Sunday, 30 September 2018

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 1 Oct, 2018 at Youtube



     महोदय, हम अपनी स्‍वतंत्रता के स्‍वर्ण-जयंती वर्ष के दौर से गुजर रहे हैं तथा इस संबंध में अनेक समारोहों के आयोजन हो रहे हैं।  इस वर्ष में हमारी परमाणु परीक्षण जैसी महत्‍वपूर्ण उपलब्धियाँ भी रही हैं।  हमने स्‍वतंत्रता संग्राम के उन लाखों जाने-अनजाने शहीदों को याद किया जिनके बलिदानों से देश को स्‍वतंत्रता मिली लेकिन इसके साथ ही यह विडंबना भी रही कि हम अपनी स्‍वतंत्रता की लड़ाई के उन योद्धाओं की खोज-खबर लेना भूल गए हैं जिनमें से अनेक हमसे प्रति वर्ष बिछुड़ते जा रहे हैं और उनकी संख्‍या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है।  इन बुजुर्ग स्‍वतंत्रता सेनानियों की स्थिति इस समय क्‍या है, इस बारे में हमें हिमाचल स्‍वतंत्रता सेनानी परिषद, शिमला के अध्‍यक्ष श्री गौरी प्रसाद का एक पत्र मिला है जिसे हम हिमाचल के मुख्‍यमंत्री के ध्‍यानार्थ यहाँ यथावत प्रकाशित कर रहे हैं:
    हिमाचल में कभी 2000 से अधिक स्‍वतंत्रता सेनानी थे लेकिन इस समय उनकी संख्‍या लगभग 1200 रह गई है।  ये सभी 80 वर्ष से ऊपर की आयु के हैं।  कुछ वर्षों बाद इनमें से कोई शेष नहीं रहेगा।  इन स्‍वतंत्रता सेनानियों का परिवार विधायकों तथा सांसदों के परिवार से बिल्‍कुल ही अलग है।  इन्‍होंने स्‍वतंत्रता आंदोलन में जो यातनाएँ सही थीं, वे किसी पद या स्‍वार्थ के लिए नहीं सही थीं।  उनका लक्ष्‍य तो केवल देश को दासता से मुक्‍त कराना था।  हमने विदेशी शासन की दासता के विरुद्ध ही नहीं बल्कि प्रदेश की छोटी-बड़ी 30-35 रियासतों के राजाओं व राणाओं के दमनकारी शासन से जनता को मुक्‍त कराने के लिए संघर्ष किया तथा उसके फलस्‍वरूप वर्तमान हिमाचल प्रदेश अस्तित्‍व में आया।  इतिहास साक्षी है कि देश की स्‍वतंत्रता मिलने के उपरांत भी इन स्‍वाभिमानी योद्धाओं ने सरकार से अपने लिए कुछ अपेक्षा नहीं की।
    अपना सब कुछ स्‍वतंत्रता संग्राम में लगा देने वाले इन सेनानियों के जीवनयापन की नाजुक स्थितियों को देखते हुए केंद्र तथा प्रदेश सरकारों ने इन्‍हें कुछ सुविधाएँ तथा सम्‍मान राशि देने का निर्णय किया, जो विभिन्‍न राज्यों में अलग-अलग है।  दुख की बात तो यह है कि जहाँ हिमाचल में स्‍वर्ण-जयंती वर्ष में अनेक समारोह किए जा रहे हैं, वहाँ इन स्‍वतंत्रता सेनानियों को किंचित भी सम्‍मान नहीं मिला।    पूर्ववर्ती वीरभद्र सिंह सरकार ने इनको राहत पहुँचाने के लिए जो निर्णय लिए थे, आज ठीक उसके विपरीत होता हुआ नजर आ रहा है।
     महोदय, पंजाब, हरियाणा, दिल्‍ली, उत्‍तर प्रदेश तथा अन्‍य राज्‍यों में जहाँ स्‍वतंत्रता सेनानियों को 1500-2000 रुपए की सम्‍मान राशि दी जा रही है, वहाँ हिमाचल में यह राशि मात्र 500 रुपए ही है।  पंजाब में स्‍वतंत्रता सेनानियों के मामलों की देख-रेख के लिए एक अलग विभाग है लेकिन हिमाचल में स्‍वतंत्रता सेनानी कल्‍याण बोर्ड का जन संपर्क कार्यालय भी बंद कर दिया गया है।  सचिवालय में कल्‍याण बोर्ड का जो कार्यालय था वह भी लगभग बंद-सा है।  समारोहों व कार्यलयों में स्‍वतंत्रता सेनानियों को जो सम्‍मान उन्‍हें मिलता था वह भी बंद कर दिया गया है।  हिमाचल भवन, दिल्‍ली तथा सरकारी विश्रामगृहों में आवास की सुविधा मिलने में कठिनाई आने लगी है।  राज्‍य परविहन तथा निजी परिवहन में उन्‍हें जो प्राथमिकता मिलती थी वह भी लगभग बंद हो गई है।  सरकारी अस्‍पतालों में वांछित उपचार सुविधा न मिल पाने तथा अभद्र व्‍यवहार किए जाने के कारण उन्‍हें प्रइवेट अस्‍पतालों की शरण में जाने को विवश होना पड़ रहा है। इस संबंध में आने वाले खर्च को वहन करना उनके लिए अत्‍यंत कठिन है।  उनकी पुत्रियों तथा पौत्रियों के विवाह के लिए जो अनुदान मिलता था वह अब समय पर नहीं मिलता और इसमें भी पक्षपात किया जाने लगा है। स्‍वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों के लिए प्रशिक्षण संस्‍थानों तथा नौकरियों में 2 प्रतिशत आरक्षण कागजों पर ही है।
    मुख्‍यमंत्री के कार्यकाल में उनकी अध्‍यक्षता में गठित कल्‍याण बोर्ड व उसके अंतर्गत गठित उपसमिति द्वारा लिए गए निर्णय पता नहीं किस मिसिल में दबे हुए हैं।  इन स्‍वतंत्रता सेनानियों को सरकार तथा समाज द्वारा जो सम्‍मान पेंशन तथा अन्‍य कुछ सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं वह इन पर कोई अहसान नहीं बल्कि यह तो इनके त्‍याग व बलिदान के प्रति हमारी कृतज्ञता का प्रदर्शन है।  आज हमारे सांसद व विधायक अपने वेतन, भत्‍ते, पेंशन बढ़ाने के लिए तो निर्विरोध विधेयक पास कर देते हैं लेकिन उन्‍हें अपने जीवन की संध्‍या पर पहुँचे हुए कुछ हजार स्‍वतंत्रता सेनानियों के बारे में सोचने का समय ही नही है।  यह दुख की बात है कि हिमाचल सराकर अपने मुठ्ठी भर स्‍वतंत्रता सेनानियों को अन्‍य राज्‍यों की तरह सम्‍मान राशि व सुविधाएँ प्रदान नहीं कर रही है।  आशा है कि मुख्‍यमंत्री अब राजनीतिक स्थिरता प्राप्‍त करने के उपरांत इस ओर ध्‍यान देकर ऐसी व्‍यवस्‍था करेंगे जिनसे ये जिंदा शहीद सम्‍मानपूर्वक आराम से अपना शेष जीवन बिता सकें।

