Sunday, 30 June 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 1 July, 2019 at YouTube


     अध्‍यक्ष महोदय, जब कुछ वर्ष पूर्व परिषद की बैठक श्रीनगर में हुई, तो उस पर उन सांप्रदायिक दंगों की याद मंडरा रही थी जो कुछ ही समय पहले हो चुके थे । इसलिए हमने परिषद के कार्यों के विभिन्‍न पक्षों की चर्चा की, हमारा प्रयास मुख्‍यत: संकीर्ण अर्थों में सांप्रदायिकता से यानी सांप्र‍दायिक हिंसा से निपटने तक सीमित रहा।  हम जानते हैं कि समाज में तनावों के कई कारण होते हैं : सांस्‍कृतिक, आर्थिक और सामाजिक।  इन्‍हें दूर करना होता है।  हमें उनको कुरूपता और हिंसा की सीमा तक बढ़ने से रोकना होता है।  अल्‍पसंख्‍यकों की भलाई की चिंता करते रहना हम सब का विशेष कर्तव्‍य होना चाहिए।  यही कारण है कि हमने इसका उल्‍लेख अपने चुनाव घोषणापत्र में तथा अन्‍य अवसरों पर किया और इन वचनबद्धताओं को कार्यन्वित करना होगा।  इसको करने का एक तरीका यह है कि राष्‍ट्रीय एकता की संपूर्ण धारणा को व्‍यापकता प्रदान की जाए ।
   इसके लिए सरकारी स्‍तर पर समुचित उपाय करने पर विचार किया जा रहा है और जो भी व्‍यवस्‍था की जाएगी, उसका एक मुख्‍य काम अल्‍पसंख्‍यकों की विशेष समस्‍याओं और हितों को देखना होगा।  यद्यपि मैंने ‘’अल्‍पसंख्‍यक’’ कहा, जैसाकि मैं पहले कह चुकी हूँ, जब हमने परिषद का गठन किया था, तो हमारा आशय भारतीय नागरिकों, हरिजनों आदि के अधिकारों के पूरे क्षेत्र की ओर ध्‍यान देने का था।  हालाँकि उन पर गौर करने के लिए पृथक संगठन बने हुए हैं।  यह कहना सही नहीं है कि पिछले सारे वर्ष व्‍यर्थ चले गए, क्‍योंकि कुछ-न-कुछ तो किया ही गया है।  लेकिन यह सही है कि और भी कुछ किया जा सकता था और मुझे आशा है कि अब इन कामों में तेजी लाई जाएगी।  उदाहरण के लिए, हम सेवाओं के पूरे प्रश्‍न पर गौर करते रहे हैं। ऐसी बहुत-सी बातें सामने नहीं आ पातीं।  लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि कोई उपेक्षा बरती जा रही है।  उन पर गौर किया जा रहा है । उन पर राष्‍ट्रीय एकता परिषद ने विचार नहीं किया था, लेकिन गृह मंत्रालय कर रहा है।
   मैं सहमत हूँ कि और भी बहुत कुछ किया जा सकता है और किया जाना चाहिए।  हम यह करेंगे इसका एक भाग उर्दू भाषा है।  इस विषय में भी मैंने अपने विचार साफ तौर पर बता दिए हैं।  इस प्रश्‍न पर मुख्‍यमंत्रियों से विचार-विमर्श किया है।

Thursday, 27 June 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 28 June, 2019 at YouTube


