यह है कि मतदान किसके पक्ष में दिया जा रहा है, नहीं दिया जा रहा है इसका हमें समुचित ज्ञान होना चाहिए।  वरना मतदान का उद्देश्‍य ही अर्थहीन हो जाएगा।  यह बात मैं इसलिए कह रहा हूँ कि विश्‍व में सबसे ज्‍यादा मतदान भारत में होता है।

Wednesday, 5 February 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 6th February, 2020 at YouTube


महोदय,  गणतंत्र में जनसंचार के महत्‍व के विषय में कुछ कहने से पहले यह देखना आवश्‍यक है कि गणतंत्र में कौन-कौन से अधिकार स्‍वीकृत हैं।  देश का नागरिक होने के नाते एक नागरिक कौन-से अधिकार या सुविधा की आशा कर सकता है और तभी हम इसे स्‍पष्‍ट कर सकेंगे कि उन सुविधाओं अर्थात् जन गणतंत्र की पुष्टि के लक्ष्‍य में जन-संचार को क्‍या और कैसी भूमिकाएँ निभानी चाहिए।  हम सब जानते हैं कि 26 जनवरी, 1930 को देश में सर्वत्र पूर्ण स्‍वराज दिवस मनाया गया था।  इसके बीस वर्ष बाद यानी 1950 के 26 जनवरी को प्रजातंत्र भारत का जन्‍म हुआ।
    भारत का संविधान मानवाधिकार, न्‍याय और एकता पर आधारित है।  इसमें भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्‍लेख किया गया है।  भारत देश में जन्‍म के साथ-साथ ही एक व्‍यक्‍ति कानून की नजर में समानाधिकार का हकदार बन जाता है।  धर्म, जाति, लिंग और जन्‍मस्‍थान के तहत उनके ऊपर किसी भी विधि निषेध का आरोप नहीं किया जाएगा।  नौकरी के क्षेत्र में उन्‍हें बराबर सुविधाएँ मिलेंगी।  कोई छूत-अछूत नहीं रहेगा।  नागरिकों को अपनी भावनाओं को व्‍यक्‍त करने की स्‍वतंत्रता रहेगी।  निरस्‍त्र जनगण शांतिपूर्ण रूप से देश के किसी भी भाग में अथवा स्‍थान में आ-जा सकेंगे।  उन्‍हें मानव के रूप में क्रय-विक्रय नहीं किया जाएगा।  उनके ऊपर कोई दबाव नहीं डाला जाएगा।  बच्‍चों को कारखानों में नियुक्‍त नहीं किया जाएगा।  उनके अधिकार में होगा विवेक की स्‍वाधीनता, वे किसी भी धंधे को चुन सकते हैं, अपना सकते हैं।  उनके पास धर्माचरण की स्‍वाधीनता होगी आदि-आदि।  इन सबके साथ जिसके बलबूते पर एक गणतांत्रिक देश दृढ़ रहता है और राष्‍ट्रीय एकता अटूट रहती है जनगण की परस्‍पर सहयोगिता और योगदान आवश्‍यक है।  अत: इसकी स्‍थापना, प्रचार व प्रसार में जनसंचार की एक महत्‍वपूर्ण भूमिका है। एक विश्‍वस्‍त आशाकारी प्रतिनिधि की तरह जन संचार माध्‍यम चाहे वह दूरदर्शन हो, चाहे आकाशवाणी हो चाहे समाचार पत्र, देश और देशवासियों के बीच एक मशाल का काम करता है।  एक संपर्क का काम करता है और विशेष रूप से इस पर देश की एकता और अखंडता टिकी रहती है।  इस अर्थ में जन संचार का महत्‍व कुछ कम नहीं है।  दूरदर्शन, आकाशवाणी समाचार पत्र - ये सब गणतंत्र के सजग प्रहरी की तरह हैं, और एक महत्‍वपूर्ण माध्‍यम भी हैं।

Sunday, 2 February 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 3rd February, 2020 at YouTube