Thursday, 27 September 2018

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 28 Sept, 2018 at Youtube


     माननीय उपाध्‍यक्ष महोदय, मैं दिल्‍ली विकास संशोधन विधेयक, 1966 का समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूँ।  मंत्री जी ने दिल्‍ली विकास अधिनियम 1957 में संशोधन के लिए यह बिल यहाँ प्रस्‍तुत किया है।  पहले दिल्‍ली महानगर परिषद के सदस्‍यों का चयन डी.डी.ए. में हुआ करता था। अब दिल्‍ली राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र बन जाने से यहाँ राज्‍य के रूप में विधान सभा गठित हो गई है।  इसलिए विधायकों का उसमें चयन करने के लिए यह संशोधन विधेयक हमारे सामने है।  मैं अपनी ओर से तथा अपनी पार्टी की ओर से इसका समर्थन करता हूँ।
    उपाध्‍यक्ष महोदय, मैं आपके माध्‍यम से मंत्री जी का ध्‍यान खींचना चाहता हूँ।  अभी आदरणीय जगमोहन जी ने उसका उल्‍लेख भी किया था।  दिल्‍ली की जनसंख्‍या एक करोड़ से ऊपर हो गई है, यानी एक करोड़ से भी अधिक होने को है।  यहाँ पर गरीब लोग और कम आय वाले लोग भी रहते हैं, जो अधिकतर कॉलोनियों में रहते हैं।  अनधिकृत कॉलोनियों की संख्‍या 1210 है।  इन बस्तियों में ये लोग फटेहाल और परेशानी में अपना जीवन व्‍यतीत करते हैं।  इसलिए कि इन बस्तियों को नियमित नहीं किया गया है।  जिस कारण उन्‍हें सरकारी सुविधाएँ जैसे बिजली, पानी और राशन कार्ड न होने की वजह से राशन नहीं मिल पाता।
    पिछले दिनों जंतर-मंतर के पास इन बस्तियों के हजारों लोगों ने 49 दिन तक धरना भी दिया था।  एक रोज ऐसा भी आया कि कम से कम पाँच हजार परिवार अपने बाल-बच्‍चों के साथ ठंड में वहाँ पड़े रहे।  यह मंत्री जी को अच्‍छी तरह ज्ञात भी है।  माननीय पर्यावरण राज्‍य मंत्री उनके प्रतिनिधिमंडल को प्रधानमंत्री जी के पास ले गए और उनको आश्वासन मिला कि हम उस पर कार्यवाही करेंगे।  यह भी आश्वासन मिला कि अनधिकृत बस्तियों को अधिकृत किए जाने की कार्यवाही होगी।  लेकिन उस बात को बीते एक महीना हो गया है।  हम सरकार से जानना चाहते हैं कि गरीब मध्यम वर्ग के लोग इन 1210 बस्तियों में परेशान हैं, जिन्हें बिजली, पानी और राशन नहीं मिल रहा है।  उनकी जो परिस्थिति है, उसको देखते हुए क्या सरकार इसी महीने में संसद के इसी सत्र में ऐसी व्यवस्था करेगी कि उन बस्तियों को अधिकृत रुप में नियमित कर दिया जाए।  उन्हें बिजली तथा पानी का कनैक्शन मिले, राशन कार्ड मिले, यह मैं कहना चाहता हूँ।