अध्‍यक्ष महोदय, केंद्र-राज्‍य संबंधों को बेहतर बनाने के नाम पर कई सुझाव और योजनाएँ प्रस्‍तुत की गई हैं।  यह विचार करना माननीय सदस्‍यों और निस्‍संदेह मुख्‍यमंत्रियों का काम है कि क्‍या उनसे केंद्र-राज्‍य सहयोग सुदृढ़ होगा या वे विवाद की कोई गाँठ डालेंगे, या उनसे देश की एकता मजबूत होगी, या विभाजक प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलेगा।  जो भी समस्‍याएँ विद्यमान हैं या भविष्‍य में हो सकती हैं, उन्‍हें तर्क-वितर्क या टकराव द्वारा नहीं, बल्कि उनका संतोषजनक हल खोजने के लिए, उन्‍हें संयुक्‍त प्रयास से ही सुलझाया जा सकता है।  स्‍वाभाविक है कि कोई भी समाधान ऐसा नहीं है जो सभी पक्षों को पूर्ण संतोष दे सके।  लेकिन हमारी कोशिश यह देखने की होनी चाहिए कि व्‍यापक हितों को किस चीज से संभव बनाया जा सकता है।
   राज्‍यों के बारे में जब कभी ऐसा कोई प्रश्‍न उठता है, तो लोगों की भावनाएँ सरलता से भड़काई जा सकती हैं, विशेष रूप से, भाषा और धर्म के नाम पर या सीमा-विवाद को लेकर अथवा पृथक राष्‍ट्र के चमत्‍कृत करने वाले नारे के साथ।  इन सभी प्रश्‍नों का अधिकांशत: राजनैतिक पक्ष भी है, लेकिन उसका लाभ तभी उठाया जा सकता है जब वास्‍तव में किसी आर्थिक या अन्‍य शिकायत का कारण उपस्थित हो।  और यहाँ जो अनेक प्रश्‍न उठाए गए हैं, उनमें से अधिकांश मामलों में मुख्‍य बात है पिछड़े क्षेत्रों की आर्थिक अवस्‍था या विकास की।  इस दिशा में हम प्रयास करते रहे हैं और जहाँ-कहीं विकास के मामले में कोई उपेक्षा या देर हुई है, वहाँ स्थिति में सुधार के लिए जो कुछ भी संभव हो सकता है, करते रहे हैं। स्‍वाभाविक तौर पर तेलंगाना का संदर्भ आया है और उसके लिए भी हम कोशिश कर रहे हैं कि सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के क्रम में वहाँ के लोगों को आगे बढ़ाया जाए।
यह एहसास पाया जाता है कि इस प्रकार की भागीदारी को और मजबूत बनाया जाना चाहिए।  हम विभिन्‍न लोगों के साथ विचार-विनिमय करते रहे हैं।  मैं सहमत हूँ कि उस क्षेत्र में या अन्‍य क्षेत्रों में पाए जाने वाले विवादों को तेजी से हल किया जाना चाहिए।  कुछ सदस्‍यों ने समय-समय पर भड़क उठने वाले सांप्रदायिक दंगों के बारे में जो तीव्र भावना व्‍यक्‍त की, उसे हम समझे हैं और हम स्‍वयं इसे गहराई से अनुभव करते हैं। राष्‍ट्रीय एकता परिषद के कार्य पर भी विचार करना था।

Sunday, 23 June 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 24 June, 2019 at YouTube



