Sunday, 21 October 2018

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 21 Oct, 2018 at Youtube


महोदय, हमारी संघीय रचना और जनता द्वारा चलाए जाने वाले स्‍थानीय शासनतंत्र से और सत्‍ता के विकेंद्रीत प्रयोग से हमारी एकता सुदृढ़ हुई है।  कभी-कभी तनाव और असहमति होती है, किन्‍तु हमारे विकास की वर्तमान अवस्‍था में और विशेष रूप से इस कारण ऐसा होना अनिवार्य है कि हमारे पास इतने कम साधन हैं कि प्रत्‍येक को संतुष्‍ट नहीं किया जा सकता।  हमारे से छोटे देशों में भी अब क्षेत्रीय खींचातानी अनुभव की जा रही है।  इन स्थितियों में हमने अपने राष्‍ट्रीय पुनर्निर्माण का कार्य अपने हाथ में लिया।  अपनी पंचवर्षीय योजनाओं में, सामाजिक सुविधाएँ बढ़ाने, उद्योगों के लिए आवश्‍यक ढाँचा खड़ा करने और ऐसे बुनियादी उद्योग स्‍थापित करने का काम शासन ने  अपने जिम्‍मे लिया है, जिन्‍हें निजी उद्योग स्‍थापित नहीं कर सकते।  साथ ही निजी उद्योगों के लिए भी बड़ा क्षेत्र बचा है और स्‍वतंत्रता के बाद निजी उद्योगों के लिए बढ़ने की बहुत गुंजाइश है और वास्‍तव में इन्‍होंने इतनी अधिक उन्‍नति की है कि इन्‍हें पहचानना कठिन है।
   विकास से अंततोगत्‍वा सब वर्गों को सहायता मिलती है।  फिर भी, यह लगता है कि शुरू के चरणों में इसके कारण असमानताएँ बढ़ती हैं।  हमें इस तरह के असंतुलन ठीक करने के बारे में सदा सजग रहना चाहिए।  साथ ही आर्थिक कारणों के साथ-साथ सामाजिक कारणों पर भी ध्‍यान देना चाहिए।  इस स्थिति के कारण कई बार हमारी गति मंद पड़ जाती हैं।  किंतु युद्ध, प्राकृतिक आपत्तियों और अन्‍य कठिनाइयों के होते हुए भी हम आगे बढ़े हैं।  हमने अपने लोकतंत्र को सुदृढ़ किया है। हमारे साढ़े सात करोड़ बच्‍चे स्‍कूलों में पढ़ रहे हैं और लगभग बीस लाख विद्यार्थी कालेजों मे हैं।  हमारे देश में 50 करोड़ परिवार खेती करते हैं।  खेती ही हमारे लिए सबसे महत्‍वपूर्ण हैं।  पिछले 55 वर्षों में खेती के विकास के लिए आवश्‍यक ढाँचा स्‍थापित किया जा चुका है और 23 करोड़ एकड़ नई जमीन में सिंचाई होने लगी है।  हमारे किसान नए ढंग से खेती करने लगे हैं और उन्‍हें खेती के लिए आवश्‍यक चीजें दी जाने लगी हैं।  उनकी समस्‍याएँ हल करने के लिए वैज्ञानिकों की सहायता ली गई है और आज हम अन्‍न की दृष्टि से और सुदृढ़ हो गए हैं।  कृषि के सुधार के लिए, लोगों को रोजगार देने और स्‍वावलंबी बनाने के लिए हमें उद्योगों की आवश्‍यकता है।  उद्योगों का हमने तीन गुना विकास किया है और कर रहे हैं।