    उपाध्‍यक्ष महोदय, इन वि‍शेषज्ञों और ऐसे अन्‍य लोगों की भविष्‍यवाणियाँ एकदम गलत सिद्ध हुई हैं क्‍योंकि वे प्रत्‍येक समाज की व्‍याख्‍या यूरोपीय दृष्टिकोण से करने की कोशिश करते रहे हैं और भारत को अपने पूर्वानुमानित सिद्धांतों और चौखटों में फिट करने की कोशिश करते रहे हैं।  वे हमारी जनता की असाधारण समुत्‍थान शक्‍ति और आस्‍था तथा साहस के उनके अक्षय भंडार को देख पाने में असफल रहे हैं।  भारत में हमने जान-बूझकर अतिवादी स्थितियों को अपनाने से बचाव किया है।  हमें प्रत्‍येक परिस्थिति की विविधतओं की ओर ध्‍यान देना होता है।  हम अपने पूर्वजों द्वारा घोषित एक महनतम सत्‍य को सदा दृष्टिकोण में रखने का प्रयास करते हैं।  सत्‍य एक है परंतु विवेकीजन प्राय: उसके विविध रूपों का वर्णन करते हैं।  यह विश्‍वास कि सत्‍य तक पहुँचने के अनेक रास्‍ते हैं, हमारी सह-अस्तित्‍व की नीति का आधार है।  प्रत्‍येक राष्‍ट्र को अधिकार होना चाहिए कि वह अपनी सामाजिक पद्धति का अनुसरण करे और दूसरों द्वारा अपने ढंग से अनुसरण करने के अधिकार को स्‍वीकार करे।  एशिया और अफ्रीका तथा विश्‍व के बहुसंख्‍यक देशों ने हमारी जैसी विदेशी नीति अपनाई है और वे शांतिपूर्ण सह-अस्‍तित्‍व और गुट-निरपेक्ष के मार्ग पर चल रहे हैं।  अब यह बात और स्‍पष्‍ट रूप से मानी जा रही है कि विश्‍व-व्‍यवस्‍था सहयोग पर निर्भर करती है, इस बात पर निर्भर करती है कि हम छोटे-से-छोटे देश के प्रति भी समानता का व्‍यवहार करें और यह समझें कि विश्‍व बड़े-से-बड़े राष्‍ट्र से भी बड़ा है।
    किसी देश का आकार महत्‍वपूर्ण नहीं होता।  एक समय था, जब एक छोटे-से देश ने हमें आक्रांत किया था।  ऐसे भी उदाहरण मिल जाएँगे कि एक छोटे-से देश ने बहुत बड़े और शक्‍तिशाली देश का सफलतापूर्वक सामना किया और उसके इरादों को पूरा नहीं होने दिया।  इसका सर्वोत्‍तम उदाहरण वियतनामी जनता का संघर्ष है, जिसने शक्‍ति की सीमा को उजागर कर दिया है।  वियतनाम की जनता की पीड़ा से हमें गहरी हमदर्दी है और उनकी उद्वि‍तीय वीरता की हम सराहना करते हैं।  अपने आसपास हमने देखा है कि किस प्रकार त्‍याग और कष्‍ट सहिष्‍णुता की विजय बर्बरता और अत्‍याचार पर हुई, जिससे बांगलादेश का उदय हुआ।  प्रत्‍येक देश में ऐसे अनेक उज्‍जवल उदाहरण होंगे जो यह सिद्ध कर दिखाते हों कि मानव की आत्‍मा अजर-अमर है और यह ध्‍यान रखना है।

Sunday, 26 January 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 27th January, 2020 at YouTube

     उपाध्‍यक्ष महोदय, हमारी दार्शनिक विचारधारा सभी व्‍यक्‍तियों की समानता को स्‍वीकार करती है।  लेकिन वस्‍तुस्थिति यह है कि कई शताब्‍दियों से हमारा समाज जड़ और वर्गीकृत हो गया था जो न केवल समानता को नकार रहा था, बल्‍कि उसने कुछ ऐसे रीति-रिवाज भी शुरू किए जो बर्बर और अमानुषिक थे।  स्‍वाभाविक था कि हमारा राष्‍ट्रीय आंदोलन एक ऐसी सामाजिक क्रांति का अंग बनता जिसके अंतर्गत ऐसी बुराइयों पर योजनाबद्ध प्रहार होता।  जनता के मन में जो आकांक्षाएँ प्रसुप्‍त थीं, उन्‍हें सजीव बनाकर महात्‍मा गाँधी ने लाखों लोगों को स्‍वाधीनता संग्राम में सक्रिय बनाया।  बड़ी संख्‍या में स्त्रियों ने सभी स्‍तरों पर इस अभियान में भाग लेकर अपनी स्थिति को मजबूती दी और स्‍वातंत्र्योतर भारत के सार्वजनिक मामलों में अपना योगदान किया।  महात्‍मा गांधी हमारी आशा-आकांक्षाओं और हमारे राष्‍ट्र की असीम शक्‍ति के प्रतीक बन गए।  अगर जनता तरंग थी तो वह तरंग-Ük`ax थे।  अहिंसा का विचार विश्‍व को अविदित नहीं था, लेकिन उसे महात्‍मा गांधी की प्रतिभा ने सजीवता दी और एक अमूर्त सिद्धांत को एक सशक्‍त राजनैतिक अस्‍त्र में बदल दिया।  हमारे देश में और विश्‍व के अन्‍य अनेक भागों में बहुतों को संदेह था कि एक दलित जाति अहिंसक तरीके से साम्राज्‍यवाद को पछाड़ सकेगी।  लेकिन हमारी परिस्थितियों में और कोई रास्‍ता ही न था।  हमने यह सिद्ध कर दिखाया कि संकल्‍प और एकता जनता के सर्वोत्‍तम शस्‍त्र हैं। 
    स्‍वाधीनता-प्राप्‍ति के बाद एक बार फिर कुछ लोगों ने संदेह व्‍यक्‍त किया कि क्‍या हमारे जैसे विशाल ओर विविधतापूर्ण देश में हमारी राजनैतिक प्रणाली सफल हो पाएगी और क्‍या हम अपने यहाँ, जहाँ अनेक धर्म और अनेक प्रमुख भाषाएँ हैं, एकता को सुदृढ़ कर सकेंगे।  हम अनुभव करते हैं कि हमारी विविधता हमारे सांस्कृतिक जीवन को समृद्ध बनाती है और हमारी एकता को और अधिक मजबूती देती हैं।  हमने पाया कि समाज के विभिन्‍न अंगों को साथ रखने और फूट की ताकतों के इरादे असफल करने का सबसे अच्‍छा उपाय है - समस्‍याओं को मिल-बैठकर हल करने और संदेह या भय के मूल कारणों को दूर करने की इच्‍छा से प्रेरित होना।  ऐसे बहुत-से लोग हुए हैं जिनको भविष्‍य में बस सर्वनाश ही दिखाई देता था।  उनका कहना था, हम जिस पद्धति के अंतर्गत चल रहे हैं, उसमें हम आयोजनबद्ध विकास नहीं कर पाएँगे।  हम अपनी बढ़ती हुई जनसंख्‍या के लिए खाद्यान्‍न नहीं जुटा पाएँगे।