श्रीमानजी, भारत-अमरीका संबंधों में एक नए साहसिक युग का सूत्रपात हो रहा है।  हमने कई क्षेत्रों में दोनों देशों में अभूतपूर्व सहयोग देखा है।  हाल ही में भारतीय सेना ने अमरीकी और संयुक्‍त राष्‍ट्र की सेनाओं के साथ सोमालिया में प्रहरी के रूप में कार्य किया।  विश्‍व‍व्‍यापी पर्यावरण संकट, अंतर्राष्‍ट्रीय आतंकवाद का सामना करने और अंतर्राष्‍ट्रीय मादक द्रव्‍यों के अवैध व्‍यापार की बाढ़ को रोकने के बारे में हमारे हित समान हैं।  इन क्षेत्रों में अमरीका और भारत ने मिलकर कार्य किया है।  फिर भी बहुत-से क्षेत्र हैं जिनमें और अधिक सहयोग की आवश्‍यकता है।  प्रौद्योगिकी पर नियंत्रण रखने के उपयोगी साधन थे।  परंतु उनसे अब विकासशील देशों द्वारा अपने लोगों के जीवन स्‍तर को सुधारने के मार्ग में बाधा पड़ रही है।
अक्‍तूबर, 1949 में भारत के पहले प्रधानमंत्री, श्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, ‘’यह आवश्‍यक है, बल्कि वांछनीय है, और संभवत: अवश्‍यंभावी है कि भारत और अमरीका एक दूसरे को और अधिक समझें और एक दूसरे के साथ अधिकाधिक सहयोग करें।‘’ यह बात 1949 की है।  बाद में उसी वर्ष, प्रधानमंत्री श्री नेहरू ने भविष्‍यवाणी की कि अगले सौ वर्ष अमरीकी की शताब्‍दी होगी। ‘’प्रधानमंत्री ने सही कहा था।  20वीं शताब्‍दी अमरीकी शताब्‍दी के नाम से जानी जाएगी। अमरीका और भारत के पिछले 100 वर्षों के इतिहास में    भारत-अमरीका के संबंधों के उतार-चढ़ाव के दौरान नेहरूजी के शब्‍द सही सिद्ध हुए और दोनों देशों में मैत्री और विचारधारा के आधार पर उनके संबंध सुदृढ़ हुए। इस देश में भारतीय अमरीकियों ने जो सफलता प्राप्‍त की है, उससे पता चलता है कि विश्‍व के दो विशालतम लोकतंत्रों के बीच कितना विचार साम्‍य और एक दूसरे के प्रति कितना सम्‍मान है।
वर्तमान शताब्‍दी में भारत विश्‍व की समृद्धि एवं शांति में अपना योगदान देने की दिशा में कदम उठाने जा रहा है, हम अमरीका और अमरीकियों की चिरस्‍थायी भागीदारी के इच्‍छुक हैं।  भारत उन विकासशील देशों में से है जहाँ विकास की प्रक्रिया सुदृढ़ बन चुकी है।  हमने यह समझ लिया है कि कोई त्‍वरित मार्ग नहीं है, लोगों के पूर्ण सहयोग को प्राप्‍त करके कठिन परिश्रम में जुटने का कोई विकल्‍प नहीं है।  आँकड़ों के आधार पर भारत की जो उप‍लब्धियाँ हैं, कुछ लोगों ने उसकी सराहना की है।
(400 शब्‍द)
   श्रीमानजी, मैं कहना चाहूँगा कि यह बात अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण है।  भारत में 1950 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में शुरू किए गए सामुदायिक विकास कार्यक्रम में शुरू से सक्रिय रहने वाले एक अनुभवी कार्यकर्ता की स्थिति से मैं उन कठिनाइयों को साफ-साफ याद कर सकता हूँ जो हमारे विकास के मार्ग में आईं, जिनके लिए बहुत-से लोगों ने हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली को दोषी ठहराया।  बहुत-से विद्वानों और विशेषज्ञों, जिनमें कुछ इस देश के भी हैं, ने हमसे कहा कि लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था के अंतर्गत विकास करने के प्रयास में हम एक असंभव कार्य कर रहे हैं और असफलता तथा निराशा के सिवाय हमारे हाथ कुछ नहीं लगेगा।  बहुधा यह कहने का एक फैशन-सा हो गया कि लोकतंत्र विकास का विरोधी है और विकासशील देशों के लिए, उनके विकास के शुरू के चरणों में, यह अनुकूल नहीं होता।  यहाँ इस बात का उल्‍लेख भी किया जा सकता है कि उन वर्षों में बहुत-से देश पहले विकास करने के नाम पर, लोकतांत्रिक प्रणाली से हट गए थे।  ये सब तथ्‍य हैं।
   मैं केवल इतिहास नहीं बता रहा।  मैं इस भव्‍य सभा को बताना चाहूँगा कि विश्‍व भर में लोकतंत्र का एजेंडा अभी समाप्‍त नहीं हुआ है।  संभवत: इस प्रणाली के सिद्धांत को सर्वत्र स्‍वीकार किया जाता है परंतु यह स्‍वीकृति भी बिना शर्त नहीं है।  अंतत: किसी भी प्रणाली का बना रहना और उसका स्‍वीकार किया जाना इस बात पर निर्भर करता है कि उसमें लोगों का भला करने की कितनी क्षमता है।  यह बात शायद उन देशों पर लागू न हो जहाँ लोकतंत्र जीवन का एक अंग बन चुका है और राजनैतिक प्रक्रिया सदियों से अपनी जड़े जमा चुकी हैं – जिसके फलस्‍वरूप वहाँ यह प्रणाली आम बात बन गई है व उस पर किसी की आपत्ति नहीं है।  परंतु अन्‍यत्र तत्‍काल लाभ के लिए इसमें काँट-छाँट करने का लालच और लोकतंत्र का स्‍वांग रचने की प्रवृत्ति, जबकि वास्‍तविक सत्‍ताधीश इसे मुखौटे के रूप में प्रयोग कर रहे हों - इन बातों पर इस प्रणाली के वास्‍तविक समर्थकों को बैठकर सोचना चाहिए।
   इस समय इस विषय पर अनेक विचार सुनाई देते हैं, इसलिए शायद इनके बीच मेरा यह विचार समरस न हो।  मैं समझता हूँ कि विश्‍व का आधारभूत और सबसे अधिक आवश्‍यक कार्य लोकतंत्र को सुदृढ़ और सशक्‍त बनाना होगा।

