महोदय, हम अपनी स्वतंत्रता के स्वर्ण-जयंती वर्ष के दौर से गुजर रहे
हैं तथा इस संबंध में अनेक समारोहों के आयोजन हो रहे हैं। इस वर्ष में हमारी परमाणु परीक्षण जैसी महत्वपूर्ण
उपलब्धियाँ भी रही हैं। हमने स्वतंत्रता
संग्राम के उन लाखों जाने-अनजाने शहीदों को याद किया जिनके बलिदानों से देश को स्वतंत्रता
मिली लेकिन इसके साथ ही यह विडंबना भी रही कि हम अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई के उन
योद्धाओं की खोज-खबर लेना भूल गए हैं जिनमें से अनेक हमसे प्रति वर्ष बिछुड़ते जा
रहे हैं और उनकी संख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है। इन बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानियों की स्थिति इस
समय क्या है, इस बारे में हमें हिमाचल स्वतंत्रता सेनानी परिषद, शिमला के अध्यक्ष श्री
गौरी प्रसाद का एक पत्र मिला है जिसे हम हिमाचल के मुख्यमंत्री के ध्यानार्थ
यहाँ यथावत प्रकाशित कर रहे हैं:
“हिमाचल में कभी 2000 से
अधिक स्वतंत्रता सेनानी थे लेकिन इस समय उनकी संख्या लगभग 1200 रह गई है। ये सभी 80 वर्ष से ऊपर की आयु के हैं। कुछ वर्षों बाद इनमें से कोई शेष नहीं
रहेगा। इन स्वतंत्रता सेनानियों का
परिवार विधायकों तथा सांसदों के परिवार से बिल्कुल ही अलग है। इन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में जो यातनाएँ
सही थीं, वे किसी पद या स्वार्थ के लिए नहीं सही थीं। उनका लक्ष्य तो केवल देश को दासता से मुक्त कराना
था। हमने विदेशी शासन की दासता के विरुद्ध
ही नहीं बल्कि प्रदेश की छोटी-बड़ी 30-35 रियासतों के राजाओं व राणाओं के दमनकारी शासन से
जनता को मुक्त कराने के लिए संघर्ष किया तथा उसके फलस्वरूप वर्तमान हिमाचल
प्रदेश अस्तित्व में आया। इतिहास साक्षी
है कि देश की स्वतंत्रता मिलने के उपरांत भी इन स्वाभिमानी योद्धाओं ने सरकार से
अपने लिए कुछ अपेक्षा नहीं की।”
महोदय, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश तथा अन्य राज्यों में जहाँ स्वतंत्रता
सेनानियों को 1500-2000 रुपए की सम्मान राशि दी जा रही है, वहाँ हिमाचल में यह राशि
मात्र 500 रुपए ही है। पंजाब में स्वतंत्रता
सेनानियों के मामलों की देख-रेख के लिए एक अलग विभाग है लेकिन हिमाचल में स्वतंत्रता
सेनानी कल्याण बोर्ड का जन संपर्क कार्यालय भी बंद कर दिया गया है। सचिवालय में कल्याण बोर्ड का जो कार्यालय था वह
भी लगभग बंद-सा है। समारोहों व कार्यलयों
में स्वतंत्रता सेनानियों को जो सम्मान उन्हें मिलता था वह भी बंद कर दिया गया है। हिमाचल भवन, दिल्ली तथा सरकारी विश्रामगृहों में आवास की
सुविधा मिलने में कठिनाई आने लगी है। राज्य
परविहन तथा निजी परिवहन में उन्हें जो प्राथमिकता मिलती थी वह भी लगभग बंद हो गई
है। सरकारी अस्पतालों में वांछित उपचार
सुविधा न मिल पाने तथा अभद्र व्यवहार किए जाने के कारण उन्हें प्रइवेट अस्पतालों
की शरण में जाने को विवश होना पड़ रहा है। इस संबंध में आने वाले खर्च को वहन करना उनके
लिए अत्यंत कठिन है। उनकी पुत्रियों तथा
पौत्रियों के विवाह के लिए जो अनुदान मिलता था वह अब समय पर नहीं मिलता और इसमें
भी पक्षपात किया जाने लगा है। स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों के लिए प्रशिक्षण
संस्थानों तथा नौकरियों में 2 प्रतिशत आरक्षण कागजों पर ही है।
मुख्यमंत्री के
कार्यकाल में उनकी अध्यक्षता में गठित कल्याण बोर्ड व उसके अंतर्गत गठित उपसमिति
द्वारा लिए गए निर्णय पता नहीं किस मिसिल में दबे हुए हैं। इन स्वतंत्रता सेनानियों को सरकार तथा समाज
द्वारा जो सम्मान पेंशन तथा अन्य कुछ सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं वह इन पर
कोई अहसान नहीं बल्कि यह तो इनके त्याग व बलिदान के प्रति हमारी कृतज्ञता का
प्रदर्शन है। आज हमारे सांसद व विधायक
अपने वेतन, भत्ते, पेंशन बढ़ाने के लिए तो निर्विरोध विधेयक पास कर देते हैं लेकिन
उन्हें अपने जीवन की संध्या पर पहुँचे हुए कुछ हजार स्वतंत्रता सेनानियों के
बारे में सोचने का समय ही नही है। यह दुख
की बात है कि हिमाचल सराकर अपने मुठ्ठी भर स्वतंत्रता सेनानियों को अन्य राज्यों
की तरह सम्मान राशि व सुविधाएँ प्रदान नहीं कर रही है। आशा है कि मुख्यमंत्री अब राजनीतिक स्थिरता
प्राप्त करने के उपरांत इस ओर ध्यान देकर ऐसी व्यवस्था करेंगे जिनसे ये जिंदा
शहीद सम्मानपूर्वक आराम से अपना शेष जीवन बिता सकें।