Friday, 17 January 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 19th January, 2020 at YouTube

अध्यक्ष महोदय, हमने राष्ट्रपति के अभिभाषण में “परायापन” शब्द के प्रयोग की चर्चा की है।  शायद सबसे ज्यादा खतरनाक परायापन उन युवाजनों के भ्रम-भंग के एहसास से पैदा होता है जो कि समर्थ और सक्षम होते हुए भी उत्पादक रोजगार से वंचित रहते हैं। यह एक आर्थिक त्रासदी है।  अगर हम अपने देशवासियों को अपने सामाजिक प्रबंधों के अंतर्गत स्थान नहीं दे सकते, तो हमारे लिए उनके विषय में अपनी चिंता की बात करने की कोई सार्थकता नहीं है।  लोग परायापन इसलिए अनुभव करते हैं कि उन्हें लगता है कि कोई उन्हें चाहता नहीं।  लेकिन परायापन महसूस करने वाले अन्य प्रकार के लोग भी होते हैं, जैसे नक्सलवादी जिनके लिए देशभक्ति एक मध्यवर्गीय उत्साह है जो ऐसे पिछले विश्ववादी हैं जिनके लिए हमारी जनता और हमारे देश के गुणों का आदर कर सकना संभव नहीं हो पाता।  इसके अलावा, कुछ हमारे ऐसे अति कुशल विशेषज्ञ आदि भी हैं जो यहाँ अपने लोगों के लिए बेहतर अवसरों का निर्माण करने के प्रयासों में होने वाली परेशानियाँ और निराशाएँ झेलने की बजाय विदेशों में अच्छे अवसरों तथा उच्चतर वेतनों के लिए जाना ज्यादा पसंद करते हैं।  मेरी हार्दिक इच्छा है कि जो लोग आज निराशा और परायापन का एहसास कर रहे हैं, उन्हें अंततः भारत अपनी ओर खींचने में सफल रहेगा ।
कुछ सदस्यों ने बेरोजगारों को भत्ते देने की चर्चा की है।  मैं नहीं समझता कि हमारे युवाजनों की समस्या उन्हें गुजारे के लिए भत्ता देकर हल की जा सकती है।  हम इन युवाजनों को पेंशन-भोगी न बनाएँ।  हम उन्हें दान या सरकारी सहयाता के आदी न बनाएँ।हम कोशिश करें कि उन्हें ऐसे अवसर मिलें जिससे वे सच्चा परितोष प्राप्त कर सकें। इसके लिए हमें अपने सभी संभव साधन जुटाने चाहिए तथा सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्रों में पूँजी-निवेश का स्तर बढ़ाना चाहिए।  योजना के पुनर्मूल्यांकन के दौरान हमें अपनी विकास योजनाओँ को रोजगारपरक बनाना चाहिए।  अगर हम आर्थिक विकास और योजनाओँ को तत्परता से लागू करने के ऊर्ध्‍व मार्ग पर बढ़ते रहे, तो स्थायी आधार पर उत्पादक रोजगार के पर्याप्त विस्तार का पथ प्रशस्त हो सकेगा।  लेकिन मैं उन लोगों में नहीं हूँ जो यह विश्वास पालते हुए चलते हैं कि आप योजना की चिंता कीजिए और रोजगार अपनी चिंता आप कर लेगा।  जब बेरोजगारी बहुत तीव्र और व्यापक हो, तो उससे निपटने के लिए हमें विशेष उपाय करने चाहिए।
अध्‍यक्ष महोदय,  ऐसे कार्यक्रमों की पहचान करके उन्‍हें विशेष गति देनी होगी जिनके द्वारा काफी ज्‍यादा रोजगार के अवसर उत्‍पन्‍न हों।  गत मई में इस सदन में जो पुनर्निर्धारित योजना प्रस्‍तुत की गई थी, उसमें इस प्रकार के कई कार्यक्रम शामिल हैं।  इन कार्यक्रमों को देश के अनेक बड़े भागों में कार्यान्‍वित भी किया जा रहा है, हालाँकि उनमें तेजी आने में कुछ समय लग सकता है।  योजना काल में इनके लिए 235 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।  इसके अतिरिक्‍त, छोटे किसानों तथा खेतिहर मजदूरों के लिए परियोजनाओं को 300 करोड़ रुपए तक की सहायता वित्‍तीय संस्‍थाओं से मिलेगी।  इसी प्रकार शुष्‍क भूमि कृषि कार्यक्रमों के लिए 150 करोड़ रुपए की सहायता की आशा की जा सकती है।  पिछले सप्‍ताह प्रस्‍तुत किए गए बजट में वित्‍त मंत्री ने ग्रामीण विकास की सत्‍तर योजनाओं के लिए 500 करोड़ रुपए के प्रावधान का संकेत किया है।  मैं जानता हूँ कि प्राय: प्रत्‍येक माननीय सदस्‍य ने इस छोटी राशि की ओर इशारा किया है।  मैं उन्‍हें याद दिलाना चाहूँगा कि इस योजना के अंतर्गत जो कार्यक्रम आते हैं, वे अतिरिक्‍त रोजगार संबंधी अन्‍य कार्यक्रमों के पूरक के रूप में ही हैं।  रोजगार के अवसर संपूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था द्वारा ही उत्‍पन्‍न होते हैं और आप एक संपूर्ण समस्‍या को एक ओर तथा उसे हल करने के अनेक उपायों में से एक को दूसरी ओर देखकर नहीं देख सकते।  मैंने अपने सार्वजनिक भाषणों में घोषणा की है कि कार्यक्रम शीघ्र आरंभ किए जाएँगे।  प्रधानमंत्री का कहना है कि 500 करोड़ रुपए की पूरी रकम सिर्फ कार्यक्रम के आयोजन में खर्च हो जाएगी।  इसलिए, मैं उनसे कहना चाहूँगा कि सभी आयोजन व अन्‍य तैयारियाँ पूरी की जा चुकी हैं और कार्यक्रम को कुछ ही दिन बाद लागू कर दिया जाएगा।
हम इसे और ज्‍यादा व्‍यापक कार्यक्रम का प्रारंभ बिंदु बनाना चाहते हैं।  इन कार्यक्रमों का उद्देश्‍य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के और अधिक अवसर बढ़ाना होगा।  लेकिन जिन कामों की परिकल्‍पना की गई, उनमें शिक्षितों को भी जैसे तकनीकीविदों, इंजीनियरों तथा अन्‍य शिक्षित बेरोजगारों को काम मिलेगा। लेकिन हमें यह पता है कि ऐसे अन्‍य कार्यक्रम तैयार करने की जरूरत बनी हुई है जिनके द्वारा और अधिक संख्‍या में शिक्षित बेरोजगारों को काम मिल सके।  इसके लिए शिक्षा और सार्वजनिक स्‍वास्‍थ जैसे क्षेत्रों में योजना लागत को बढ़ाने की आवश्‍यकता है ।  