Tuesday, 25 September 2018

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 26 Sept, 2018 at Youtube


     महोदय, शायद विकास की समस्‍या का यह एक सटीक उदाहरण है, एक ऐसे विकास का जो अब तक हुए विकास को तथा उस विरासत को भी सुरक्षित रखे, जिस पर उसकी नींव रखी गई।  आज के सरल विकल्‍प कल हमारे लिए पश्‍चाताप का कारण बन सकते हैं।  इसलिए एक और महत्‍वपूर्ण क्षेत्र जिसमें भारत व अमरीका, हमारे लोग, सहयोग कर सकते हैं, ऐसी प्रौद्योगिकियों का पता लगाना है जिनसे दायित्‍वपूर्ण ढंग से विकास किया जा सके।  माननीय उपराष्‍ट्रपति जी, दो वर्ष पहले आपने एक पुस्‍तक लिखी थी, जिसे एक समालोचक ने एक राजनीतिज्ञ का विलक्षण योगदान माना था, क्‍योंकि वह पुस्‍तक आपने स्‍वयं लिखी थी, उसे पढ़ते समय, मेरे अंदर न केवल आपकी लेखन शैली के बल्कि आपकी विषय-वस्‍तु के कारण भी रुचि पैदा हुई।  उसमें मैंने महात्‍मा गांधी के बारे में एक ऐसा दृष्‍टांत पढ़ा जिससे मैं पहले परिचित नहीं था।  आज उसे दोहराने की आवश्‍यकता है और मुझे आशा है कि आप मुझे इसकी अनुमति देंगे।  आपने लिखा है कि गांधी जी के पास एक महिला पहुँची जो इस बात से परेशान थी कि उसका पुत्र बहुत अधिक शक्‍कर खाता है।  उस महिला ने गांधी से अनुरोध किया कि आप मेरे पुत्र को शक्‍कर की हानियों के बारे में समझाएँ।  महात्‍मा गांधी ने ऐसा करने का वचन दिया पर एक पखवाड़े के बाद आने के लिए कहा।  उस महिला ने वैसा ही किया और गांधी जी ने अपने वचन के अनुसार उस लड़के को सलाह दी।  माँ ने उसके प्रति बहुत-बहुत आभार व्‍यक्‍त किया लेकिन वह अपनी इस उलझन को छिपा न सकी कि आखिर गांधी जी ने क्‍यों मुझे दो सप्‍ताह बाद आने के लिए क‍हा।  गांधी ने बड़ी ईमानदारी से उत्‍तर दिया: मुझे स्‍वयं शक्‍कर खाना छोड़ने के लिए दो सप्‍ताह की आवश्‍यकता थी।
    हम अब एक ऐसी शताब्‍दी के समापन वर्षों में हैं जिसने युद्ध की विनाश लीला देखी है, जो मानव की वैज्ञानिक, बौद्धिक और रचनात्‍मक सफलताओं से गौरवांवित हुई है, जो कमी और निर्धनता से ग्रस्‍त रही है फिर भी जो हमारी सामूहिक क्षमता के बल पर ऐसे समाधान ढूँढने में सफल रही है जो अब तक हमें नहीं मिले थे।  हम उन समाधानों को मानते हैं।  परंतु किसी और को उन्‍हें अपनाने के लिए कहने से पहले हमें, गांधीजी की तरह उन पर पालन करने के लिए कम-से-कम दो या तीन सप्‍ताह का समय लेना पड़ेगा।  

