हमारे संविधान में हमारे संविधान बनाने वालों ने यह
अनुभव किया था कि खाली संसद बनने से और विधान सभाओं के बनने से हमारा स्वराज्य
पूरा नहीं हो सकता। हमारे स्वराज का
ढाँचा, हमारी
संसद का ढाँचा पूरा नहीं होता लेकिन उनके पास समय नहीं था। उनको चार वर्ष में संविधान बनाना था इसलिए उन्होंने
उसको बनाया। केंद्र और राज्य स्तरों पर
बनाया और उसके आनुषंगिक जो भी संस्थाएँ और संगठन हो सकते थे, जिनकी कल्पना की जा सकती
थी जैसे उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय और लोक सेवा आयोग इन सारी चीजों की कल्पना
करके उन्होंने संविधान बनाया। लेकिन बहुत
कुछ उनको छोड़ देना पड़ा चार वर्ष में वे पूरा नहीं कर सकते थे इसके कई कारण थे। संविधान सभाओं की चर्चाओं में कई बातें आ गई थीं
किसी ने कहा कि इसकी क्या आवश्यकता है।
किसी ने कहा कि इसकी बड़ी आवश्यकता है। इसलिए उन्होंने कुछ निर्देशक सिद्धांत
दिए। कुछ ऐसे सिद्धांत दिए जिसके अनुसार
सरकारों को आगे कार्य करना था। उन्होंने
कहा कि यह आप कीजिए उनमें से पंचायती राज एक है उन सिद्धांतों में यह भी है कि
जितना शीघ्र हो सके यहाँ पंचायती राज संस्थाएँ स्थापित हों।
आज मैं आपको एक
छोटा-सा उदाहरण देता हूँ। हमने अपने लिए
लोकतांत्रिक पद्धति चुनी, अपनाई लेकिन लोकतांत्रिक पद्धति का क्या आशय होता है।
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