Wednesday, 15 January 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 15th January, 2020 at YouTube


               अध्यक्ष महोदय, तेल के मामले को ही लीजिए।  मशीनें चलाने के लिए तेल की कमी में आपकी बहुत-सी मशीनें बिल्कुल बेकार हो जाएँगी।  अगर हम अपने देश में काफी तेल पैदा नहीं करते तो बड़ी-बड़ी मशीनें रुक जाएँगी।  उन्हें चलाने के लिए हमारे पास कुछ नहीं होगा।  अब हम एक गंभीर कठिनाई का उदारहण लेते हैं।  मान लीजिए कि फिलहाल हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं - यह सही दिशा देश का औद्योगीकरण है जो आर्थिक दृष्टि से और सुरक्षा के विचार से ठीक है।  लेकिन, औद्योगीकरण में समय लगता है।  आपके काफी मजबूत होने से पहले क्या होगा ? अगले दस वर्ष की अवधि में आप हराए जा सकते हैं।  “हम हमले के लिए तैयार नहीं हैं” आपके ऐसा चिल्लाने से शत्रु आप पर हमला करने से नहीं रुकेगा।  यह एक गंभीर समस्या है इसका सामना करना पड़ता है।  हम जब किसी समस्या पर ज्‍यादा सोचने लगते हैं तो मूल समस्‍या से हटकर हम असंगत बातों पर आ जाते हैं।  अगर आप आज के खतरे के बारे में बहुत ज्यादा सोचें और इसी पर ध्यान देते रहें तो परिणाम यह होगा कि आप कल या परसों कभी-भी, काफी मजबूत नहीं हो सकेंगे।  आपके साधनों का उपयोग उत्पादक ढंग से, असली ताकत की बढ़ोतरी में नहीं हो रहा है बल्कि अस्थायी ताकत के लिए हो रहा है जो आप दूसरों से खरीदते या उधार लेते हैं।  आप बाहर से कोई मशीन लेते हैं, आप इसे इस्तेमाल करते हैं और यह आपको कुछ समय तक अस्थायी भरोसा देती है जो काफी नहीं है।  लेकिन जैसा कि मैंने आपसे कहा है अगर इसका कोई पुर्जा खराब हो जाए और बदला न जा सके तो आप असहाय हो जाते हैं।
     हमारे विचार से हाल की घटनाओं के कारण, खास कर पड़ोसी देश को काफी मात्रा में जो सैनिक सहायता मिल रही है, उसके कारण यह कठनाई और भी अधिक वास्तविक हो गई है।  मैं नहीं समझता कि युद्ध की कोई स्पष्ट संभावना है।  वास्तव में, मुझे शक है कि ऐसा कोई युद्ध हो सकता है।  मैं निष्पक्ष ढंग  से सोचने की कोशिश कर रहा हूँ इसलिए नहीं कि मैं ऐसा चाहता हूँ।  फिर भी, किसी आपातस्थिति की संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।  मैं सदन को विश्वास दिलाना चाहता हूँ।  हम देश की सुरक्षा को किसी भी स्थिति में खतरे में नहीं डालेंगे।


Sunday, 12 January 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 13th January, 2020 at YouTube