Thursday, 20 June 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 21 June, 2019 at YouTube












     

उपसभापति जी, मुझे इस बात पर दृढ़ विश्‍वास है कि विश्‍व को विनाशकारी आयुधों से मुक्‍त कराने का मार्ग एक ऐसी विश्‍वव्‍यापी व्‍यवस्‍था के निर्माण में निहित है जो सुरक्षा के रूप में समानता एवं निष्‍पक्षता के सार्वभौम सिद्धांतों पर आधारित हो।  वर्तमान शताब्‍दी में विश्‍व के राष्‍ट्र इसका जो समाधान अपनाएँगे वही आने वाली शताब्‍दी में विश्‍व की नियति को निर्धारित करेगा।  नाभिकीय आयुधों के परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाने और नाभिकीय आयुधों के काम आने वाली विखंडनीय सामग्री के उत्‍पादन पर रोक लगाने के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय सहमति प्राप्‍त करने की दिशा में प्रगति हुई है।  इस अंतर्राष्‍ट्रीय सहमति के लिए भारत और अमरीका ने मिलकर काम किया है।  इन उपलब्धियों को ठोस रूप देने के लिए विनाभिकीकरण की दिशा में और अधिक सार्थक कदम उठाए जाने चाहिए तथा आज अंतर्राष्‍ट्रीय परिस्थितियों में ऐसा संभव है।   हमें बहुत कुछ और करना है।  हमारा उद्देश्‍य है नाभिकीय आयुधों से मुक्‍त विश्‍व।  इस बीच जहाँ एक ओर नाभिकीय निरस्‍त्रीकरण के लिए गंभीर बहुपक्षीय वार्ताएँ चलें, वहीं सावधानी के तौर पर, लघु अवधि के लिए नाभिकीय आयुध का ‘‘पहला प्रयोग नहीं’’ समझौता, बल्कि वास्‍तव में नाभिकीय आयुधों के प्रयोग पर रोक लगाना आवश्‍यक है।  सार्वभौम विधि और संविधान की भावना के अनुरूप इन राज्‍यों का संघ चिरस्‍थायी है।  सभी राष्‍ट्रों के मूलभूत कानून में भले ही यह व्‍यक्‍त न की गई हो, चिरस्‍थायित्‍व निहित है।  यह बेहिचक कहा जा सकता है कि किसी भी सुगठित सरकार ने अपने कानून में स्‍वयं की समाप्ति का प्रावधान नहीं रखा।  भौतिक रूप से हम अलग नहीं हो सकते।  हम अपने विभिन्‍न अंगों को अलग नहीं कर सकते, न ही उनके बीच एक अलंघ्‍य दीवार खड़ी कर सकते हैं। पति और पत्‍नी का तलाक हो सकता है और वे एक दूसरे से दूर और इतना दूर जा सकते हैं कि वे एक दूसरे से मिल न सकें।  किंतु हमारे देश के विभिन्‍न भाग ऐसा नहीं कर सकते।  उन्‍हें तो आमने-सामने ही रहना होगा और उनमें आपसी आदान-प्रदान चलता ही रहेगा, चाहे वह सौहार्द्रपूर्ण भाव से हो या विरोधी भाव से।यह राष्‍ट्रों का उत्‍तरदायित्‍व है कि वे वर्ण, धर्म अथवा जाति का ध्‍यान किए बिना कानून के अंतर्गत अपने सभी नागरिकों के जीवन और स्‍वतंत्रता की रक्षा करें।  जैसे आप अमरीका के इस महान लोकतंत्र में करते हैं, हम भी अपने यहाँ व्‍यावहारिक रूप में भारत में दृढ़प्रतिज्ञ हैं।

Tuesday, 18 June 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 19 June, 2019 at YouTube


