अध्यक्ष
महोदय, मैं चाहता हूँ कि हमारे देश के नौजवान जितना आगे बढ़ सकते हैं, बढ़ें। हम उनको छोटा नहीं समझते और न हम इस बात का
अहंकार करते हैं कि हम ही कुर्बानी कर सकते हैं, देश के लिए, वे लोग भी कर सकते हैं। परमात्मा की कृपा से कभी उन्हें गुलामी के खिलाफ
जंग लड़ने के लिए कुर्बानी नहीं करनी पड़ेगी, पर यह जरूर है कि स्वतंत्रता को कायम
रखने के लिए कुर्बानी करनी पड़ सकती है।
अपनी इस स्वतंत्रता और आजादी को बरकरार रखना निहायत जरूरी है, हम सब
देशवासियों के लिए जिन बातों में जिन रचनात्मक कामों में हमको लगना चाहिए, लगे
रहना चाहिए और मैं आपको एक सलाह दूँगा कि आप अपनी संतान में कम-से-कम एक सदस्य को
राजनीति के मैदान में फेंक दें, ताकि यह राजनीतिक मैदान पवित्र रहे, देशभक्ति वाला रहे। स्वार्थी ताकतें इस राजनीति के मैदान में न रहें।
मुझे इस बात की पूरी आशा है और मैं उम्मीद
रखता हूँ कि सरकार और समाज आपके सम्मान को बढ़ाते रहेंगे।
मैं इन
शब्दों के साथ आपको प्रणाम करता हुआ यह संदेश देना चाहता हूँ कि 15 अगस्त आ रहा
है। मैंने सब राज्यपालों को कहा है कि वे
अपने-अपने राज्य के जितने स्वतंत्रता सेनानी जिंदा हैं, उनको दावत देकर 15 अगस्त को राजभवन में बुलाएँ
और उन्हें आदर-सम्मान का स्थान दें। इस एक
दिन के सम्मान से कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी, लेकिन समाज व आने वाली पीढ़ियों को
पता चलेगा कि यह वे लोग हैं, जिन्होंने हमें
स्वतंत्रता लेकर दी थी। जो हमको अपनी
किस्मत का मालिक खुद बना गए। इसी तरह
राष्ट्रपति भवन में भी दिल्ली में रहने वाले सभी स्वतंत्रता सेनानियों को दावत दी
जाएगी, ताकि वे हमें राष्ट्रपति भवन में होने वाले इस
स्वागत समारोह में दर्शन दे सकें, जिसमें हमारी
प्रधानमंत्री, मंत्रिगण, सब वी.आई.पी. और दुनिया भर के डिप्लोमैट भी शामिल होते
हैं। मुझे आशा है कि जिन लोगों ने इस काम
को अपने हाथ में लिया है, आगे भी इस काम को कुशलता से निभाते चले जाएँगे। जिन स्वतंत्रता सेनानियों को परमात्मा ने लंबी
उम्र दी है ओैर वे अभी हमारे बीच हैं, मैं उनको बूढ़ा नहीं समझता। मैं समझता हूँ कि उनका दिल जवान है, उनमें हिम्मत है, दिलेरी है, इसलिए वे आज भी सम्माननीय हैं।
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