          अध्‍यक्ष महोदय, मुझे बताया गया कि एक माननीय सदस्‍य ने यहाँ कहा, ‘‘आपकी पंचवर्षीय योजनाओं का क्‍या लाभ है ?  आपको सुरक्षा पर ध्‍यान देना चाहिए।’’  यह एक गंभीर कथन है।  पंचवर्षीय योजनाएँ देश की सुरक्षा की योजना है।  इसके अतिरिक्‍त यह और है ही क्‍या ? सुरक्षा का मतलब बंदूकें और दूसरे हथियार लेकर लोगों का सड़कों पर अभ्‍यास करना नहीं है।  आज सुरक्षा का मतलब सुरक्षा के लिए जरूरी सामान और उपकारण बनाने के लिए देश को औद्योगिकी रूप से तैयार करना है।  सुरक्षा का सही रास्‍ता है दूसरे देशों के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों से बचना।  इस सदन में माननीय सदस्‍य पड़ोसी देशों के बारे में आक्रामक भाषा में बात करते हैं और हाथ में तलवार लेकर बहादुरी के कारनामें करना चाहते हैं।  इससे कोई लाभ नहीं होगा।  निश्‍चय ही देश का तो कोई लाभ नहीं होगा।  एक बात निश्चित है कि हमें पूरी तरह तैयार रहना है क्‍योंकि हमारी नीति कितनी ही शांतिपूर्ण क्‍यों न हो, कोई भी जिम्‍मेदार सरकार ऐसी आपातस्थिति की जोखिम नहीं उठा सकती जिसका वह सामना न कर सके। लेकिन किसी भी प्रकार का धमकी भरा व्‍यवहार न तो गौरवमय राष्‍ट्र को शोभा देता है, न निरापद ही है।  यह कमजोरी की निशानी है, ताकत की नहीं।  इसलिए हमें मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने चाहिए और यह भावना
फैलानी चाहिए कि कोई भी झगड़ा इतना बड़ा नहीं होता कि उसे हल करने के लिए युद्ध की जरूरत हो।  दूसरे शब्‍दों में आज युद्ध का प्रश्‍न ही नहीं उठता और उठना भी नहीं चाहिए।
     अब हम दूसरे पहलू पर आते हैं।  किसी देश की वास्‍तविक ताकत उसकी औद्योगिक उन्‍नति से बढ़ती है।  इसका बतलब अपनी फौजों के लिए युद्ध के लिए हथियार बनाने की क्षमता से है।  आप औद्योगिक विकास के बिना किसी अकेले उद्योग का विकास नहीं कर सकते।  देश में औद्योगिक विकास के बिना आप टैंक बनाने का कारखाना नहीं लगा सकते।  हवाई जहाज बनाने का कारखाना तब ही लगाया जा सकता है जब तकनीकी रूप से प्रशिक्षित लोग काफी संख्‍या में मौजूद हों।  इसलिए इस समय आर्थिक विकास और सुरक्षा दोनों की दृष्टि से हमारा उद्देश्‍य उद्योगों की स्‍थापना होना चाहिए, विशेषत: भारी उद्योगों की।  इस बारे में यह आलोचना न्‍यायसंगत हो सकती है कि हमें इस दिशा में बहुत पहले सोचना शुरू करना चाहिए था लेकिन प्रश्‍न यह है कि हम कम-से-कम आज तो भारी उद्योगों और तेल-उत्‍पादन के बारे में सोच रहे हैं।

Thursday, 9 January 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 10th January, 2020 at YouTube


     अध्यक्ष महोदय, हमने भाषा अधिनियम की किसी भी बुनियादी बात में परिवर्तन नहीं किया।  हमने ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे गैर-हिंदी भाषी लोगों को दिये गए आश्वासन समाप्त होते अथवा उनमें कमी होती।  हमने आखिर किसका बोझ बढ़ाया?  हमने गैर हिंदी भाषी लोगों का नहीं, बल्कि केंद्रीय सचिवालय के अधिकारियों का इस दृष्टि से बोझ बढ़ाया कि अब उन्हें केवल हिंदी से अंग्रेजी में ही नहीं बल्कि अंग्रेजी से हिंदी में भी अनुवाद उपलब्ध कराना है।  हमने केवल यही कार्रवाई की।   इस सदन में गृहमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया था कि यह भार हमारे ऊपर होगा, उन लोगों के ऊपर नहीं जो हिंदी का प्रयोग नहीं करना चाहते।  यह स्वाभाविक है कि जब कोई नया कदम उठाया जाता है तो इससे कुछ भार बढ़ता है।  इससे उन लोगों के ऊपर भार पड़ता है, जिन्हें नई भाषा सीखनी होती है।  लेकिन अहिंदी राज्यों के माननीय सदस्य यह नहीं समझते कि हिंदी सीखने का भार हिंदी राज्यों में रहने वाले लोगों पर भी कुछ ही कम है।  मैं स्वयं अपना उदाहरण देकर यह कह सकती हूँ कि यहाँ जो हिंदी बोली जाती है, वह मेरे लिए एकदम नई भाषा है और मुझे इसे नए सिरे से सीखना पड़ा।
      नई कार्रवाई का किसी न किसी पर भार पड़ता ही है।  जैसा कि गृहमंत्री ने कहा है, यह भार गैर-हिंदी भाषी लोगों पर कुछ अधिक होगा।  लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह कठिनाई चाहे कुछ भी है, हम इस पर विचार करेंगे और इसे घटाने की कोशिश करेंगे।  हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम बैठकर इस बात पर विचार करें कि विभिन्न राज्यों और प्रशासकों की कठिनाइयाँ क्या हैं।  उन्होंने यह बात भी कही थी।  मैं समझती हूँ कि जब तक वातावरण शांत नहीं होता, इस संबंध में जितना काम हो जाए उतना अच्छा, क्योंकि तब हम लोग एक साथ बैठकर इस पर विचार कर ऐसा तरीका निकालने की बेहतर स्थिति में होंगे जो देश की एकता को बढ़ाएगा और हम लोगों के बीच परस्पर संपर्क को ही अधिक नहीं बढ़ाएगा, जिन्हें उच्च शिक्षा का सौभाग्य प्राप्त हुआ है बल्कि उन लोगों का भी संपर्क बढ़एगा जिन्हें यह सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ।  अब समय आ गया है कि हम उन लोगों को भी यह समानता और अवसर दें और भाषा के कारण जो वर्ग भेद बढ़ा है उसे कम करें।