Sunday, 23 September 2018

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 24 Sept, 2018 at Youtube



महोदय, विकासशील देशों में सरकार का बड़ा प्रभाव होता है।  जब उन देशों की सरकारें बदलती हैं तो विकसित देशों की तुलना में इन देशों की जनता का कहीं अधिक बड़ा भाग इन परिवर्तनों से प्रभावित होता है।  यह बात सरलता से देखी जा सकती है।  जब विकासशील देशों में चुनाव होते हैं तो वहाँ भारी संख्‍या में मतदाता वोट डालते हैं।  इसी हिसाब से यदि लोकतंत्री प्रणाली भंग हो जाए तो उससे होने वाली निराशा और परिणामस्‍वरूप उस पर से विश्‍वास उठ जाने की कल्‍पना की जा सकती है।  इस तरह हर जगह राजनीतिक स्थिरता लोकतंत्र की सफलता पर निर्भर करती है। अत: प्रश्‍न यह है चूँकि ब्‍लॉकों की व्‍यवस्‍था के लोकतंत्र को विशेष महत्‍व नहीं दिया जाता था या शायद नहीं दिया जा सकता था, फिर क्‍या आज यह सोचना आवश्‍यक नहीं हो गया कि सुस्‍थापित लोकतंत्र विश्‍व में अपनी प्रणाली की सफलता के लिए क्‍या करें, जिससे सरकारों का काम स्‍पष्‍ट नजर आए और वे हर जगह जन सामान्‍य की आकांक्षाओं के अनुसार चलें।  इस बात का मेरे पास अभी कोई बना बनाया जवाब नहीं है किंतु मैं यह निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि यह विषय ध्‍यान दिए जाने योग्‍य है।  मैं एक ऐसे  व्‍यक्ति के रूप में आपका ध्‍यान दिलाना चाहता हूँ, जिसने एक विकासशील समाज के सबसे निचले स्‍तर पर काम किया और अनुभव पाया, जिसने महान नेताओं के नेतृत्‍व में स्‍वतंत्रता के लिए संघर्ष किया, स्‍वतंत्रता प्राप्‍त की, और तब से उस स्‍वतंत्रता को मजबूत बनाने के लिए प्रयत्‍नशील है और यह भी एक ऐसे विशाल और विविधता वाले देश में, जहाँ सदियों से कोई भी कार्य सहज ढंग से नहीं हुआ और जहाँ हमें निरंतर तलवार की धार पर चलना पड़ा है।
    एक और विषय है जिसमें हमें जिम्‍मेदारी बरतने की आवश्‍यकता है - विचार और कार्य दोनों में।  इसी भावना के साथ हमें अपने ग्रह पृथ्‍वी के संसाधनों की देखभाल करनी है।  जब हम विकास पथ पर चलने लगते हैं तो हम उन संसाधनों का भी दोहन या दुरूपयोग करने लगते हैं जो वास्‍तव में केवल हमारे नहीं, केवल हमारी भावी पीढि़यों के लिए हैं। मुझे याद है कि 40 वर्ष पहले राज्‍य का विधायक बनने के लिए चलाए गए चुनाव अभियान में मैंने बड़े उत्‍साह के साथ अपने निर्वाचन क्षेत्र में सड़कें बनवाने का आश्‍वासन दिया था।  हमने सड़कें बनवाई किंतु वनों से हाथ धो बैठे।

