कर्नाटक में या किसी
दूसरे राज्य में कहा गया था कि 33 प्रतिशत की बजाय 46 प्रतिशत महिलाएँ चुन कर आई
हैं। मैं उनका स्वागत करता हूँ। इसके साथ-साथ यह जो आपके सामने चुनौती है इस
कार्यक्रम की जिसको शायद आपने पहले कभी नहीं लिया है इस चुनौती का सामना करने के
लिए आपको संगठित शक्ति चाहिए। अपसी झगड़ों
से परे हट कर आपको देखना है कि जो गाँव
में गरीबी है उसे कैसे दूर करना है। कई समाजशास्त्रियों ने यह कहा है कि आज एक
बहुत बड़ा अवसर मिल गया है कि पंचायतों को गरीबी को हटाने का उपाय आप सोच सकते हैं
बाहर कोई नहीं सोच सकता। तो यह तीसरा काम
करना है। एक तो वोटिंग का, दूसरा विकास वाला और
तीसरा जो बुनियादी काम है गरीबी हटाने का, शीघ्र करना है ।
मुझे नहीं मालूम, यहाँ जो सरपंच बैठे हुए हैं उनमें से किस पार्टी का कौन है, कितने हैं, मुझे इसकी
परवाह भी नहीं है। यह मैं आपसे कहना चाहता
हूँ कि हमारा राज तीन स्तरों पर चल रहा है एक केंद्रीय स्तर, एक राज्य स्तर और तीसरा जिसको आप स्थानीय कहते हैं जिसके आप
प्रतिनिधि हैं। इन तीनों स्तरों पर
राजनीति चल रही है। इसमें पार्टी की कोई
आवश्यकता नहीं है, पार्टीबाजी की
कोई आवश्यकता नहीं है और पार्टी के नाम पर कोई झगड़ा करने की आवश्यकता नहीं है।
जब केंद्रीय सरकार से पैसा आता है तो यह मानकर
चलना चाहिए कि केंद्रीय सरकार से पैसा आता है, केंद्रीय सरकार उन्हीं की बनाई हुई, जिन्होंने राज्य सरकार
बनाई है। केंद्रीय सरकार में हमेशा एक ही
पार्टी रहेगी, इसका क्या है कोई भी पार्टी आ सकती है केंद्र में लेकिन केंद्र
सरकार,
केंद्रीय सरकार ही रहेगी। तो इसको छिपाना
और इस पर पर्दा डालना और इसको कुछ उलटा–पुलटा समझाने का कोई लाभ नहीं है। लोग अपने आप समझ जाएँगे कि पैसा केंद्रीय सरकार
का है केंद्रीय सरकार का मतलब है, यह भी लोगों का ही है। लेकिन हमारे संविधान में तीन स्तर बने हुए हैं
केंद्र, राज्य और स्थानीय। इन
तीनों में विभाजन जैसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए और समझ लेना चाहिए। राज्य सराकर हमारे कार्यक्रमों को बदल डाले, कोई दूसरा नाम दे और ये
पैसा दूसरे नाम से खर्च करने लगे ठीक नहीं है।
No comments:
Post a Comment