Sunday, 23 June 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 24 June, 2019 at YouTube



श्रीमानजी, भारत-अमरीका संबंधों में एक नए साहसिक युग का सूत्रपात हो रहा है।  हमने कई क्षेत्रों में दोनों देशों में अभूतपूर्व सहयोग देखा है।  हाल ही में भारतीय सेना ने अमरीकी और संयुक्‍त राष्‍ट्र की सेनाओं के साथ सोमालिया में प्रहरी के रूप में कार्य किया।  विश्‍व‍व्‍यापी पर्यावरण संकट, अंतर्राष्‍ट्रीय आतंकवाद का सामना करने और अंतर्राष्‍ट्रीय मादक द्रव्‍यों के अवैध व्‍यापार की बाढ़ को रोकने के बारे में हमारे हित समान हैं।  इन क्षेत्रों में अमरीका और भारत ने मिलकर कार्य किया है।  फिर भी बहुत-से क्षेत्र हैं जिनमें और अधिक सहयोग की आवश्‍यकता है।  प्रौद्योगिकी पर नियंत्रण रखने के उपयोगी साधन थे।  परंतु उनसे अब विकासशील देशों द्वारा अपने लोगों के जीवन स्‍तर को सुधारने के मार्ग में बाधा पड़ रही है।
अक्‍तूबर, 1949 में भारत के पहले प्रधानमंत्री, श्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, ‘’यह आवश्‍यक है, बल्कि वांछनीय है, और संभवत: अवश्‍यंभावी है कि भारत और अमरीका एक दूसरे को और अधिक समझें और एक दूसरे के साथ अधिकाधिक सहयोग करें।‘’ यह बात 1949 की है।  बाद में उसी वर्ष, प्रधानमंत्री श्री नेहरू ने भविष्‍यवाणी की कि अगले सौ वर्ष अमरीकी की शताब्‍दी होगी। ‘’प्रधानमंत्री ने सही कहा था।  20वीं शताब्‍दी अमरीकी शताब्‍दी के नाम से जानी जाएगी। अमरीका और भारत के पिछले 100 वर्षों के इतिहास में    भारत-अमरीका के संबंधों के उतार-चढ़ाव के दौरान नेहरूजी के शब्‍द सही सिद्ध हुए और दोनों देशों में मैत्री और विचारधारा के आधार पर उनके संबंध सुदृढ़ हुए। इस देश में भारतीय अमरीकियों ने जो सफलता प्राप्‍त की है, उससे पता चलता है कि विश्‍व के दो विशालतम लोकतंत्रों के बीच कितना विचार साम्‍य और एक दूसरे के प्रति कितना सम्‍मान है।
वर्तमान शताब्‍दी में भारत विश्‍व की समृद्धि एवं शांति में अपना योगदान देने की दिशा में कदम उठाने जा रहा है, हम अमरीका और अमरीकियों की चिरस्‍थायी भागीदारी के इच्‍छुक हैं।  भारत उन विकासशील देशों में से है जहाँ विकास की प्रक्रिया सुदृढ़ बन चुकी है।  हमने यह समझ लिया है कि कोई त्‍वरित मार्ग नहीं है, लोगों के पूर्ण सहयोग को प्राप्‍त करके कठिन परिश्रम में जुटने का कोई विकल्‍प नहीं है।  आँकड़ों के आधार पर भारत की जो उप‍लब्धियाँ हैं, कुछ लोगों ने उसकी सराहना की है।
(400 शब्‍द)
   श्रीमानजी, मैं कहना चाहूँगा कि यह बात अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण है।  भारत में 1950 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में शुरू किए गए सामुदायिक विकास कार्यक्रम में शुरू से सक्रिय रहने वाले एक अनुभवी कार्यकर्ता की स्थिति से मैं उन कठिनाइयों को साफ-साफ याद कर सकता हूँ जो हमारे विकास के मार्ग में आईं, जिनके लिए बहुत-से लोगों ने हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली को दोषी ठहराया।  बहुत-से विद्वानों और विशेषज्ञों, जिनमें कुछ इस देश के भी हैं, ने हमसे कहा कि लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था के अंतर्गत विकास करने के प्रयास में हम एक असंभव कार्य कर रहे हैं और असफलता तथा निराशा के सिवाय हमारे हाथ कुछ नहीं लगेगा।  बहुधा यह कहने का एक फैशन-सा हो गया कि लोकतंत्र विकास का विरोधी है और विकासशील देशों के लिए, उनके विकास के शुरू के चरणों में, यह अनुकूल नहीं होता।  यहाँ इस बात का उल्‍लेख भी किया जा सकता है कि उन वर्षों में बहुत-से देश पहले विकास करने के नाम पर, लोकतांत्रिक प्रणाली से हट गए थे।  ये सब तथ्‍य हैं।
   मैं केवल इतिहास नहीं बता रहा।  मैं इस भव्‍य सभा को बताना चाहूँगा कि विश्‍व भर में लोकतंत्र का एजेंडा अभी समाप्‍त नहीं हुआ है।  संभवत: इस प्रणाली के सिद्धांत को सर्वत्र स्‍वीकार किया जाता है परंतु यह स्‍वीकृति भी बिना शर्त नहीं है।  अंतत: किसी भी प्रणाली का बना रहना और उसका स्‍वीकार किया जाना इस बात पर निर्भर करता है कि उसमें लोगों का भला करने की कितनी क्षमता है।  यह बात शायद उन देशों पर लागू न हो जहाँ लोकतंत्र जीवन का एक अंग बन चुका है और राजनैतिक प्रक्रिया सदियों से अपनी जड़े जमा चुकी हैं – जिसके फलस्‍वरूप वहाँ यह प्रणाली आम बात बन गई है व उस पर किसी की आपत्ति नहीं है।  परंतु अन्‍यत्र तत्‍काल लाभ के लिए इसमें काँट-छाँट करने का लालच और लोकतंत्र का स्‍वांग रचने की प्रवृत्ति, जबकि वास्‍तविक सत्‍ताधीश इसे मुखौटे के रूप में प्रयोग कर रहे हों - इन बातों पर इस प्रणाली के वास्‍तविक समर्थकों को बैठकर सोचना चाहिए।
   इस समय इस विषय पर अनेक विचार सुनाई देते हैं, इसलिए शायद इनके बीच मेरा यह विचार समरस न हो।  मैं समझता हूँ कि विश्‍व का आधारभूत और सबसे अधिक आवश्‍यक कार्य लोकतंत्र को सुदृढ़ और सशक्‍त बनाना होगा।

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