SHORTHAND CLASSES





Wednesday, 12 September 2018

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 12 Sept, 2018 at Youtube


आदरणीय उपाध्‍यक्ष महोदय, मैं आपके माध्‍यम से माँग करना चाहता हूँ कि जो झुग्‍गी—झोप‍ड़ि‍याँ हैं और गरीबों के मुहल्‍ले हैं, जहाँ पर विद्यालय नहीं हैं, वहाँ छोटे स्‍तर पर या तो विद्यालय खोले जाएँ या कम फीस पर बच्‍चों की पढ़ाई हो सके, ऐसी कोई व्‍यवस्‍था कर दी जानी चाहिए।  इसके साथ ही अंत में मैं एक और माँग करना चाहता हूँ कि हमारा भारतवर्ष गरीबों का देश है।  यहाँ गरीबी रेखा के नीचे चालीस प्रतिशत लोग रहते हैं।  यहाँ पर शहरी राज्‍य विकास मंत्री भी बैठे हैं, मैं उनका ध्‍यान इस बात की ओर आकर्षित करना चाहूँगा कि पूरे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में जो गरीब लोग रहते हैं, उनके लिए इंदिरा आवास योजना पहले से चल रही है जिसके अंतर्गत 20,000 रुपये देकर पक्‍का मकान आर.सी.सी. बनाकर दिया जा रहा है लेकिन शहरों में यह सुविधा नहीं है, दिल्‍ली में भी नहीं है।   दिल्‍ली में भी हजारों लाखों की संख्‍या में ऐसे लोग रहते हैं जो मकान मालिक से अनुमति लेकर जीने में अपनी जिंदगी गुजर-बसर करने पर मजबूर हैं।  हम आपके माध्‍यम से अनुरोध करना चाहते हैं कि जिस प्रकार से गाँवों में रहने वाले लोगों के लिए इंदिरा आवास योजना के तहत गरीबों के लिए 20,000 रुपये देकर आर.सी.सी. बनाने की व्‍यवस्‍था की गई है, उसी प्रकार से दिल्‍ली से लेकर छोटे और बड़े सभी शहरों में जो नगरपालिका क्षेत्र में आता है, नगर पंचायत में आता है, नगर निगम में आता है और महानगर परिषद में आता है, उन सभी शहरों में इंदिरा आवास योजना के आधार पर बिल्‍कुल गरीब तथा भूमिहीन लोग जिनके पास कोई आसरा नहीं है उनके लिए आवास योजनाएँ सरकारी खर्च पर चालाई जानी चाहिए।  मैं अनुरोध करता हूँ छह दिसंबर को देश में बाबा साहेब अम्‍बेडकर पुनर्निर्माण दिवस मनाया गया है कि सरकार उनके नाम पर योजना लाए।  पूरे देश में गरीब लोग रहते हैं, मैं चाहता हूँ कि अम्‍बेडकर आवास योजना के नाम पर योजना संचालित की जाए।  यह हम आपके माध्‍यम से सरकार से माँग करते हैं।  दिल्‍ली में जो स्‍थायी निवासी रहते हैं, जो किसान रह रहे हैं, जिनके खेत ले लिए गए हैं और यहाँ पर डी.डी.ए. से लेकर सी.पी.डब्‍ल्‍यू.डी. द्वारा जो व्‍यवस्‍था की गई है, उनकी ओर भी सरकार को ध्‍यान देना चाहिए।  पिछली सरकार ने किराया कानून पास किया।  

Friday, 7 September 2018

Shorthand Hindi Dictation Speech published on 7 Sept, 2018 at Youtube


     महोदय, हमारा शरीर जिन पाँच महाभूतों यानी पंचतत्‍वों से बना है उनमें से एक तत्‍व जल है और शेष चार हैं – आकाश, वायु, अग्नि और पृथ्‍वी। विज्ञान के अनुासार जल में दो भाग हाइड्रोजन और एक भाग आक्‍सीजन होता है।  इस भूमंडल में पृथ्‍वी का भाग एक चौथाई है और जल का भाग तीन चौथाई है।  मानव शरीर में भी 70 प्रतिशत जल और 30 प्रतिशत में शेष सब हाड़, मांस, रक्‍त आदि हैं।  इस अनुपात को देखकर ही जल की महत्‍ता और उपयोगिता का पता चल जाता है।  हमारे शरीर में जल तत्‍व का भाग शेष चार तत्‍वों से बहुत ज्‍यादा है। इसलिए शरीर और स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्टि से, हमें जल के विषय में विशेष रूप से सतर्क और सचेष्‍ट रहना होगा।  यह कहने से काम नहीं चलेगा कि जल के विषय में कुछ कहने की आवश्‍यकता है क्‍या?  या कि इसके गुण-धर्म और सेवन पद्धति पर भी क्या सोच-विचार करने की आवश्‍यकता हो सकती है?  हम संक्षेप में जल के विषय में कुछ महत्‍वपूर्ण बातों पर प्रकाश डाल रहे हैं।

   यह तो आप जानते समझते हैं कि हमारा जीवन का ढंग भौतिकवादी अधिक और आध्‍यात्‍मवादी कम हो गया है।  कृत्रिम ज्‍यादा और प्राकृतिक कम हो गया है तथा सुविधाभोगी ज्‍यादा और नियम-संयम में कम हो गया है।  ऐसी परिस्थिति में हम प्राकृतिक जीवन से दूर होते जा रहे हैं और हमारे जीवन में बनावटी और नकली चीजों का उपयोग बढ़ता जा रहा है ।  क्‍या अन्‍न, क्या जल, क्या वायु और क्‍या आकाश – सब कुछ अप्राकृतिक और मन चाहे ढंग से प्रयोग में लिया जा रहा है और यह विचार करने का न तो किसी को समय है, न चिंता और न जानकारी ही कि जो कुछ हो रहा है वह ठीक हो रहा है या  गलत?  ऐसा होना चाहिए या नहीं?  यदि ऐसा नहीं होना चाहिए तो फिर कैसा हो चाहिए ऐसी स्थितियों और वातावरण को दृष्टिगत रखकर हमें शरीर और स्‍वास्‍थ्‍य की रक्षा की दृष्टि से जल के विषय में सोच-विचार करना ही होगा।  अर्थात जल प्रा‍णियों का जीवन है और संपूर्ण जगत जल से भरा हुआ है इसलिए रोगों में जल का निषेध होने पर भी जल का सर्वथा त्‍याग नहीं किया जा सकता है।