   उपसभापति जी, भारत ने अगली पीढ़ी के लिए हमारे इतिहास के निर्माण के लिए पहला कदम उठा लिया है।  दशकों से चली आ रही केंद्रीयकृत आर्थिक नीतियों के उपरांत, भारत ने हाल में एक सुधार कार्यक्रम शुरू किया है जिससे हमारी अर्थव्‍यवस्‍था का आधुनिकीकरण, व्‍यापार व उदारीकरण और आर्थिक क्षमता का पूरा उपयोग हो सके।  हमने निजी निवेश और प्रतियोगिता का स्‍वागत किया है और खुले बाजार के विकास को बढ़ावा दिया है।  इसके फलस्‍वरूप, भारत विश्‍व में स्‍पर्धा में टिकने में सक्षम हुआ है और हमारे नागरिकों का जीवन स्‍तर धीरे-धीरे ऊँचा उठ रहा है।  इन सुधारों की गति से भारत वर्तमान शताब्‍दी में विश्‍व के अकेले सबसे बड़े खुले बाजार के रूप में उभरेगा।
   संभवत: भारत के महत्‍वाकांक्षी आर्थिक सुधार कार्यक्रम की सबसे उल्‍लेखनीय विशेषता यह है कि बड़े ही सहज ढंग से एक बंद और संरक्षित अर्थव्‍यवस्‍था, एक खुली निर्यातोन्‍मुख अर्थव्यवस्‍था के रूप में बदली है।  तीन वर्षों की अल्‍प अवधि में दूरगामी परिर्वतन किए गए हैं।  इसके साथ ही सामाजिक व्‍यवस्‍था पर पड़ने वाले गंभीर परिणामों के निराकरण के लिए तत्‍काल कारगर कदम उठाए गए हैं।  इन कदमों तथा आमतौर पर भारत की विभिन्‍न राजनैतिक विचारधाराओं की सहमति के फलस्‍वरूप, इस सुधार प्रक्रिया को अपनी एक विशिष्‍ट गति मिली है।
   भारत में हो रहे इन परिवर्तनों का भारत-अमरीकी आर्थिक संबंधों पर काफी प्रभाव पड़ा है और इनसे दोनों देशों को लाभ हुआ है।  नए आर्थिक संबंध बनाने के क्षेत्र में अमरीकी फर्में अग्रणी रही हैं।  भारत का विशाल घरेलू बाजार, विशाल शिक्षित, कुशल और अर्ध-कुशल श्रम शक्ति, सुदृढ़ वित्‍तीय संस्‍थाएँ और समय की कसौटी पर जाँची-परखी जाती लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था इन सबने मिलकर अग्रगामी कंपनियों को निवेश के विशाल अवसर प्रदान किए हैं।  वर्तमान शताब्‍दी के लिए अपने इतिहास की रचना करते समय हमें विभिन्‍न देशों के साथ और अधिक व्‍यापार की ओर ध्‍यान देना होगा।  पिछली आधी शताब्‍दी की एक दुभाग्‍यपूर्ण घटना दुनिया में विनाशकारी आयुधों का निर्माण है।  नाभिकीय आयुधों के प्रसार के कठिन और जटिल प्रश्‍न पर प्रभावकारी ढंग से तभी विचार किया जा सकता है जब उनकी विश्‍वव्‍यापी संहार क्षमता पर विचार करें और इसी तरह इनके विश्‍वव्‍यापी समाधान भी खोजें।  प्रत्‍येक राष्‍ट्र, चाहे बड़ा हो या छोटा, संप्रभुता-संपन्‍न होता है।

Sunday, 16 June 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 17 June, 2019 at YouTube