Monday, 6 January 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 7th January, 2020 at YouTube


     अध्यक्ष महोदय, पिछले 50 वर्षों में हमने योजनाबद्ध विकास का सहारा लिया है और मैं समझती हूँ कि  हमारा यह निर्णय सही सिद्ध हुआ है।  इस क्षेत्र में जो काम हुआ है उसके बिना हमारा देश उन बड़ी चुनौतियों पर विजय नहीं पा सकता था, जो पिछले कुछ वर्षों में विदेशी आक्रमणों और अत्यधिक कठिन तथा अकल्पित आर्थिक समस्याओं के रूप में हमारे सामने आईं।  यह वस्तुतः आश्चर्यजनक है कि विपक्ष के मेरे मित्र प्रोफेसर साहब आज भी योजनाओं को बंद कर देने का राग अलापते हैं, जबकि जिन उद्योगपतियों की ओर से उनकी पार्टी बोलती है वे सरकार पर और अधिक पूँजी लगाने के लिए जोर डालते हैं।  इस देश में उस समय तक योजनाएँ बंद नहीं हो सकतीं, जब तक इस देश में इस पार्टी की सरकार है, जब तक इस देश में सामाजिक न्याय माँगनेवाले करोड़ों भूखे-नंगे मौजूद हैं।
     एक अन्य समस्या, जो हमें दुखी करती है, अनुसूचित जातियों तथा आदिम जातियों और भूमिहीन मजदूरों के लिए और अधिक न कर पाने की हमारी अक्षमता है, लेकिन मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इन कार्यक्रमों में जो कमियाँ हैं, उनके प्रति मैं पूरी तरह सजग हूँ और यह समझती हूँ कि इस संबंध में और बहुत कुछ किया जाना चाहिए।  हम इन कमियों को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं।  इसी प्रकार मुझे देश के सब अल्पसंख्यकों का ध्यान है।  इस संबंध में भी हम अपने दायित्व के प्रति पूरी तरह सजग हैं।  हम इस समस्या पर निरंतर विचार कर रहे हैं और अनेक संगठनों के लोगों से हमारा संपर्क है।  इन संगठनों में राजनीतिक और अराजनीतिक दोनों प्रकार के संगठन हैं।  हम इनके सहयोग से समस्या का समाधान ढूँढ रहे हैं तथा समय-समय पर सांप्रदायिक तनाव की जो क्रूर घटनाएं होती हैं उनको रोकने के उपाय भी खोज रहे हैं।  मैं वस्तुतः इस अवसर पर भाषा के बारे में नहीं बोलना चाहती थी, लेकिन अनेक माननीय सदस्यों ने इसका उल्लेख किया है।  बुनियादी प्रश्न यह था कि अहिंदी भाषी लोगों को हमारे बड़ों और प्रधानमंत्री ने जो आश्वासन दिए थे वे पूरे हों। इसी कारण से यह भाषा विधेयक संसद में पेश करना पड़ा।  यह सच है कि जब यह विधेयक सदन में पेश हुआ तो कुछ लोगों ने यह अनुभव किया कि इससे उनको कठिनाई होगी।  आखिर हमने किया क्या था?
      

Saturday, 4 January 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 4th January, 2020 at YouTube


     अध्यक्ष महोदय, मैं चाहता हूँ कि हमारे देश के नौजवान जितना आगे बढ़ सकते हैं, बढ़ें।  हम उनको छोटा नहीं समझते और न हम इस बात का अहंकार करते हैं कि हम ही कुर्बानी कर सकते हैं, देश के लिए, वे लोग भी कर सकते हैं।  परमात्मा की कृपा से कभी उन्हें गुलामी के खिलाफ जंग लड़ने के लिए कुर्बानी नहीं करनी पड़ेगी, पर यह जरूर है कि स्वतंत्रता को कायम रखने के लिए कुर्बानी करनी पड़ सकती है।  अपनी इस स्‍वतंत्रता और आजादी को बरकरार रखना निहायत जरूरी है, हम सब देशवासियों के लिए जिन बातों में जिन रचनात्मक कामों में  हमको लगना चाहिए, लगे रहना चाहिए और मैं आपको एक सलाह दूँगा कि आप अपनी संतान में कम-से-कम एक सदस्य को राजनीति के मैदान में फेंक दें, ताकि यह राजनीतिक मैदान पवित्र रहे, देशभक्ति वाला रहे।  स्वार्थी ताकतें इस राजनीति के मैदान में न रहें।  मुझे इस बात की पूरी आशा है और मैं उम्मीद रखता हूँ कि सरकार और समाज आपके सम्मान को बढ़ाते रहेंगे।
    मैं इन शब्दों के साथ आपको प्रणाम करता हुआ यह संदेश देना चाहता हूँ कि 15 अगस्त आ रहा है।  मैंने सब राज्यपालों को कहा है कि वे अपने-अपने राज्य के जितने स्वतंत्रता सेनानी जिंदा हैं, उनको दावत देकर 15 अगस्त को राजभवन में बुलाएँ और उन्हें आदर-सम्मान का स्थान दें।  इस एक दिन के सम्मान से कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी, लेकिन समाज व आने वाली पीढ़ियों को पता चलेगा कि यह वे लोग हैं, जिन्होंने हमें स्वतंत्रता लेकर दी थी।  जो हमको अपनी किस्मत का मालिक खुद बना गए।  इसी तरह राष्ट्रपति भवन में भी दिल्ली में रहने वाले सभी स्वतंत्रता सेनानियों को दावत दी जाएगी, ताकि वे हमें राष्ट्रपति भवन में होने वाले इस स्वागत समारोह में दर्शन दे सकें, जिसमें हमारी प्रधानमंत्री, मंत्रिगण, सब वी.आई.पी. और दुनिया भर के डिप्लोमैट भी शामिल होते हैं।  मुझे आशा है कि जिन लोगों ने इस काम को अपने हाथ में लिया है, आगे भी इस काम को कुशलता से निभाते चले जाएँगे।  जिन स्‍वतंत्रता सेनानियों को परमात्मा ने लंबी उम्र दी है ओैर वे अभी हमारे बीच हैं, मैं उनको बूढ़ा नहीं समझता।  मैं समझता हूँ कि उनका दिल जवान है, उनमें हिम्मत है, दिलेरी है, इसलिए वे आज भी सम्माननीय हैं।
   