   जल की महत्‍ता इसी से सिद्ध हो जाती है कि तीव्र प्‍यास लगने पर भी यदि जल न मिले तो प्राण व्‍याकुल हो जतो हैं।  एक बार अन्‍न के बिना व्‍यक्ति जी भी सकता है एक दम मर नहीं जाता।  पर जल के बिना तो जीना कठिन है।  पानी प्राणियों का प्राण है।  तीव्र प्‍यास से बेहोशी हो सकती है और बेहोशी से जान जा सकती है यदि प्‍यास बुझाई न जाए।  यही कारण है कि बेहोश आदमी के चेहरे पर, जल के सिर्फ छींटे मारने से ही उसकी बेहोशी दूर हो जाती है।  महानगर के लोगों को जल के एक ही प्रकार की जानकारी है नल के जल की।  लेकिन आज भी भारत के अधिकांश नागरिक कुएँ, बावड़ी और नदी का पानी पी रहे हैं।

     महोदय, नल के पानी को फिल्‍टर सिस्‍टम से शुद्ध किया भी जाता है पर कुएँ, बावड़ी व नदी के पानी की  शुद्धता की कोई विशेष व्‍यवस्‍था नहीं, कोई गारंटी नहीं।हमारे आयुर्वेद ने जल के कई प्रकार बताए हैं।  तथापि, मुद्दे की बात यह है कि जल के कितने ही भेद हों, हमें तो जल के उस प्रकार के विषय में सोचना-समझना चाहिए जिस प्रकार के जल का हम सेवन कर रहे हैं।  इसी प्रकार जो जिस प्रकार के जल का सेवन कर रहा हो उसे जल के उस प्रकार के विषय में सोचना-समझना होगा, उस प्रकार के जल के गुण, दोष और उपयोग के विषय में जानकारी प्राप्‍त करनी होगी।  ऐसा करके ही अशुद्ध और रोग कारक जल के सेवन से बचा जा सकेगा और शुद्ध तथा स्‍वास्‍थ्‍यप्रद जल का सेवन किया जा सकेगा ताकि हमारे शरीर और स्‍वास्‍थ्‍य को रोगी होने से बचाया जा सके तथा शरीर और स्‍वास्‍थ्‍य की रक्षा की जा सके।  ऐसा जहाँ-जहाँ हो नहीं रहा है या कि हो नहीं पा रहा है वहाँ-वहाँ संक्रामक‍ रोग फैल रहे हैं और लोग पर्याप्‍त संख्‍या में बीमार हो रहे हैं।

   ऐसा महत्‍वपूर्ण है जल, जिसके विषय में हम कोई सोच-विचार नहीं करते और हर कहीं का जल लेकर, बिना साँस लिए गटागट पी जाते हैं। जिस जल का हम सेवन करें उसके विषय में हमें यह अवश्‍य जान लेना चाहिए कि वह जल कहाँ से लाया गया है, किस ढंग से रखा गया है और शुद्ध है या नहीं।  जल की जाँच करने के लिए हमें निम्‍नलिखित मुद्दों को ध्‍यान में रखना चाहिए।  शुद्ध जल में कोई गंध नहीं होती, गंध होनी नहीं चाहिए।  गंध हो तो जल पीने योग्य नहीं है। जल का कोई स्‍वाद नहीं होता, यदि किसी प्रकार का स्‍वाद हो तो वह जल पीने योग्‍य नहीं है।  इसी प्रकार शुद्ध जल का कोई रंग नहीं होता, रंग हो तो पीने योग्‍य नहीं है।  साफ पानी पारदर्शी होता है, मिट्टी मिली हो तो धुंघला व गंदला होता है।  नदी, तालाब का पानी प्राय: धुंधला या गंदला होता है।  यदि 5 लीटर पानी में 2 ग्राम मिट्टी भी हो तो वह पानी पीने योग्‍य नहीं होता।  पानी में तलछट जमती हो तो वह पानी पीने योग्‍य नहीं।  जल में सोडियम क्‍लोराइड के अतिरिक्‍त कैल्शियम, मेग्निशियम क्‍लोराइड भी होते हैं।  इनकी अधिक मात्रा पानी को दूषित कर देती है।  जिस जल में कचरा, रेशे, धुंधलापन, पत्‍ते, मटमैलापन और गंध हो वह पानी पीने योग्‍य नहीं होता।

   चिकित्‍सा की दृष्टि से जल बहुत उपयोगी सिद्ध होता है।  इसलिए प्राकृतिक चिकित्‍सा के अंतर्गत जल-चिकित्‍साका उपयोग किया जाता है।  पथ्‍य और अपथ्‍य की दृष्टि से, जल का उपयोग करने या न करने से संबंधित, कुछ आवश्‍यक और हितकारी सूचनाएँ यहाँ प्रस्‍तुत कर रहे हैं : शीतल जल देर से और गर्म करके ठंडा किया हुआ पानी जल्‍दी पचता है। कुनकुना गर्म पानी भी जल्‍दी पचता है।  भोजन के आरंभ में पानी पीने से कमजोरी आती है और अंत में पीने से मोटापा।

Wednesday, 5 September 2018

Hindi Shorthand Dictation 100 WPM (500 Words) for SSC, CRPF, CISF, RAIL...