    उपाध्यक्ष महोदय, हमारे देश में पंचायती राज का कितना महत्व है, इसे सभी जानते हैं क्योंकि इसका हजारों वर्ष पुराना इतिहास रहा है।  विकेंद्रीकृत जनतांत्रिक कार्य प्रणाली ने निश्चय ही हमारे देश में सफलतापूर्वक काम किया है और आज भी, जहाँ पंचायतों का शासन स्थापित है वहाँ पर भी यह प्रणाली पर्याप्त सार्थक है।  साथ ही यह मजबूत तथा प्रभुत्वकारी है।  विशेष रूप से भारत जैसे देश में, जहाँ संचार-व्यवस्था इतनी जर्जर हो, यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।  यहाँ स्थानीय स्तर पर विकेंद्रकरण बहुत ही आवश्यक है।
   यद्यपि हमारे संविधान के निर्माताओं ने देश के लिए पंचायती राज प्रणाली की कल्पना की थी।  इसे अस्तित्व में लाने की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़ दी गई।  हमने समय-समय पर पंचायत के चुनाव कराए लेकिन संसद सदस्यों, राज्यों के विधायकों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री के बीच सत्ता के वितरण के प्रश्न पर आपसी हितों की जो टकराहट होती रही, उससे पंचायती राज व्यवस्था का कारगर ढंग से कार्यान्वयन करने में बहुत बड़ी बाधा पड़ी।  यही कारण है कि पंचायतों के चुनाव कभी बाढ़ का बहाना लेकर तो कभी सूखे को आधार बनाकर प्रायः टाले जाते रहे जबकि इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि कोई भी सही अर्थों में सत्ता में हिस्सेदारी को पसंद नहीं करता था।  हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने पहली बार यह अनुभव किया कि अगर पंचायतों का काम-काज पूरी तरह राज्यों पर छोड़ दिया गया तो संभवतः कभी भी पंचायती राज को व्यावहारिक रूप नहीं दिया जा सकेगा।
   कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों ने पंचायत कानून का अच्छा रूप प्रस्तुत किया।  इस राज्य में चुनाव भी हुए लेकिन जब सत्ता को नीचे तक ले जाने की बात आई तो राज्य के शक्तिशाली मंत्रियों और विधायकों ने राज्य के पंचायत अधिनियम में व्यक्त उद्देश्यों के अनुरूप सत्ता को नीचे तक ले जाने से मुख्यमंत्री को रोक दिया।  संवैधानिक संशोधन के बाद अब यह सभी राज्यों के लिए अनिवार्य हो गया है कि वे हर पाँच वर्ष बाद पंचायत के चुनाव कराएँ और कानून अनुसार सत्ता को नीचे के स्तर तक ले जाएँ।  जिस समय यह संविधान संशोधन पारित हुआ, मैं एक सांसद था और सौभाग्यवश मैं उस समिति का सदस्य भी था, जिसने इस संशोधन को तैयार किया था। बहुत-सी बातें राज्यों को तय करने के लिए छोड़ दी गई है।
(400 शब्‍द)
   उपाध्‍यक्ष महोदय, मेरी व्‍यक्तिगत राय है कि सत्‍ता और अधिकार के संबंध में और भी अधि‍क स्‍पष्‍ट विभाजन रेखा होनी चाहिए थी ताकि राज्‍य सरकारों को बचाव का कोई रास्‍ता न मिल सके।  लेकिन इस प्रस्‍ताव पर विचार करने का काम लोकसभा का है।  मध्‍य प्रदेश जैसे राज्‍य में 30 हजार पंचायतों और दो लाख से अधिक पंचों का चुनाव कराना बहुत बड़ा काम था।  हमने अपना चुनाव आयोग और वित्‍त आयोग बनाया लेकिन लेागों ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में हमें पर्याप्‍त महिला उम्‍मीदवार नहीं मिल सकेंगी।  राजीव गांधी ने गाँव की श्रेणीबद्ध प्रथा को ठीक ही देखा था कि गाँवों में कमजोर वर्ग के लोग कभी भी उस स्‍तर पर सत्‍ता में भागीदारी का अवसर नहीं पा सकेंगे ।
हमारे सामने एकमात्र विकल्‍प यह था कि महिलाओंअनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए सीटें सुरक्षित कर दें।  इसलिए हमने यह आरक्षण देने का काम शुरू किया लेकिन यह प्रश्‍न उठाया गया है कि किस प्रकार अलग-अलग चुनाव निशानों सहित चार अलग-अलग पेटिकाओं में एक निरक्षर ग्रामीण यह जान सकेगा कि पंच के लिए हवाई जहाज के निशान पर, सरपंच के लिए डोल्‍ची के निशान पर, ब्‍लाक सदस्‍य के लिए बैलगाड़ी के निशान पर वोट डाला जाए।  फिर भी हम अपने कार्यक्रम के अनुसार चलते रहे।  हमारे पास अलग-अलग रंगों के मतपत्र थे और आश्‍चर्य है कि मतदाताओं को अपनी पंसद के उम्‍मीदवार का चयन करने में कोई कठिनाई नहीं हुई।  हालाँकि इस चुनाव में कुछ पैनल भी थे।  प्रत्‍येक शक्तिशाली व्‍यक्ति के पास पंच से लेकर जिला परिषद सदस्‍य का अपना पैनल था। 
   इस घटना से भारतीय मतदाता की परिपक्‍वता का पता चलता है।  इससे यह पता चलता है कि एक निरक्षर भारतीय नागरिक के पास सामान्‍य समझ और प्रतिभा की कमी नहीं है।  हमने प्रक्रिया जारी रखी और चुनाव संपन्‍न हुए।  जब सत्‍ता के हस्‍तांतरण की बात आई तो उन वर्गों ने, जो पंचायतों के साथ सत्‍ता की हिस्‍सेदारी में हिचकिचाहट दिखा रहे थे, इस विषय को फिर उठाया और राज्‍य मंत्रिमंडल की बैठक शुरु होने से एक दिन पूर्व मेरे कुछ सहकर्मी मेरे पास आए और उन्‍होंने पूछा – क्‍या आप सचमुच इन मामलों के प्रति गंभीर हैं? मैंने कहा, “यह एक ऐसा वचन है जो हमने स्‍वयं ही किया है और इससे पीछे हटने का प्रश्‍न ही पैदा नहीं होता