Wednesday, 1 January 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 2nd January, 2020 at YouTube


अध्यक्ष महोदय, मुझे ऐसी संस्था में आकर बहुत प्रसन्नता होती है।  भारत सरकार ने 1972 के बाद स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा देश के प्रति की गई सेवाओं को याद करते हुए, उन्हें जो सम्मान दिए, उनमें एक स्थायी सनद भी दी गई, जिसको ताम्रपत्र कहते हैं, उसके बाद सरकार ने फिर जब कुछ और करना चाहा, तो उन्हें पेन्शन भी दी जाने लगी।  यह पेन्शन एक सहायता नहीं, बल्कि एक सम्मान है, जिसे भारत सरकार भी देती है और अब कुछ प्रांतीय सरकारें भी इसमें  अपना योगदान दे रही हैं।  यह सम्मान, पेन्शन और ताम्रपत्र सब एक तरफ हैं, दूसरी तरफ अब हमें यह देखना है कि ये हमारे पुराने जमाने के लोग जिन्होंने हिंदुस्तान की स्‍वतंत्रता के लिए सब कुछ किया, जिनकी वजह से आज हिंदुस्‍तान दुनिया की सर्वोच्च श्रेणी में पहुँचकर अपने सम्मान को बढ़ा रहा है और अपनी किस्मत का मालिक खुद बना हुआ है उनके लिए हम और क्या करें।  इसके साथ-साथ एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इंसान को राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ, आर्थिक स्वतंत्रता भी मिलनी बहुत जरूरी है और जो अभी तक हम उस आर्थिक स्वतंत्रता को पूर्ण नहीं कर पाए, उसमें आप जैसे स्मरणीय लोगों का योगदान अब भी हो सकता है।
     मैं जानता हूँ कि बहुत पुराने बुजुर्ग, जिन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष के शुरू में ही बहुत बड़ा हिस्सा लिया था, वे इस संसार से चले गए हैं और कुछ वे लोग जिन्होंने उस वक्त बलिदान दिया, उनकी आज याद बाकी रह गई है और आपको ये भी मालूम है कि ताकत हमेशा अपना असर, अपना दबाव समाज पर रखती रही है और रखती रहेगी।  इसलिए यह जरूरी है कि हम स्वतंत्रता के संग्राम में हिस्सा लेने वाले लोग बिल्कुल खामोश होकर न बैठ जाएँ।  हमें जहाँ राष्ट्रवादी ताकतों को मजबूत करना है, वहाँ हमें इस बात के लिए भी उपाय करना है कि यह भावना, यह देशभक्ति यह हिंदुस्तान का प्यार, इसकी एकता, यहाँ के रहने वाले लोगों के आपसी भाईचारे को कायम रखने के लिए हम सरकार और समाज को पूरा-पूरा ध्यान व सहयोग देकर मजबूत करें।  मुझे आशा है कि इस मामले में हमारा समाज और हमारी सरकार ढील नहीं बरतेगी और वह आदर-सम्मान स्वतंत्रता सेनानियों को ही नहीं, बल्कि उनकी संतान को भी मिलता रहेगा, क्योंकि उनके खून के अंदर देशभक्ति है।


Monday, 30 December 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 31 December, 2019 at YouTube


