उपसभापति
जी, भारत
ने अगली पीढ़ी के लिए हमारे इतिहास के निर्माण के लिए पहला कदम उठा लिया है। दशकों से चली आ रही केंद्रीयकृत आर्थिक नीतियों
के उपरांत, भारत ने हाल में एक सुधार कार्यक्रम शुरू किया
है जिससे हमारी अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण, व्यापार व उदारीकरण
और आर्थिक क्षमता का पूरा उपयोग हो सके।
हमने निजी निवेश और प्रतियोगिता का स्वागत किया है और खुले बाजार के विकास
को बढ़ावा दिया है। इसके फलस्वरूप,
भारत विश्व में स्पर्धा में टिकने में सक्षम हुआ है और हमारे
नागरिकों का जीवन स्तर धीरे-धीरे ऊँचा उठ रहा है। इन सुधारों की गति से भारत वर्तमान शताब्दी
में विश्व के अकेले सबसे बड़े खुले बाजार के रूप में उभरेगा।
संभवत: भारत के महत्वाकांक्षी आर्थिक सुधार कार्यक्रम
की सबसे उल्लेखनीय विशेषता यह है कि बड़े ही सहज ढंग से एक बंद और संरक्षित अर्थव्यवस्था, एक खुली निर्यातोन्मुख अर्थव्यवस्था के रूप में बदली है। तीन वर्षों की अल्प अवधि में दूरगामी परिर्वतन
किए गए हैं। इसके साथ ही सामाजिक व्यवस्था
पर पड़ने वाले गंभीर परिणामों के निराकरण के लिए तत्काल कारगर कदम उठाए गए
हैं। इन कदमों तथा आमतौर पर भारत की
विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं की सहमति के फलस्वरूप, इस
सुधार प्रक्रिया को अपनी एक विशिष्ट गति मिली है।
भारत में हो रहे इन परिवर्तनों का भारत-अमरीकी
आर्थिक संबंधों पर काफी प्रभाव पड़ा है और इनसे दोनों देशों को लाभ हुआ है। नए आर्थिक संबंध बनाने के क्षेत्र में अमरीकी
फर्में अग्रणी रही हैं। भारत का विशाल
घरेलू बाजार, विशाल शिक्षित, कुशल और
अर्ध-कुशल श्रम शक्ति, सुदृढ़ वित्तीय संस्थाएँ और समय की
कसौटी पर जाँची-परखी जाती लोकतांत्रिक व्यवस्था इन सबने मिलकर अग्रगामी कंपनियों
को निवेश के विशाल अवसर प्रदान किए हैं। वर्तमान
शताब्दी के लिए अपने इतिहास की रचना करते समय हमें विभिन्न देशों के साथ और अधिक
व्यापार की ओर ध्यान देना होगा। पिछली
आधी शताब्दी की एक दुभाग्यपूर्ण घटना दुनिया में विनाशकारी आयुधों का निर्माण
है। नाभिकीय आयुधों के प्रसार के कठिन और
जटिल प्रश्न पर प्रभावकारी ढंग से तभी विचार किया जा सकता है जब उनकी विश्वव्यापी
संहार क्षमता पर विचार करें और इसी तरह इनके विश्वव्यापी समाधान भी खोजें। प्रत्येक राष्ट्र, चाहे
बड़ा हो या छोटा, संप्रभुता-संपन्न होता है।
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