सभापति जी, भारत के अग्रणी मनीषियों ने राष्ट्र
के विकास के लिए युवा शक्ति का उपयोग करने के प्रयास किए हैं और इनमें महात्मा
गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर के नाम उल्लेखनीय हैं।
यह मात्र संयोग ही नहीं है कि महात्मा गांधी और कवि टैगोर ने अपने-अपने
तरीके से आश्रम की अवधारणा का उपयोग साबरमती और शांति निकेतन में यह दिखाने के लिए
किया कि समाज की परंपरा और सभ्यता की परिधि में रह कर भी अभिनव प्रयोग किए जा सकते
हैं। मैं विशेष रूप से कवि के उस शैक्षिक
दर्शन और शिक्षा पद्धति में उन प्रयोगों की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा जिनके
माध्यम से उन्होंने सामाजिक और राष्ट्रीय महत्व की समस्याओं के निराकरण का प्रयास
किया।
आपको याद होगा कि श्रीनिकेतन में कवि और उनके
मित्र ने ग्रामीण नवनिर्माण की उस कार्य योजना को आगे बढ़ाया जिसमें एक साथ
अनुसंधान, सामाजिक कार्य, कृषि में नए प्रयोग तथा ऐसे लोगों के प्रशिक्षण की भी
व्यवस्था थी कि जो श्रीनिकेतन से निकलकर ग्रामीण क्षेत्रों में गाँवों के विकास को
प्रोत्साहन देने जाएँगे। गांधी जी ने साबरमती आश्रम को आधार बनाकर ग्रामीण
उद्योगों, विशेषकर खादी कातने और बुनने के पुनरुत्थान के लिए जो कार्य योजना बनाई
थी वह भी बहुत कुछ इस योजना से मिलती-जुलती ही थी। यद्यपि इन दोनों महान चिंतकों
में पारंपरिक उद्योगों का आधुनिकीकरण जैसे, कुछ विषयों पर मतभेद थे, लेकिन उनका
लक्ष्य एक था एवं दोनों ने ही अपने विचारों को मूर्त रूप देने के लिए आश्रम को
आधार बनाया।
मानव
संसाधन विकास में युवा पीढ़ी की भूमिका पर समसामयिक अर्थव्यवस्था और समाज की नई
माँगों के परिप्रेक्ष्य में विचार करने की आवश्यकता है। संभवतया युवा पीढ़ी की भूमिका पर तथा युवा
पीढ़ी को संसार से परिचित कराने वाले शैक्षिक संस्थानों की भूमिका पर पुनर्विचार
करते समय हमें रवींद्रनाथ टैगोर के
शांति निकेतन में किए गए शैक्षिक प्रयासों के मूल में उनके दर्शन के अध्ययन से
बहुत लाभ हो सकता है। हमें अपने नए चिंतन
और कर्म का आधार टैगोर जैसे महान नेताओं के कार्यों और परंपराओं को बनाना होगा। कौन-से ऐसे क्षेत्र हैं जिसमें शिक्षित युवा
पीढ़ी मानव संसाधन विकास और मोटे तौर पर समाज के निर्माण में उल्लेखनीय भूमिका
निभा सकती है। शायद ऐसी गतिविधियों के लिए
तीन सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र हैः निरक्षरता उन्मूलन, गैर-सरकारी संगठन और
स्वयंसेवी संगठन।
Sid
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