Sunday, 26 January 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 27th January, 2020 at YouTube

     उपाध्‍यक्ष महोदय, हमारी दार्शनिक विचारधारा सभी व्‍यक्‍तियों की समानता को स्‍वीकार करती है।  लेकिन वस्‍तुस्थिति यह है कि कई शताब्‍दियों से हमारा समाज जड़ और वर्गीकृत हो गया था जो न केवल समानता को नकार रहा था, बल्‍कि उसने कुछ ऐसे रीति-रिवाज भी शुरू किए जो बर्बर और अमानुषिक थे।  स्‍वाभाविक था कि हमारा राष्‍ट्रीय आंदोलन एक ऐसी सामाजिक क्रांति का अंग बनता जिसके अंतर्गत ऐसी बुराइयों पर योजनाबद्ध प्रहार होता।  जनता के मन में जो आकांक्षाएँ प्रसुप्‍त थीं, उन्‍हें सजीव बनाकर महात्‍मा गाँधी ने लाखों लोगों को स्‍वाधीनता संग्राम में सक्रिय बनाया।  बड़ी संख्‍या में स्त्रियों ने सभी स्‍तरों पर इस अभियान में भाग लेकर अपनी स्थिति को मजबूती दी और स्‍वातंत्र्योतर भारत के सार्वजनिक मामलों में अपना योगदान किया।  महात्‍मा गांधी हमारी आशा-आकांक्षाओं और हमारे राष्‍ट्र की असीम शक्‍ति के प्रतीक बन गए।  अगर जनता तरंग थी तो वह तरंग-Ük`ax थे।  अहिंसा का विचार विश्‍व को अविदित नहीं था, लेकिन उसे महात्‍मा गांधी की प्रतिभा ने सजीवता दी और एक अमूर्त सिद्धांत को एक सशक्‍त राजनैतिक अस्‍त्र में बदल दिया।  हमारे देश में और विश्‍व के अन्‍य अनेक भागों में बहुतों को संदेह था कि एक दलित जाति अहिंसक तरीके से साम्राज्‍यवाद को पछाड़ सकेगी।  लेकिन हमारी परिस्थितियों में और कोई रास्‍ता ही न था।  हमने यह सिद्ध कर दिखाया कि संकल्‍प और एकता जनता के सर्वोत्‍तम शस्‍त्र हैं। 
    स्‍वाधीनता-प्राप्‍ति के बाद एक बार फिर कुछ लोगों ने संदेह व्‍यक्‍त किया कि क्‍या हमारे जैसे विशाल ओर विविधतापूर्ण देश में हमारी राजनैतिक प्रणाली सफल हो पाएगी और क्‍या हम अपने यहाँ, जहाँ अनेक धर्म और अनेक प्रमुख भाषाएँ हैं, एकता को सुदृढ़ कर सकेंगे।  हम अनुभव करते हैं कि हमारी विविधता हमारे सांस्कृतिक जीवन को समृद्ध बनाती है और हमारी एकता को और अधिक मजबूती देती हैं।  हमने पाया कि समाज के विभिन्‍न अंगों को साथ रखने और फूट की ताकतों के इरादे असफल करने का सबसे अच्‍छा उपाय है - समस्‍याओं को मिल-बैठकर हल करने और संदेह या भय के मूल कारणों को दूर करने की इच्‍छा से प्रेरित होना।  ऐसे बहुत-से लोग हुए हैं जिनको भविष्‍य में बस सर्वनाश ही दिखाई देता था।  उनका कहना था, हम जिस पद्धति के अंतर्गत चल रहे हैं, उसमें हम आयोजनबद्ध विकास नहीं कर पाएँगे।  हम अपनी बढ़ती हुई जनसंख्‍या के लिए खाद्यान्‍न नहीं जुटा पाएँगे।

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