अध्यक्ष महोदय, तेल के मामले को ही लीजिए। मशीनें चलाने के लिए तेल की कमी में आपकी बहुत-सी
मशीनें बिल्कुल बेकार हो जाएँगी। अगर हम
अपने देश में काफी तेल पैदा नहीं करते तो बड़ी-बड़ी मशीनें रुक जाएँगी। उन्हें चलाने के लिए हमारे पास कुछ नहीं होगा। अब हम एक गंभीर कठिनाई का उदारहण लेते हैं। मान लीजिए कि फिलहाल हम सही दिशा में बढ़ रहे
हैं - यह सही दिशा देश का औद्योगीकरण है जो आर्थिक दृष्टि से और सुरक्षा के विचार
से ठीक है। लेकिन, औद्योगीकरण में समय
लगता है। आपके काफी मजबूत होने से पहले
क्या होगा ? अगले दस वर्ष की अवधि में आप हराए जा सकते हैं। “हम हमले के लिए तैयार नहीं हैं” आपके ऐसा
चिल्लाने से शत्रु आप पर हमला करने से नहीं रुकेगा। यह एक गंभीर समस्या है इसका सामना करना पड़ता
है। हम जब किसी समस्या पर ज्यादा सोचने
लगते हैं तो मूल समस्या से हटकर हम असंगत बातों पर आ जाते हैं। अगर आप आज के खतरे के बारे में बहुत ज्यादा
सोचें और इसी पर ध्यान देते रहें तो परिणाम यह होगा कि आप कल या परसों कभी-भी,
काफी मजबूत नहीं हो सकेंगे। आपके साधनों
का उपयोग उत्पादक ढंग से, असली ताकत की बढ़ोतरी में नहीं हो रहा है बल्कि
अस्थायी ताकत के लिए हो रहा है जो आप दूसरों से खरीदते या उधार लेते हैं। आप बाहर से कोई मशीन लेते हैं, आप इसे इस्तेमाल
करते हैं और यह आपको कुछ समय तक अस्थायी भरोसा देती है जो काफी नहीं है। लेकिन जैसा कि मैंने आपसे कहा है अगर इसका कोई
पुर्जा खराब हो जाए और बदला न जा सके तो आप असहाय हो जाते हैं।
हमारे
विचार से हाल की घटनाओं के कारण, खास कर पड़ोसी देश को काफी मात्रा में जो सैनिक
सहायता मिल रही है, उसके कारण यह कठनाई और भी अधिक वास्तविक हो गई है। मैं नहीं समझता कि युद्ध की कोई स्पष्ट संभावना
है। वास्तव में, मुझे शक है कि ऐसा कोई युद्ध
हो सकता है। मैं निष्पक्ष ढंग से सोचने की कोशिश कर रहा हूँ इसलिए नहीं कि
मैं ऐसा चाहता हूँ। फिर भी, किसी
आपातस्थिति की संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मैं सदन को विश्वास दिलाना चाहता हूँ। हम देश की सुरक्षा को किसी भी स्थिति में खतरे
में नहीं डालेंगे।
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