Shorthand Hindi Dictation Speech published on 5 Sept, 2018 at Youtube


    श्रीमान जी, जब तक पूरे देश में ही उत्‍पादन में वृद्धि नहीं होती तब तक इन कार्यक्रमों के लिए दी जाने वाली बड़ी धनराशियों के कारण हमें ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा जिसमें पैसा तो होगा लेकिन उसके अनुपात में वस्‍तुओं का अभाव होगा।  आप सूखे की स्थिति को ही लीजिए।  कई राज्‍यों को इसका सामना करना पड़ा है।  उन्‍हें काफी सहायता दी गई और उन्‍होंने राहत कार्यों के जरिए पीड़ित लोगों को सहायता दी, अनाज दिया तथा अन्‍य प्रकार से सहायता पहुँचाई।  लेकिन मैं नहीं कह सकती कि ऐसे खर्च के द्वारा किस सीमा तक उत्‍पादक परिसंपत्तियों का निर्माण हो पाया है और हम सब जानते हैं कि केंद्र से और केंद्रीय घाटे की कीमत पर साधनों को अन्‍यत्र लगाने से न केवल केंद्र सरकार पर बल्कि पूरे देश पर प्रभाव पड़ता है।

    योजना को केवल कुछ परियोजनाओं का संग्रह नहीं समझना चाहिए।  परियाजनाएँ महत्‍वपूर्ण अवश्‍य होती हैं लेकिन उन्‍हें विकास की दिशा में किया जाने वाला संपूर्ण प्रयत्‍न नहीं माना जा सकता।  इस दृष्टि से भी वर्तमान योजना में ग्रामीण विकास के लंबे-चौड़े कार्यक्रमों को राज्‍य-प्रशासन के सभी स्‍तरों पर एक नई मानसिकता के साथ जनता तक ले जाना आवश्‍यक होगा।  हमारा उद्देश्‍य है आत्‍मनिर्भर विकास की उपलब्धि तथा भविष्‍य की प्रगति को संभव बनाने और दिशा देने के लिए मौलिक योग्‍यता प्राप्‍त करना।  इस उद्देश्‍य की प्राप्‍ति के लिए प्रयास करते हुए हमें अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग के नए रूपों को समझना होगा।  उत्‍पादक कार्यक्रमों के लिए सहायता अब उत्‍तरोत्‍तर ऐसे सहयोग का रूप लेती जा रही है जिसका लाभ प्राप्‍तकर्ता देश के साथ-साथ देने वाले देश को भी मिलता है।  इस प्रकार, हमने हाल में जो समझौते सोवियत संघ, चेकोस्‍लोवाकिया के साथ किए हैं उनमें से कुछ इसी प्रकार के हैं।  उनसे हमारी आर्थिक क्षमता और मजबूत होती है, हमारी उत्‍पादकाता बढ़ती है और हम अधिक निर्यात कर सकते हैं।

    भारतीय विकास का उद्देश्‍य अपना एक अलग रास्‍ता बना सकने का रहा है।  संसदीय व्यवस्था के अंतर्गत बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाते हुए प्रभावशाली नियोजित विकास कर सकना कोई अल्‍प उप‍लब्धि नहीं है।  लेकिन हमें यह भी चिंता है कि हमारे विकास का स्‍वरूप अन्‍य से भिन्‍न हो तथा हम केवल दूसरों का अनुकरण न करें।  कभी-कभी यह सुनने में आता है कि हम इस शिविर में हैं या उसमें, अथवा अमुक बाहरी प्रवृत्ति का अनुकरण बहुत निकट से कर रहे हैं।  आप जानते हैं कि इस संबंध में भारत सरकार की भावना बहुत तीखी है और ऐसे लोगों से व्‍यवहार करते हुए प्रश्‍न केवल एक विशेष दृष्टिकोण से काम लेने का नहीं होता है।  हमने सदा से ही अपना स्‍वतंत्र रुख अपनाया है और हम आगे भी ऐसा ही करते रहेंगे।  लेकिन हम अपने लोगों में अनुकरण की मानसिकता देख सकते हैं।  उदाहरण के लिए हमसे अथवा हमारे बीच, जो प्रश्‍न रखा जाता है वह यह है : अगर किसी देश विशेष में प्रबंधकों और तकनीशियनों को अमुक वेतन मिलता है तो हमारे यहाँ क्‍यों नहीं।

