Thursday, 9 January 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 10th January, 2020 at YouTube


     अध्यक्ष महोदय, हमने भाषा अधिनियम की किसी भी बुनियादी बात में परिवर्तन नहीं किया।  हमने ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे गैर-हिंदी भाषी लोगों को दिये गए आश्वासन समाप्त होते अथवा उनमें कमी होती।  हमने आखिर किसका बोझ बढ़ाया?  हमने गैर हिंदी भाषी लोगों का नहीं, बल्कि केंद्रीय सचिवालय के अधिकारियों का इस दृष्टि से बोझ बढ़ाया कि अब उन्हें केवल हिंदी से अंग्रेजी में ही नहीं बल्कि अंग्रेजी से हिंदी में भी अनुवाद उपलब्ध कराना है।  हमने केवल यही कार्रवाई की।   इस सदन में गृहमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया था कि यह भार हमारे ऊपर होगा, उन लोगों के ऊपर नहीं जो हिंदी का प्रयोग नहीं करना चाहते।  यह स्वाभाविक है कि जब कोई नया कदम उठाया जाता है तो इससे कुछ भार बढ़ता है।  इससे उन लोगों के ऊपर भार पड़ता है, जिन्हें नई भाषा सीखनी होती है।  लेकिन अहिंदी राज्यों के माननीय सदस्य यह नहीं समझते कि हिंदी सीखने का भार हिंदी राज्यों में रहने वाले लोगों पर भी कुछ ही कम है।  मैं स्वयं अपना उदाहरण देकर यह कह सकती हूँ कि यहाँ जो हिंदी बोली जाती है, वह मेरे लिए एकदम नई भाषा है और मुझे इसे नए सिरे से सीखना पड़ा।
      नई कार्रवाई का किसी न किसी पर भार पड़ता ही है।  जैसा कि गृहमंत्री ने कहा है, यह भार गैर-हिंदी भाषी लोगों पर कुछ अधिक होगा।  लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह कठिनाई चाहे कुछ भी है, हम इस पर विचार करेंगे और इसे घटाने की कोशिश करेंगे।  हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम बैठकर इस बात पर विचार करें कि विभिन्न राज्यों और प्रशासकों की कठिनाइयाँ क्या हैं।  उन्होंने यह बात भी कही थी।  मैं समझती हूँ कि जब तक वातावरण शांत नहीं होता, इस संबंध में जितना काम हो जाए उतना अच्छा, क्योंकि तब हम लोग एक साथ बैठकर इस पर विचार कर ऐसा तरीका निकालने की बेहतर स्थिति में होंगे जो देश की एकता को बढ़ाएगा और हम लोगों के बीच परस्पर संपर्क को ही अधिक नहीं बढ़ाएगा, जिन्हें उच्च शिक्षा का सौभाग्य प्राप्त हुआ है बल्कि उन लोगों का भी संपर्क बढ़एगा जिन्हें यह सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ।  अब समय आ गया है कि हम उन लोगों को भी यह समानता और अवसर दें और भाषा के कारण जो वर्ग भेद बढ़ा है उसे कम करें।

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