Monday, 15 October 2018

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 15 Oct, 2018 at Youtube


          महोदय, जापान की यात्रा सदा ही सुखद होती है।  यहाँ इतना कुछ और इतनी तेजी से हो रहा है कि यहाँ बार-बार आकर यहाँ के लोगों और देश से बार-बार परिचय करने का महत्‍व है।  जापान की प्रगति की भारतवासी बहुत सराहना करते हैं।  युद्ध के बाद आपका अपने देश का पुनर्निर्माण और आपकी हाल की आर्थिक सफलताएँ असाधारण हैं, किंतु आपने जिस ढंग से अपनी राजनीतिक और सामाजिक प्रणाली का कायापलट किया है और लोकतंत्र की स्‍थापना की है वह भी कम महत्‍वपूर्ण नहीं।  मैं वर्तमान जापान की आत्‍मशक्ति के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करता हूँ।  हम भारतवासी आपकी सफलताओं को बड़ी दिलचस्‍पी से देखते हैं और इस प्रयत्‍न में रहते हैं कि आपके कौन-से अनुभव से हमें अपने प्रयत्‍नों में सफलता मिल सकती है।  कोई चीज भी दूसरे से पूरी की पूरी उधार नहीं ली जा सकती।  उसको लेकर आत्‍मसात करना होता है।  विज्ञान के सिद्धांत तो सार्वभौम हैं, लेकिन प्रौद्योगिकी लोगों के सामाजिक वातावरण के अनुकूल ढाली जानी चाहिए।
    जो लोग भारत के बाहर हैं, उनके लिए हमारे देश को समझना और हमारे प्रयत्‍नों की विशालता का अनुमान लगाना कठिन है। हमने आपसे बहुत बाद में शुरुआत की।  जब हम स्‍वतंत्र हुए तो हमारे देश के पाँच सौ से ऊपर राजनीतिक टुकड़े थे।  जनसंख्‍या बहुत अधिक थी।  भाषाओं और धर्मों की बहुतायत थी।  विभिन्‍न राज्यों में ही नहीं, एक ही राज्‍य के भिन्‍न-भिन्‍न भागों में विकास का स्‍तर भिन्‍न-भिन्‍न था।  इन सब बातों के कारण हमारी कठिनाइयाँ बहुत बढ़ गईं।  ऐसा विशेष रूप से इस कारण था कि हमने लोकतंत्रीय मार्ग अपनाया।
    पिछले आम चुनावों के बाद बहुत-से राजनीतिक दल उठ खड़े हुए हैं और एक राज्‍य में गैरकांग्रेसी दल का शासन है और पाँच राज्‍यों में कई दलों की संयुक्‍त सरकारें हैं।  हमने इन सब बातों को अपने राजनीतिक विकास का ही एक चरण माना है।  कुछ उग्रवादी दल हैं।  फिर भी अपने उद्देश्‍य और तौर तरीकों में वे चाहे जितने भिन्‍न हों, हमें उनके मत को इस तरह ढालना है कि वे भी देश की एकता और प्रगति में पूरी तरह भागीदारी कर सकें।  हमने अपने प्रयत्‍नों से पूरी ईमानदारी से भावनात्‍मक एकता और भागीदारी तो पैदा की है, लेकिन उसी से सशक्‍त स्‍थानीय परंपराएँ भी जन्‍मी हैं।  एकता का अर्थ एक-सा होना नहीं होता।   

