Wednesday, 5 September 2018

Shorthand Hindi Dictation Speech published on 5 Sept, 2018 at Youtube


    श्रीमान जी, जब तक पूरे देश में ही उत्‍पादन में वृद्धि नहीं होती तब तक इन कार्यक्रमों के लिए दी जाने वाली बड़ी धनराशियों के कारण हमें ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा जिसमें पैसा तो होगा लेकिन उसके अनुपात में वस्‍तुओं का अभाव होगा।  आप सूखे की स्थिति को ही लीजिए।  कई राज्‍यों को इसका सामना करना पड़ा है।  उन्‍हें काफी सहायता दी गई और उन्‍होंने राहत कार्यों के जरिए पीड़ित लोगों को सहायता दी, अनाज दिया तथा अन्‍य प्रकार से सहायता पहुँचाई।  लेकिन मैं नहीं कह सकती कि ऐसे खर्च के द्वारा किस सीमा तक उत्‍पादक परिसंपत्तियों का निर्माण हो पाया है और हम सब जानते हैं कि केंद्र से और केंद्रीय घाटे की कीमत पर साधनों को अन्‍यत्र लगाने से न केवल केंद्र सरकार पर बल्कि पूरे देश पर प्रभाव पड़ता है।

    योजना को केवल कुछ परियोजनाओं का संग्रह नहीं समझना चाहिए।  परियाजनाएँ महत्‍वपूर्ण अवश्‍य होती हैं लेकिन उन्‍हें विकास की दिशा में किया जाने वाला संपूर्ण प्रयत्‍न नहीं माना जा सकता।  इस दृष्टि से भी वर्तमान योजना में ग्रामीण विकास के लंबे-चौड़े कार्यक्रमों को राज्‍य-प्रशासन के सभी स्‍तरों पर एक नई मानसिकता के साथ जनता तक ले जाना आवश्‍यक होगा।  हमारा उद्देश्‍य है आत्‍मनिर्भर विकास की उपलब्धि तथा भविष्‍य की प्रगति को संभव बनाने और दिशा देने के लिए मौलिक योग्‍यता प्राप्‍त करना।  इस उद्देश्‍य की प्राप्‍ति के लिए प्रयास करते हुए हमें अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग के नए रूपों को समझना होगा।  उत्‍पादक कार्यक्रमों के लिए सहायता अब उत्‍तरोत्‍तर ऐसे सहयोग का रूप लेती जा रही है जिसका लाभ प्राप्‍तकर्ता देश के साथ-साथ देने वाले देश को भी मिलता है।  इस प्रकार, हमने हाल में जो समझौते सोवियत संघ, चेकोस्‍लोवाकिया के साथ किए हैं उनमें से कुछ इसी प्रकार के हैं।  उनसे हमारी आर्थिक क्षमता और मजबूत होती है, हमारी उत्‍पादकाता बढ़ती है और हम अधिक निर्यात कर सकते हैं।

    भारतीय विकास का उद्देश्‍य अपना एक अलग रास्‍ता बना सकने का रहा है।  संसदीय व्यवस्था के अंतर्गत बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाते हुए प्रभावशाली नियोजित विकास कर सकना कोई अल्‍प उप‍लब्धि नहीं है।  लेकिन हमें यह भी चिंता है कि हमारे विकास का स्‍वरूप अन्‍य से भिन्‍न हो तथा हम केवल दूसरों का अनुकरण न करें।  कभी-कभी यह सुनने में आता है कि हम इस शिविर में हैं या उसमें, अथवा अमुक बाहरी प्रवृत्ति का अनुकरण बहुत निकट से कर रहे हैं।  आप जानते हैं कि इस संबंध में भारत सरकार की भावना बहुत तीखी है और ऐसे लोगों से व्‍यवहार करते हुए प्रश्‍न केवल एक विशेष दृष्टिकोण से काम लेने का नहीं होता है।  हमने सदा से ही अपना स्‍वतंत्र रुख अपनाया है और हम आगे भी ऐसा ही करते रहेंगे।  लेकिन हम अपने लोगों में अनुकरण की मानसिकता देख सकते हैं।  उदाहरण के लिए हमसे अथवा हमारे बीच, जो प्रश्‍न रखा जाता है वह यह है : अगर किसी देश विशेष में प्रबंधकों और तकनीशियनों को अमुक वेतन मिलता है तो हमारे यहाँ क्‍यों नहीं।

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