महोदय, विकासशील देशों में सरकार का बड़ा प्रभाव होता
है। जब उन देशों की सरकारें बदलती हैं तो
विकसित देशों की तुलना में इन देशों की जनता का कहीं अधिक बड़ा भाग इन परिवर्तनों
से प्रभावित होता है। यह बात सरलता से
देखी जा सकती है। जब विकासशील देशों में
चुनाव होते हैं तो वहाँ भारी संख्या में मतदाता वोट डालते हैं। इसी हिसाब से यदि लोकतंत्री प्रणाली भंग हो जाए
तो उससे होने वाली निराशा और परिणामस्वरूप उस पर से विश्वास उठ जाने की कल्पना
की जा सकती है। इस तरह हर जगह राजनीतिक
स्थिरता लोकतंत्र की सफलता पर निर्भर करती है। अत: प्रश्न यह है चूँकि ब्लॉकों
की व्यवस्था के लोकतंत्र को विशेष महत्व नहीं दिया जाता था या शायद नहीं दिया
जा सकता था, फिर क्या आज यह सोचना आवश्यक नहीं हो गया कि सुस्थापित
लोकतंत्र विश्व में अपनी प्रणाली की सफलता के लिए क्या करें, जिससे सरकारों का काम स्पष्ट
नजर आए और वे हर जगह जन सामान्य की आकांक्षाओं के अनुसार चलें। इस बात का मेरे पास अभी कोई बना बनाया जवाब
नहीं है किंतु मैं यह निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि यह विषय ध्यान दिए जाने योग्य
है। मैं एक ऐसे व्यक्ति के रूप में आपका ध्यान दिलाना चाहता
हूँ, जिसने
एक विकासशील समाज के सबसे निचले स्तर पर काम किया और अनुभव पाया, जिसने महान नेताओं के
नेतृत्व में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया, स्वतंत्रता प्राप्त की, और तब से उस स्वतंत्रता
को मजबूत बनाने के लिए प्रयत्नशील है और यह भी एक ऐसे विशाल और विविधता वाले देश
में, जहाँ
सदियों से कोई भी कार्य सहज ढंग से नहीं हुआ और जहाँ हमें निरंतर तलवार की धार पर
चलना पड़ा है।
एक और विषय है जिसमें
हमें जिम्मेदारी बरतने की आवश्यकता है - विचार और कार्य दोनों में। इसी भावना के साथ हमें अपने ग्रह पृथ्वी के
संसाधनों की देखभाल करनी है। जब हम विकास
पथ पर चलने लगते हैं तो हम उन संसाधनों का भी दोहन या दुरूपयोग करने लगते हैं जो
वास्तव में केवल हमारे नहीं, केवल हमारी भावी पीढि़यों के लिए हैं। मुझे याद है कि 40 वर्ष
पहले राज्य का विधायक बनने के लिए चलाए गए चुनाव अभियान में मैंने बड़े उत्साह
के साथ अपने निर्वाचन क्षेत्र में सड़कें बनवाने का आश्वासन दिया था। हमने सड़कें बनवाई किंतु वनों से हाथ धो बैठे।
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