महोदय, गणतंत्र
में जनसंचार के महत्व के विषय में कुछ कहने से पहले यह देखना आवश्यक है कि
गणतंत्र में कौन-कौन से अधिकार स्वीकृत हैं।
देश का नागरिक होने के नाते एक नागरिक कौन-से अधिकार या सुविधा की आशा कर
सकता है और तभी हम इसे स्पष्ट कर सकेंगे कि उन सुविधाओं अर्थात् जन गणतंत्र की
पुष्टि के लक्ष्य में जन-संचार को क्या और कैसी भूमिकाएँ निभानी चाहिए। हम सब जानते हैं कि 26 जनवरी, 1930 को देश में सर्वत्र पूर्ण स्वराज दिवस मनाया गया था। इसके बीस वर्ष बाद यानी 1950 के 26 जनवरी को
प्रजातंत्र भारत का जन्म हुआ।
भारत का संविधान मानवाधिकार, न्याय और एकता पर आधारित है। इसमें
भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है। भारत देश में जन्म के साथ-साथ ही एक व्यक्ति
कानून की नजर में समानाधिकार का हकदार बन जाता है। धर्म, जाति, लिंग और जन्मस्थान के तहत उनके ऊपर किसी भी विधि निषेध का आरोप नहीं
किया जाएगा। नौकरी के क्षेत्र में उन्हें
बराबर सुविधाएँ मिलेंगी। कोई छूत-अछूत
नहीं रहेगा। नागरिकों को अपनी भावनाओं को
व्यक्त करने की स्वतंत्रता रहेगी। निरस्त्र जनगण शांतिपूर्ण रूप से देश के किसी
भी भाग में अथवा स्थान में आ-जा सकेंगे। उन्हें
मानव के रूप में क्रय-विक्रय नहीं किया जाएगा। उनके ऊपर कोई दबाव नहीं डाला जाएगा। बच्चों को कारखानों में नियुक्त नहीं किया
जाएगा। उनके अधिकार में होगा विवेक की स्वाधीनता,
वे किसी भी धंधे को चुन सकते हैं, अपना सकते
हैं। उनके पास धर्माचरण की स्वाधीनता
होगी आदि-आदि। इन सबके साथ जिसके बलबूते
पर एक गणतांत्रिक देश दृढ़ रहता है और राष्ट्रीय एकता अटूट रहती है जनगण की परस्पर
सहयोगिता और योगदान आवश्यक है। अत: इसकी स्थापना,
प्रचार व प्रसार में जनसंचार की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। एक विश्वस्त
आशाकारी प्रतिनिधि की तरह जन संचार माध्यम चाहे वह दूरदर्शन हो, चाहे आकाशवाणी हो चाहे समाचार पत्र, देश और
देशवासियों के बीच एक मशाल का काम करता है।
एक संपर्क का काम करता है और विशेष रूप से इस पर देश की एकता और अखंडता
टिकी रहती है। इस अर्थ में जन संचार का
महत्व कुछ कम नहीं है। दूरदर्शन, आकाशवाणी समाचार पत्र - ये सब गणतंत्र के सजग प्रहरी की तरह हैं, और एक महत्वपूर्ण माध्यम भी हैं।
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