महोदय, हमारा शरीर जिन पाँच महाभूतों यानी पंचतत्वों
से बना है उनमें से एक तत्व जल है और शेष चार हैं – आकाश, वायु, अग्नि और पृथ्वी। विज्ञान के अनुासार जल में दो भाग हाइड्रोजन और
एक भाग आक्सीजन होता है। इस भूमंडल में
पृथ्वी का भाग एक चौथाई है और जल का भाग तीन चौथाई है। मानव शरीर में भी 70 प्रतिशत जल और 30 प्रतिशत
में शेष सब हाड़, मांस, रक्त आदि
हैं। इस अनुपात को देखकर ही जल की महत्ता
और उपयोगिता का पता चल जाता है। हमारे
शरीर में जल तत्व का भाग शेष चार तत्वों से बहुत ज्यादा है। इसलिए शरीर और स्वास्थ्य
की दृष्टि से, हमें जल के विषय में विशेष रूप से सतर्क और
सचेष्ट रहना होगा। यह कहने से काम नहीं
चलेगा कि जल के विषय में कुछ कहने की आवश्यकता है क्या? या कि इसके गुण-धर्म और सेवन पद्धति पर भी क्या
सोच-विचार करने की आवश्यकता हो सकती है? हम
संक्षेप में जल के विषय में कुछ महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डाल रहे हैं।
यह तो आप जानते समझते हैं कि हमारा जीवन का ढंग
भौतिकवादी अधिक और आध्यात्मवादी कम हो गया है।
कृत्रिम ज्यादा और प्राकृतिक कम हो गया है तथा सुविधाभोगी ज्यादा और
नियम-संयम में कम हो गया है। ऐसी
परिस्थिति में हम प्राकृतिक जीवन से दूर होते जा रहे हैं और हमारे जीवन में बनावटी
और नकली चीजों का उपयोग बढ़ता जा रहा है ।
क्या अन्न, क्या जल, क्या
वायु और क्या आकाश – सब कुछ अप्राकृतिक और मन चाहे ढंग से प्रयोग में लिया जा रहा
है और यह विचार करने का न तो किसी को समय है, न चिंता और न
जानकारी ही कि जो कुछ हो रहा है वह ठीक हो रहा है या गलत? ऐसा होना चाहिए या नहीं? यदि ऐसा नहीं होना चाहिए तो फिर कैसा हो चाहिए
ऐसी स्थितियों और वातावरण को दृष्टिगत रखकर हमें शरीर और स्वास्थ्य की रक्षा की
दृष्टि से ‘जल’ के विषय में सोच-विचार
करना ही होगा। अर्थात जल प्राणियों का
जीवन है और संपूर्ण जगत जल से भरा हुआ है इसलिए रोगों में जल का निषेध होने पर भी
जल का सर्वथा त्याग नहीं किया जा सकता है।
जल की महत्ता इसी से सिद्ध हो जाती है कि
तीव्र प्यास लगने पर भी यदि जल न मिले तो प्राण व्याकुल हो जतो हैं। एक बार अन्न के बिना व्यक्ति जी भी सकता है
एक दम मर नहीं जाता। पर जल के बिना तो
जीना कठिन है। पानी प्राणियों का प्राण
है। तीव्र प्यास से बेहोशी हो सकती है और
बेहोशी से जान जा सकती है यदि प्यास बुझाई न जाए। यही कारण है कि बेहोश आदमी के चेहरे पर, जल के सिर्फ छींटे मारने से ही उसकी बेहोशी दूर हो जाती है। महानगर के लोगों को जल के एक ही प्रकार की
जानकारी है नल के जल की। लेकिन आज भी भारत
के अधिकांश नागरिक कुएँ, बावड़ी और नदी का पानी पी रहे हैं।
महोदय, नल के पानी को फिल्टर सिस्टम से शुद्ध किया
भी जाता है पर कुएँ, बावड़ी व नदी के पानी की शुद्धता की कोई विशेष व्यवस्था
नहीं,
कोई गारंटी नहीं।हमारे
आयुर्वेद ने जल के कई प्रकार बताए हैं।
तथापि, मुद्दे की बात यह है कि जल के कितने ही भेद
हों, हमें तो जल के उस प्रकार के विषय में सोचना-समझना चाहिए
जिस प्रकार के जल का हम सेवन कर रहे हैं।
इसी प्रकार जो जिस प्रकार के जल का सेवन कर रहा हो उसे जल के उस प्रकार के
विषय में सोचना-समझना होगा, उस प्रकार के जल के गुण, दोष और उपयोग के विषय में जानकारी प्राप्त करनी होगी। ऐसा करके ही अशुद्ध और रोग कारक जल के सेवन से
बचा जा सकेगा और शुद्ध तथा स्वास्थ्यप्रद जल का सेवन किया जा सकेगा ताकि हमारे
शरीर और स्वास्थ्य को रोगी होने से बचाया जा सके तथा शरीर और स्वास्थ्य की
रक्षा की जा सके। ऐसा जहाँ-जहाँ हो नहीं
रहा है या कि हो नहीं पा रहा है वहाँ-वहाँ संक्रामक रोग फैल रहे हैं और लोग पर्याप्त
संख्या में बीमार हो रहे हैं।
ऐसा महत्वपूर्ण है जल, जिसके विषय में हम कोई सोच-विचार नहीं करते और हर कहीं का जल लेकर,
बिना साँस लिए गटागट पी जाते हैं। जिस जल का हम सेवन करें उसके विषय
में हमें यह अवश्य जान लेना चाहिए कि वह जल कहाँ से लाया गया है, किस ढंग से रखा गया है और शुद्ध है या नहीं। जल की जाँच करने के लिए हमें निम्नलिखित
मुद्दों को ध्यान में रखना चाहिए। शुद्ध
जल में कोई गंध नहीं होती, गंध होनी नहीं चाहिए। गंध हो तो जल पीने योग्य नहीं है। जल का कोई स्वाद
नहीं होता, यदि किसी प्रकार का स्वाद हो तो वह जल पीने योग्य
नहीं है। इसी प्रकार शुद्ध जल का कोई रंग
नहीं होता, रंग हो तो पीने योग्य नहीं है। साफ पानी पारदर्शी होता है, मिट्टी मिली हो तो धुंघला व गंदला होता है। नदी, तालाब का पानी प्राय:
धुंधला या गंदला होता है। यदि 5 लीटर पानी
में 2 ग्राम मिट्टी भी हो तो वह पानी पीने योग्य नहीं होता। पानी में तलछट जमती हो तो वह पानी पीने योग्य
नहीं। जल में सोडियम क्लोराइड के अतिरिक्त
कैल्शियम, मेग्निशियम क्लोराइड भी होते हैं। इनकी अधिक मात्रा पानी को दूषित कर देती
है। जिस जल में कचरा, रेशे, धुंधलापन, पत्ते,
मटमैलापन और गंध हो वह पानी पीने योग्य नहीं होता।
चिकित्सा की दृष्टि से जल बहुत उपयोगी सिद्ध
होता है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा के
अंतर्गत ‘जल-चिकित्सा’ का उपयोग किया जाता है। पथ्य और अपथ्य की दृष्टि से, जल का उपयोग करने या न करने से संबंधित, कुछ आवश्यक
और हितकारी सूचनाएँ यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं : शीतल जल देर से और गर्म करके ठंडा
किया हुआ पानी जल्दी पचता है। कुनकुना गर्म पानी भी जल्दी पचता है। भोजन के आरंभ में पानी पीने से कमजोरी आती है और
अंत में पीने से मोटापा।
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