Friday, 14 June 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 15 June, 2019 at Youtube


   सभापति जी, रुढ़िवादिता का सामना करने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए भागीदारी तथा जनसंख्‍या संबंधी शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण कार्यक्रमों को प्रश्रय देने के लिए लोगों की चेतना में परिवर्तन लाने के लिए शिक्षित युवा पीढ़ी का उपयोग।  यह कतिपय उदाहरण ही  हैं लेकिन इनके अंतर्गत आने वाली गतिविधियाँ वास्‍तव में बहुत व्‍यापक हैं।  साधनों के अभाव के कारण नि:संदेह अनेक कठिनाइयाँ हैं।  समूची राष्‍ट्रीय नीतियों के ढाँचे में इन अवरोधों को यथासंभव दूर करना हमारा लक्ष्‍य रहा है।  शिक्षा इस दृष्टि से अभी हमारे लिए सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण क्षेत्र बना हुआ है। शैक्षिक संस्‍थाओं की आवश्‍यकताओं की ओर हमें ध्‍यान देना होगा क्‍योंकि शिक्षा में निवेश ही देश के विकास से अभिन्‍न रूप से जुड़े मानव संसाधन विकास का आधार है।  
   राष्‍ट्रीय साक्षराता मिशन के अंतर्गत पूरे देश में निरक्षरता उल्‍मूलन के लिए एक विशाल कार्यक्रम शुरू हो चुका है।  जिन जिलों में मिशन अपने कार्यक्रम चला रहा है, वहाँ पर विश्‍वविद्यालय  अपने युवाओं की शक्ति को इस ओर लगा सकते हैं।  युवा क्रियाकलापों को इस क्षेत्र में सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण पहलू जन समूह को आधारभूत साक्षरता की शिक्षा देने वाले ज्ञान केंद्रों में सम्मिलित होने के लिए उत्‍साहित करने हेतु उपयुक्‍त वातावरण का निर्माण होना चाहिए।  वातावरण के निर्माण का मतलब है कि एक ऐसी संस्‍कृति का विकास जिसमें लोगों में लिखना-पढ़ना-सीखने की लालसा उत्‍पन्‍न हो तकि वे साक्षरता प्राप्‍त करने वालों की पहली सीढ़ी में शामिल हों।  वातावरण निर्माण के काम के अतिरिक्‍त ज्ञान देना, विभिन्‍न श्रेणियों के प्रशिक्षकों, मुख्‍य दिशा देने वाले व्‍यक्तियों, कुशल प्रशिक्षकों और स्‍वयंसेवी शिक्षकों की माँग भी बढ़ती जा रही है।  विश्‍वविद्यालय के छात्र समुदाय की इस प्रकार के कामों और अधिक भागीदारी पर कुछ व्‍यय भी नहीं होना और इस प्रकार साक्षरता अभियान को सरकार द्वारा नियुक्‍त किए जाने वालों से कहीं अधिक अच्‍छे शिक्षित व्‍यक्ति उपलब्‍ध होंगे।
   विश्‍वविद्यालय के छात्र इस प्रकार जो स्‍वेच्‍छा से सेवा करेंगे इसकी गुण्‍वत्‍ता उससे कहीं अच्‍छी होगी जो कि वेतन पर काम कर रहे अपेक्षाकृत कम शिक्षित लोगों से मिलेगा।  इन्‍हीं कारणों से यह अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है कि युवा पीढ़ी को और अधिक आभास इस बात का हो कि राष्‍ट्रीय साक्षरता  अभियान में उनकी सेवाओं की कितनी भारी आवश्‍यकता है देश में व्‍यापक रूप से चारों ओर फैली अज्ञानता में विश्‍वविद्यालय ज्ञान-सेतु की भूमिका निबाहते हैं।