Shorthand Hindi Dictation Speech published on 3 Sept, 2018 at youtube


     श्रीमान जी, हमारी प्रगति पर अनेक ऐसी घटनाओं का प्रभाव पड़ता है जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता।  इनमें से कुछ देश में घटित हाती हैं, जैसे युद्ध या प्राकृतिक विपदाएँ, कुछ देश के बाहर घटित होती हैं। और आप जानते ही हैं कि आज विश्‍व के प्रत्‍येक देश में वैसी ही कठिनाइयाँ पाई जाती हैं जो हमारे यहाँ हैं।  इसके अलावा, स्‍वयं विकास के क्रम में कठिनाइयाँ पैदा होती हैं, तनाव पैदा होते हैं जिनके पीछे उन निहित स्‍वार्थ वालों का दबाव होता है जिन पर विकास का प्रभाव पड़ता है।  यद्यपि ऐसी घटनाओं से सभी देश प्रभावित होते हैं, परंतु तो देश ज्‍यादा गरीब हैं उन्‍हें ज्‍यादा कष्‍ट झेलने पड़ते हैं और यह भी दुर्भाग्‍यपूर्ण सच्‍चाई है, जैसाकि हम अपने देश में पाते हैं कि अपेक्षाकृत अधिक निर्धन लोगों को कष्‍टदायक परिस्थितियों का अधिक भाग झेलना पड़ता है।
       लेकिन जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते जाते हैं, हमारे लिए यह आशा करना दुराशा मात्र होगी कि कठिनाइयों का लोप हो जाएगा।  हम यही आशा कर सकते हैं कि उनका स्‍वरूप बदल जाएगा।  मेरा निजी विचार यह है कि समय के साथ-साथ कठिनाइयाँ और बड़ी तथा जटिल होती जाएँगी।  लेकिन साथ ही मुझे पुरा विश्‍वास है कि हम इनको हल करने में सक्षम होंगे।  हमें इस समय करना यह है कि अपने आपको ऐसे आघात सह सकने के लिए सबल बनाएँ चाहे ये आघात हमारी अपनी व्‍यवस्‍था के कारण हों या विश्‍व के अन्‍य लोगों की घटनाओं के कारण।

       योजना के प्रारूप में यही प्रयास किया गया है।  आयोग के उपाध्‍यक्ष तथा अन्‍य सदस्‍यों और अन्‍य लोगों ने इसे तैयार करने के लिए बहुत परिश्रम किया है।  सभी राज्‍यों के मुख्‍यमंत्रियों तथा अधिकारियों और केन्‍द्रीय मंत्रालयों से ब्‍यौरे के साथ विचार-विमर्श किया गया है।  मैं जानती हूँ कि योजना से सभी माँगे पूरी नहीं होंगी।  ऐसा न पहले हुआ है न शायद आगे कभी हो सकेगा।  फिर भी, उत्‍पादन के जो लक्ष्‍य रखे गए हैं उन्‍हें उपलब्‍ध करने के लिए बहुत अनुशासन की आवश्‍यकता है।  ऐसे महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में वृद्धि की गई है जिनसे लोगों की आवश्‍यकता की चीजें और ज्‍यादा मात्रा में उपलब्‍ध हो सकेंगी।  कोयला, उर्वरक, इस्‍पात, धातुओं, पेट्रोलियम आदि के लिए पर्याप्‍त वृद्धि का सुझाव दिया गया है।  इन लक्ष्‍यों को पूरा करने के लिए केन्‍द्र सरकार और उसके सार्वजनिक उपक्रमों को बहुत परिश्रम करना होगा।

       इसी प्रकार राज्‍य सरकारों को न्‍यूनतम आवश्‍कयताओं को पूरी करने के कार्यक्रमों तथा कृषि, सिंचाई, बिजली, ग्रामीण शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में बड़ा प्रयास करना होगा।  मैं समझती हूँ कि आप देखेंगे कि राज्‍य सरकारों को और स्‍वयं हमको, विशेषत: ग्राम-स्‍तर पर अपने संगठनात्‍मक ढाँचे और काम-काज के तरीकों को नया रूप देना होगा। विकास के क्षेत्र में हमारी सबसे गंभीर विफलता यह रही है कि हम ग्राम-समुदाय को विकास कार्यों के लिए नहीं जुटा पाए हैं।  प्रश्‍न केवल पैसों का नहीं है।  जो भी साधन उपलब्‍ध हैं, निश्‍चय ही उनका आबंटन करते हुए ध्‍यान रखना होगा।