Sunday, 12 January 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 13th January, 2020 at YouTube


          अध्‍यक्ष महोदय, मुझे बताया गया कि एक माननीय सदस्‍य ने यहाँ कहा, ‘‘आपकी पंचवर्षीय योजनाओं का क्‍या लाभ है ?  आपको सुरक्षा पर ध्‍यान देना चाहिए।’’  यह एक गंभीर कथन है।  पंचवर्षीय योजनाएँ देश की सुरक्षा की योजना है।  इसके अतिरिक्‍त यह और है ही क्‍या ? सुरक्षा का मतलब बंदूकें और दूसरे हथियार लेकर लोगों का सड़कों पर अभ्‍यास करना नहीं है।  आज सुरक्षा का मतलब सुरक्षा के लिए जरूरी सामान और उपकारण बनाने के लिए देश को औद्योगिकी रूप से तैयार करना है।  सुरक्षा का सही रास्‍ता है दूसरे देशों के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों से बचना।  इस सदन में माननीय सदस्‍य पड़ोसी देशों के बारे में आक्रामक भाषा में बात करते हैं और हाथ में तलवार लेकर बहादुरी के कारनामें करना चाहते हैं।  इससे कोई लाभ नहीं होगा।  निश्‍चय ही देश का तो कोई लाभ नहीं होगा।  एक बात निश्चित है कि हमें पूरी तरह तैयार रहना है क्‍योंकि हमारी नीति कितनी ही शांतिपूर्ण क्‍यों न हो, कोई भी जिम्‍मेदार सरकार ऐसी आपातस्थिति की जोखिम नहीं उठा सकती जिसका वह सामना न कर सके। लेकिन किसी भी प्रकार का धमकी भरा व्‍यवहार न तो गौरवमय राष्‍ट्र को शोभा देता है, न निरापद ही है।  यह कमजोरी की निशानी है, ताकत की नहीं।  इसलिए हमें मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने चाहिए और यह भावना
फैलानी चाहिए कि कोई भी झगड़ा इतना बड़ा नहीं होता कि उसे हल करने के लिए युद्ध की जरूरत हो।  दूसरे शब्‍दों में आज युद्ध का प्रश्‍न ही नहीं उठता और उठना भी नहीं चाहिए।
     अब हम दूसरे पहलू पर आते हैं।  किसी देश की वास्‍तविक ताकत उसकी औद्योगिक उन्‍नति से बढ़ती है।  इसका बतलब अपनी फौजों के लिए युद्ध के लिए हथियार बनाने की क्षमता से है।  आप औद्योगिक विकास के बिना किसी अकेले उद्योग का विकास नहीं कर सकते।  देश में औद्योगिक विकास के बिना आप टैंक बनाने का कारखाना नहीं लगा सकते।  हवाई जहाज बनाने का कारखाना तब ही लगाया जा सकता है जब तकनीकी रूप से प्रशिक्षित लोग काफी संख्‍या में मौजूद हों।  इसलिए इस समय आर्थिक विकास और सुरक्षा दोनों की दृष्टि से हमारा उद्देश्‍य उद्योगों की स्‍थापना होना चाहिए, विशेषत: भारी उद्योगों की।  इस बारे में यह आलोचना न्‍यायसंगत हो सकती है कि हमें इस दिशा में बहुत पहले सोचना शुरू करना चाहिए था लेकिन प्रश्‍न यह है कि हम कम-से-कम आज तो भारी उद्योगों और तेल-उत्‍पादन के बारे में सोच रहे हैं।

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