Friday, 5 October 2018

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 6 Oct, 2018 at Youtube


    सभापति महोदय, मैं आपको बता सकता हूँ अपने अनुभव से कि भारत जब स्‍वतंत्र हुआ तो यहाँ बहुत दंगे हुए।  लोगों को बड़ी परेशानी हुई और उनको इधर से उधर जाना पड़ा तो कुछ लोग कहने लगे कि इस स्‍वतंत्रता से हमें क्‍या मिला, इस जनतंत्र से हमें क्‍या मिला, इस लोकतंत्र से हमें क्‍या मिला।  जब इतनी बर्बादी हुई हम अंग्रेजी सरकार से किस तरह से बेहतर हैं?  तो उस जमाने में लोगों के सामने जो पेरशानी आई थी, जो उनका सामना नहीं कर सकते थे उन्‍हें अंग्रेज सरकार अच्‍छी लगती थी, क्‍योंकि अंग्रेजी सरकार में उनको शांति थी और हमारी जब सरकार आई तो अशांति हो गई।  कुछ लोग स्‍वतंत्रता की कोई भी कीमत देने के लिए तैयार नहीं हैं।  वे चाहते हैं कि नि:शुल्‍क ही मिले।  हम जानते हैं कि और देशों में स्‍वतंत्रता की प्राप्ति के लिए बहुत संख्‍या में मारकाट हुई।  महात्‍मा गांधी के पुण्‍य से, उनके आशीर्वाद, उनकी पहल से और उनके बनाए हुए वातावरण से हमें बहुत थोड़ी कीमत ही स्‍वतंत्रता के लिए देनी पड़ी।  फिर भी कुछ लोग इस कीमत को देने के लिए तैयार नहीं थे।  इसलिए यह कहना कि अगर एक बार हमें जनतंत्र मिल गया तो हमेशा के लिए पक्‍का रहेगा यह ठीक नहीं है।  हमारे समाज में ऐसे कमजोर लोग बहुत हैं जो समझते हैं कि यह पद्धति ही खराब है जिससे हमें परेशानी हुई है।  कोई दुकानदार है उसको क्‍या फर्क पड़ता है कि कौन-सी पार्टी आए और कौन-सी पार्टी जाए, जनतंत्र आए या जाए अंतर पड़ता होगा अप्रत्‍यक्ष रूप में, लेकिन प्रत्‍यक्ष में उनको अंतर नहीं पड़ता है इसलिए हमने आज  यह काम किया है पंचायती राज के माध्‍यम से हमारे संविधान निर्माताओं ने जो काम करवा कर दिखाना चाहा वह यह था कि लाखों हमारे लोग हमारे देश में इस नई प्रणाली में इस नई व्‍यवस्‍था में जुट जाएँ।
    पंचायती राज पहली बार 1959 में जब पंडित जी लेकर आए तो हमारी पंचायती समितियाँ आदि सब बनीं।  लेकिन और रूप में बनीं तो उन पंचायती समितियों में कभी चुनाव हुए, कभी नहीं हुए और मुख्‍य मंत्री को ऐसा लगने लगा या जिस पार्टी का शासन उस राज्‍य में था, उस पार्टी को ऐसा लगा, अगली बार चुनाव करेंगे तो शायद हमारा बहुमत नहीं आएगा तो उन्‍होंने पंचायतों के चुनाव नहीं किए।

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