अध्यक्ष महोदय, मुझे ऐसी संस्था में आकर बहुत
प्रसन्नता होती है। भारत सरकार ने 1972 के
बाद स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा देश के प्रति की गई सेवाओं को याद करते हुए,
उन्हें जो सम्मान दिए, उनमें एक स्थायी सनद भी दी गई, जिसको ताम्रपत्र कहते हैं,
उसके बाद सरकार ने फिर जब कुछ और करना चाहा, तो उन्हें पेन्शन भी दी जाने
लगी। यह पेन्शन एक सहायता नहीं, बल्कि एक
सम्मान है, जिसे भारत सरकार भी देती है और अब कुछ प्रांतीय सरकारें भी इसमें अपना योगदान दे रही हैं। यह सम्मान, पेन्शन और ताम्रपत्र सब एक तरफ हैं,
दूसरी तरफ अब हमें यह देखना है कि ये हमारे पुराने जमाने के लोग जिन्होंने
हिंदुस्तान की स्वतंत्रता के लिए सब कुछ किया, जिनकी वजह से आज हिंदुस्तान दुनिया की सर्वोच्च श्रेणी में पहुँचकर अपने
सम्मान को बढ़ा रहा है और अपनी किस्मत का मालिक खुद बना हुआ है उनके लिए हम और
क्या करें। इसके साथ-साथ एक महत्वपूर्ण
बात यह है कि इंसान को राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ, आर्थिक स्वतंत्रता भी
मिलनी बहुत जरूरी है और जो अभी तक हम उस आर्थिक स्वतंत्रता को पूर्ण नहीं कर पाए, उसमें आप जैसे स्मरणीय लोगों का योगदान अब भी हो
सकता है।
मैं
जानता हूँ कि बहुत पुराने बुजुर्ग, जिन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष के शुरू में ही
बहुत बड़ा हिस्सा लिया था, वे इस संसार से चले गए हैं और कुछ वे लोग जिन्होंने उस
वक्त बलिदान दिया, उनकी आज याद बाकी रह गई है और आपको ये भी मालूम
है कि ताकत हमेशा अपना असर,
अपना दबाव समाज पर रखती रही है और रखती रहेगी। इसलिए यह जरूरी है कि हम स्वतंत्रता के संग्राम
में हिस्सा लेने वाले लोग बिल्कुल खामोश होकर न बैठ जाएँ। हमें जहाँ राष्ट्रवादी ताकतों को मजबूत करना है, वहाँ हमें इस बात के लिए भी उपाय करना है कि यह
भावना, यह देशभक्ति यह हिंदुस्तान का प्यार, इसकी एकता, यहाँ के रहने वाले
लोगों के आपसी भाईचारे को कायम रखने के लिए हम सरकार और समाज को पूरा-पूरा ध्यान व
सहयोग देकर मजबूत करें। मुझे आशा है कि इस
मामले में हमारा समाज और हमारी सरकार ढील नहीं बरतेगी और वह आदर-सम्मान स्वतंत्रता
सेनानियों को ही नहीं, बल्कि उनकी संतान को भी मिलता रहेगा, क्योंकि उनके खून के अंदर देशभक्ति है।
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