Friday, 17 January 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 19th January, 2020 at YouTube

अध्यक्ष महोदय, हमने राष्ट्रपति के अभिभाषण में “परायापन” शब्द के प्रयोग की चर्चा की है।  शायद सबसे ज्यादा खतरनाक परायापन उन युवाजनों के भ्रम-भंग के एहसास से पैदा होता है जो कि समर्थ और सक्षम होते हुए भी उत्पादक रोजगार से वंचित रहते हैं। यह एक आर्थिक त्रासदी है।  अगर हम अपने देशवासियों को अपने सामाजिक प्रबंधों के अंतर्गत स्थान नहीं दे सकते, तो हमारे लिए उनके विषय में अपनी चिंता की बात करने की कोई सार्थकता नहीं है।  लोग परायापन इसलिए अनुभव करते हैं कि उन्हें लगता है कि कोई उन्हें चाहता नहीं।  लेकिन परायापन महसूस करने वाले अन्य प्रकार के लोग भी होते हैं, जैसे नक्सलवादी जिनके लिए देशभक्ति एक मध्यवर्गीय उत्साह है जो ऐसे पिछले विश्ववादी हैं जिनके लिए हमारी जनता और हमारे देश के गुणों का आदर कर सकना संभव नहीं हो पाता।  इसके अलावा, कुछ हमारे ऐसे अति कुशल विशेषज्ञ आदि भी हैं जो यहाँ अपने लोगों के लिए बेहतर अवसरों का निर्माण करने के प्रयासों में होने वाली परेशानियाँ और निराशाएँ झेलने की बजाय विदेशों में अच्छे अवसरों तथा उच्चतर वेतनों के लिए जाना ज्यादा पसंद करते हैं।  मेरी हार्दिक इच्छा है कि जो लोग आज निराशा और परायापन का एहसास कर रहे हैं, उन्हें अंततः भारत अपनी ओर खींचने में सफल रहेगा ।
कुछ सदस्यों ने बेरोजगारों को भत्ते देने की चर्चा की है।  मैं नहीं समझता कि हमारे युवाजनों की समस्या उन्हें गुजारे के लिए भत्ता देकर हल की जा सकती है।  हम इन युवाजनों को पेंशन-भोगी न बनाएँ।  हम उन्हें दान या सरकारी सहयाता के आदी न बनाएँ।हम कोशिश करें कि उन्हें ऐसे अवसर मिलें जिससे वे सच्चा परितोष प्राप्त कर सकें। इसके लिए हमें अपने सभी संभव साधन जुटाने चाहिए तथा सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्रों में पूँजी-निवेश का स्तर बढ़ाना चाहिए।  योजना के पुनर्मूल्यांकन के दौरान हमें अपनी विकास योजनाओँ को रोजगारपरक बनाना चाहिए।  अगर हम आर्थिक विकास और योजनाओँ को तत्परता से लागू करने के ऊर्ध्‍व मार्ग पर बढ़ते रहे, तो स्थायी आधार पर उत्पादक रोजगार के पर्याप्त विस्तार का पथ प्रशस्त हो सकेगा।  लेकिन मैं उन लोगों में नहीं हूँ जो यह विश्वास पालते हुए चलते हैं कि आप योजना की चिंता कीजिए और रोजगार अपनी चिंता आप कर लेगा।  जब बेरोजगारी बहुत तीव्र और व्यापक हो, तो उससे निपटने के लिए हमें विशेष उपाय करने चाहिए।
अध्‍यक्ष महोदय,  ऐसे कार्यक्रमों की पहचान करके उन्‍हें विशेष गति देनी होगी जिनके द्वारा काफी ज्‍यादा रोजगार के अवसर उत्‍पन्‍न हों।  गत मई में इस सदन में जो पुनर्निर्धारित योजना प्रस्‍तुत की गई थी, उसमें इस प्रकार के कई कार्यक्रम शामिल हैं।  इन कार्यक्रमों को देश के अनेक बड़े भागों में कार्यान्‍वित भी किया जा रहा है, हालाँकि उनमें तेजी आने में कुछ समय लग सकता है।  योजना काल में इनके लिए 235 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।  इसके अतिरिक्‍त, छोटे किसानों तथा खेतिहर मजदूरों के लिए परियोजनाओं को 300 करोड़ रुपए तक की सहायता वित्‍तीय संस्‍थाओं से मिलेगी।  इसी प्रकार शुष्‍क भूमि कृषि कार्यक्रमों के लिए 150 करोड़ रुपए की सहायता की आशा की जा सकती है।  पिछले सप्‍ताह प्रस्‍तुत किए गए बजट में वित्‍त मंत्री ने ग्रामीण विकास की सत्‍तर योजनाओं के लिए 500 करोड़ रुपए के प्रावधान का संकेत किया है।  मैं जानता हूँ कि प्राय: प्रत्‍येक माननीय सदस्‍य ने इस छोटी राशि की ओर इशारा किया है।  मैं उन्‍हें याद दिलाना चाहूँगा कि इस योजना के अंतर्गत जो कार्यक्रम आते हैं, वे अतिरिक्‍त रोजगार संबंधी अन्‍य कार्यक्रमों के पूरक के रूप में ही हैं।  रोजगार के अवसर संपूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था द्वारा ही उत्‍पन्‍न होते हैं और आप एक संपूर्ण समस्‍या को एक ओर तथा उसे हल करने के अनेक उपायों में से एक को दूसरी ओर देखकर नहीं देख सकते।  मैंने अपने सार्वजनिक भाषणों में घोषणा की है कि कार्यक्रम शीघ्र आरंभ किए जाएँगे।  प्रधानमंत्री का कहना है कि 500 करोड़ रुपए की पूरी रकम सिर्फ कार्यक्रम के आयोजन में खर्च हो जाएगी।  इसलिए, मैं उनसे कहना चाहूँगा कि सभी आयोजन व अन्‍य तैयारियाँ पूरी की जा चुकी हैं और कार्यक्रम को कुछ ही दिन बाद लागू कर दिया जाएगा।
हम इसे और ज्‍यादा व्‍यापक कार्यक्रम का प्रारंभ बिंदु बनाना चाहते हैं।  इन कार्यक्रमों का उद्देश्‍य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के और अधिक अवसर बढ़ाना होगा।  लेकिन जिन कामों की परिकल्‍पना की गई, उनमें शिक्षितों को भी जैसे तकनीकीविदों, इंजीनियरों तथा अन्‍य शिक्षित बेरोजगारों को काम मिलेगा। लेकिन हमें यह पता है कि ऐसे अन्‍य कार्यक्रम तैयार करने की जरूरत बनी हुई है जिनके द्वारा और अधिक संख्‍या में शिक्षित बेरोजगारों को काम मिल सके।  इसके लिए शिक्षा और सार्वजनिक स्‍वास्‍थ जैसे क्षेत्रों में योजना लागत को बढ़ाने की आवश्‍यकता है ।  

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