Monday, 10 June 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 11 June, 2019 at Youtube


     सभापति जी, भारत के अग्रणी मनीषियों ने राष्ट्र के विकास के लिए युवा शक्ति का उपयोग करने के प्रयास किए हैं और इनमें महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर के नाम उल्लेखनीय हैं।  यह मात्र संयोग ही नहीं है कि महात्मा गांधी और कवि टैगोर ने अपने-अपने तरीके से आश्रम की अवधारणा का उपयोग साबरमती और शांति निकेतन में यह दिखाने के लिए किया कि समाज की परंपरा और सभ्यता की परिधि में रह कर भी अभिनव प्रयोग किए जा सकते हैं।  मैं विशेष रूप से कवि के उस शैक्षिक दर्शन और शिक्षा पद्धति में उन प्रयोगों की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा जिनके माध्यम से उन्होंने सामाजिक और राष्ट्रीय महत्व की समस्याओं के निराकरण का प्रयास किया।
आपको याद होगा कि श्रीनिकेतन में कवि और उनके मित्र ने ग्रामीण नवनिर्माण की उस कार्य योजना को आगे बढ़ाया जिसमें एक साथ अनुसंधान, सामाजिक कार्य, कृषि में नए प्रयोग तथा ऐसे लोगों के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था थी कि जो श्रीनिकेतन से निकलकर ग्रामीण क्षेत्रों में गाँवों के विकास को प्रोत्साहन देने जाएँगे। गांधी जी ने साबरमती आश्रम को आधार बनाकर ग्रामीण उद्योगों, विशेषकर खादी कातने और बुनने के पुनरुत्थान के लिए जो कार्य योजना बनाई थी वह भी बहुत कुछ इस योजना से मिलती-जुलती ही थी। यद्यपि इन दोनों महान चिंतकों में पारंपरिक उद्योगों का आधुनिकीकरण जैसे, कुछ विषयों पर मतभेद थे, लेकिन उनका लक्ष्य एक था एवं दोनों ने ही अपने विचारों को मूर्त रूप देने के लिए आश्रम को आधार बनाया।
   मानव संसाधन विकास में युवा पीढ़ी की भूमिका पर समसामयिक अर्थव्यवस्था और समाज की नई माँगों के परिप्रेक्ष्य में विचार करने की आवश्यकता है।  संभवतया युवा पीढ़ी की भूमिका पर तथा युवा पीढ़ी को संसार से परिचित कराने वाले शैक्षिक संस्थानों की भूमिका पर पुनर्विचार करते समय हमें रवींद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन में किए गए शैक्षिक प्रयासों के मूल में उनके दर्शन के अध्ययन से बहुत लाभ हो सकता है।  हमें अपने नए चिंतन और कर्म का आधार टैगोर जैसे महान नेताओं के कार्यों और परंपराओं को बनाना होगा।  कौन-से ऐसे क्षेत्र हैं जिसमें शिक्षित युवा पीढ़ी मानव संसाधन विकास और मोटे तौर पर समाज के निर्माण में उल्लेखनीय भूमिका निभा सकती है।  शायद ऐसी गतिविधियों के लिए तीन सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र हैः निरक्षरता उन्मूलन, गैर-सरकारी संगठन और स्वयंसेवी संगठन।