     स्पीकर महोदय, मैं सोचता हूँ कि अगर आप डेढ़ वर्ष पीछे जा सकते और फिर यह देख सकते कि इन डेढ वर्षों में क्या हुआ है, तो आपको लगेगा कि भारत बहुत अर्थों में अपनी सब तरह की मुश्किलों और तकलीफों के बावजूद, जिनमें से वह गुजरा है, काफी आगे बढ़ा है।  हमारी सरकार और विशेष कर मुझे बहुत बोझ उठाना पड़ रहा है; हमारे सामने आज भी बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ हैं।  फिर भी, मैं पूरी ईमानदारी से कहता हूँ कि मेरे अंदर न असफलता का भाव है और मैं दूर-भविष्य तो नहीं निकट-भविष्य की ओर पूरे विश्वास के साथ देखता हूँ और अपने अंदर छुपा हुआ एक ऐसा अनुभव पाता हूँ कि मुझे इस भारत के इतिहास के महत्वपूर्ण चरण में हिस्सा लेने का अवसर मिला।  क्योंकि आपने मेरे प्रस्तावों का जिक्र किया है, इसलिए मैं एक चीज कहना चाहूँगा कि बजट में बहुत-सी चीजें हुआ करती हैं, जिनसे कुछ सदस्यों को शायद खुशी न होती हो।  शायद हम इस बात में या उस बात में कुछ और बेहतर काम कर सकते थे लेकिन मैं समझता हूँ कि स्वयं बजट हमारी और हमारे राष्ट्र की ताकत की निशानी है।  मेरे ख्‍याल से जिस ध्यान और दूरदर्शिता के साथ हमारे वित्त मंत्री ने यह बजट तैयार किया है, उससे आने वाले महीनों और वर्षों में हमें बहुत लाभ होगा।
     अगर मैं साफ कहूँ कि हमने बहुत फूँक-फूँक कर कदम रखे हैं क्योंकि हममें आपने जो बहुत बड़ा भरोसा रखा है, उसके बारे में हम जोखिम नहीं उठाना चाहते।  बहुत सी चीजें हैं जो हमने चाहते हुए भी नहीं की, क्योंकि हम भारत के भविष्य और भारत के वर्तमान को दाँव पर नहीं लगा सकते थे।  ऐसी चीजों में भी जो हमारे ही सिद्धांतों और विचारों के अनुसार है अगर, कोई जोखिम या खतरा दिखाई दिया तो, हम उसमें भी आगे नहीं बढ़े तथा हम सतर्कता के साथ आगे बढ़े हैं।  हो सकता है कि अगर हमने ज्यादा साहस नहीं दिखाया होता, तो कुछ काम जल्दी हो जाता, लेकिन में व्यक्तिगत तौर से इस नाजुक वक्त में बहुत होशियारी से चलने की नीति पर चलने से पूरी तरह सहमत हूँ।  जहाँ-जहाँ छोटी-मोटी बात के अलावा, मैं अपने साथी वित्तमंत्री की प्रशंसा करना चाहता हूँ कि किस साहस, दृष्टि और ऊँची बुद्धिमत्ता के साथ उन्होंने समस्या को सुलझाया है।  यह सराहनीय प्रयास है।

Thursday, 26 December 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 27 December, 2019 at YouTube


   स्पीकर महोदय, यह सदन निस्संदेह हमारी विदेश नीति और विदेशी मामलों के बहुत-से पहलुओं में दिलचस्पी रखता है और इस बारे में भी कि भारत पर इसका क्या असर पड़ता है।  संभवतः आज जो बहस होने वाली है उसमें इन बहुत-सी बातों के बारे मैं ध्यान खींचा जाएगा।  लेकिन महोदय मैं आपकी अनुमति और इस सदन की सहमति से विदेशी मामलों और विदेश नीति और उनका भारत पर क्या-क्या असर पड़ता है और हम इनको किस दृष्टि से देखते हैं, इन चीजों के सामान्य पहलुओं के बारे में कुछ कहना चाहूँगा और मुख्य समस्या की छोटी-छोटी बातों में नहीं जाऊँगा।  इससे भी पहले मैं केवल विदेशी मामलों में ही नहीं बल्कि स्वयं भारत के बारे में कुछ आम बातें कहूँगा।  पिछले कुछ दिनों में बजट प्रस्तावों के सिलसिले में बहुत कुछ नुक्ताचीनी की गई और कम या ज्यादा जोर के साथ सरकार की असफलताएँ बताई गई हैं। जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मैं हर तरह की आलोचना का स्वागत करता हूँ और मैं इस बात पर विश्वास करता हूँ कि अगर यह सदन सिर्फ एक गतिहीन सदन, दब्बू सदन या ऐसा सदन जो हर सरकारी चीज की हाँ-में-हाँ मिलाने वाला सदन हो जाए, तो यह मेरे विचार से दुर्भाग्यपूर्ण होगा।  हमेशा चौकन्ना रहना ही स्वतंत्रता की कीमत है और इस सदन के हर सदस्य को हर समय जागृत व चौकन्ना रहना है।  हाँ, सरकार को भी चौकस रहना चाहिए।  लेकिन जो लोग सत्ताधारी होते हैं, उनमें लापरवाह प्रवृत्ति रहती है, इसलिए मैं अपनी तरफ से इस सदन के माननीय सदस्यों की चौकसी का स्वागत करता हूँ, जिन्होंने सरकार की हर गलती, असफलता या कमी की तरफ हमारा ध्यान खींचा है।
   मैं आशा करता हूँ कि यहाँ की आलोचना अच्छी भावना से दोस्ती के तरीकों से की गई है और वह सरकार की ईमानदारी को चुनौती देती है।  हाँ, अगर सरकार की अच्छी भावना को भी चुनौती देने की इच्छा हो तो भी मैं उसमें विरोध नहीं करूँगा, बशर्ते, यह स्पष्ट हो कि यही चीज विचाराधीन है।  इस आलोचना को सुनते हुए या उसके बारे में पढ़ते हुए मुझे ऐसा लगा कि शायद हम लकड़ी की तुलना में पेड़ों की तरफ ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।  पिछले 18 महीनों में जो-कुछ हुआ है उस पर और भारत की सारी तस्वीर पर गौर नहीं कर रहे।  जहाँ तक आप निष्पक्ष रूप से देख सकते हैं अवश्य देखिए।