Saturday, 13 October 2018

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 13 Oct, 2018 at Youtube


     उपसभापति जी, हमारे विशेषज्ञों ने कहा है कि जिन देशों में पहले शिक्षा का विकास हुआ है वहाँ शेष विकास बड़ी सरलता से हुआ है और जिन देशों में शिक्षा का विकास नहीं हुआ, केवल पैसा मिलता रहा उनको, तो उसके कुछ और ही परिणाम हो सकते हैं। एक-एक देश का नाम लेकर बता सकता हूँ लेकिन देशों का नाम लेना ठीक नहीं है हमारे देश में पैसा बाद में आया।  जो बौद्धिक विकास है,  आर्थिक विकास है उसको पहली प्राथमिकता दी गई यह हमारे पुराने इतिहास से स्‍पष्‍ट है, और लोग भी इसको मानने लगे हैं कि जो प्राथमिकता भारत में ली गई है।  हमारे इतिहास के द्वारा वह सही है तो जब आप विकास की बात मानते हैं तो आपको अपनी प्राइमरी स्‍कूल की बात तो सोचनी ही चाहिए।  प्राइमरी स्‍कूल को कितने सरपंच देखते हैं।
    गाँवों को लोग देखते हैं उसके बारे में कोई भी आँकड़े रखते हैं मुझे याद है जब हम गाँवों में भाषण देने जाते थे तो प्राइमरी स्‍कूल से मेजें और कुर्सियाँ हमारी बैठक में उठा कर लाई जाती थीं और स्‍कूल के बच्‍चों की छुट्टी हो जाती थी।  तो यह कोई तरीका नहीं है और जब वहाँ आपको पौष्टिक आहार देना है तो मैं तो नहीं करूँगा यह, वह तो सरपंच साहब या जो महिला सदस्‍या हैं उनको अपने ऊपर लेना पड़ेगा और यह बड़ी खुशी की बात है कि हमने महिलाओं का भरपूर सहयोग इन संगठनों में रखा है।  वह चुन कर आई हैं, और कहीं–कहीं तो पुरुषों के बदले वे ही चुन कर आई हैं।
    कर्नाटक में या किसी दूसरे राज्‍य में कहा गया था कि 33 प्रतिशत की बजाय 46 प्रतिशत महिलाएँ चुन कर आई हैं।  मैं उनका स्‍वागत करता हूँ।  इसके साथ-साथ यह जो आपके सामने चुनौती है इस कार्यक्रम की जिसको शायद आपने पहले कभी नहीं लिया है इस चुनौती का सामना करने के लिए आपको संगठित शक्ति चाहिए।  अपसी झगड़ों  से परे हट कर आपको देखना है कि जो गाँव में गरीबी है उसे कैसे दूर करना है। कई समाजशास्त्रियों ने यह कहा है कि आज एक बहुत बड़ा अवसर मिल गया है कि पंचायतों को गरीबी को हटाने का उपाय आप सोच सकते हैं बाहर कोई नहीं सोच सकता।  तो यह तीसरा काम करना है।  एक तो वोटिंग का, दूसरा विकास वाला और तीसरा जो बुनियादी काम है गरीबी हटाने का, शीघ्र करना है ।
     उपसभापति जी, यह आपकी परीक्षा भी होगी और आपकी सफलता भी होगी।  पैसा वहाँ पहुँचाने की सीमा तक हमारी सफलता है, हमारा काम है। लेकिन जब सही आदमी को सही सहायता मिलती है, तो वह सफलता आपकी रहेगी और आप ही के माध्‍यम से काम होगा।  मुझे यह कहते हुए बड़ी खुशी हो रही है, मैं आशान्वित हूँ, जो आज तक नहीं हुआ, अब होने को है।  हम बहुत सोच रहे हैं कि ये पैसा कहाँ भेजें।  हम शासन में हैं और राजनीति में हैं और पार्टी राजनीति है।  तो यह रुझान भी हमको देखने को मिला है कि यहाँ भेजा हुआ पैसा, किसी और में अपने नाम से वहाँ खर्च किया।  अपनी पार्टी के नाम से या अपनी पार्टी के बनाए हुए किसी लेबिल के नीचे उस पैसे को खर्च किया।   मैं आपको बताना चाहता हूँ कि इसकी कोई आवश्‍यकता नहीं है
    मुझे नहीं मालूम, यहाँ जो सरपंच बैठे हुए हैं उनमें से किस पार्टी का कौन है, कितने हैं, मुझे इसकी परवाह भी नहीं है।  यह मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि हमारा राज तीन स्‍तरों पर चल रहा है एक केंद्रीय स्‍तर, एक राज्य स्‍तर और तीसरा जिसको आप स्‍थानीय कहते हैं जिसके आप प्रतिनिधि हैं।  इन तीनों स्‍तरों पर राजनीति चल रही है।  इसमें पार्टी की कोई आवश्‍यकता नहीं है, पार्टीबाजी की कोई आवश्‍यकता नहीं है और पार्टी के नाम पर कोई झगड़ा करने की आवश्यकता नहीं है।  
    जब केंद्रीय सरकार से पैसा आता है तो यह मानकर चलना चाहिए कि केंद्रीय सरकार से पैसा आता है, केंद्रीय सरकार उन्‍हीं की बनाई हुई, जिन्‍होंने राज्‍य सरकार बनाई है।  केंद्रीय सरकार में हमेशा एक ही पार्टी रहेगी, इसका क्‍या है कोई भी पार्टी आ सकती है केंद्र में लेकिन केंद्र सरकार, केंद्रीय सरकार ही रहेगी।  तो इसको छिपाना और इस पर पर्दा डालना और इसको कुछ उलटा–पुलटा समझाने का कोई लाभ नहीं है।  लोग अपने आप समझ जाएँगे कि पैसा केंद्रीय सरकार का है केंद्रीय सरकार का मतलब है, यह भी लोगों का ही है।  लेकिन हमारे संविधान में तीन स्‍तर बने हुए हैं केंद्र, राज्‍य और स्‍थानीय।  इन तीनों में विभाजन जैसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए और समझ लेना चाहिए।  राज्‍य सराकर हमारे कार्यक्रमों को बदल डाले, कोई दूसरा नाम दे और ये पैसा दूसरे नाम से खर्च करने लगे ठीक नहीं है।  

Wednesday, 10 October 2018

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 11 Oct, 2018 at Youtube


          सभापति महोदय, विकास की यह दीर्घकालीन चुनौती है कि हम अधिक से अधिक प्रयत्‍न करें और जिस प्रकार धनी और पिछड़े देशों को आपस में सहायोग करना आवश्यक है उसी तरह विकासशील देशों को भी एक दूसरे से व्‍यापार और दूसरे तरीकों से सहायता देकर सहयोग करना चाहिए।  हमारे लिए अपने साधन और कौशल को आपसी लाभ के लिए बाँटना संभव होना चाहिए।  इस प्रकार के द्विपक्षीय सहयोग का परिणाम यह होगा कि क्षेत्रीय आर्थिक सहयेाग के लिए बहुत से देशों में आपस में समझौते होंगे।
    सामाजिक लक्ष्‍य सिद्ध करने के लिए आं‍तरिक एकता और बाहरी खतरे से मुक्ति भी बेहद आवश्‍यक है।  संसार के सात बड़े देशों में से पाँच एशिया में हैं और उनमें इंडोनेशिया और भारत की भी गिनती होती है।  हम आशा करते हैं कि हमारा सारा क्षेत्र शांति और सहयोग का क्षेत्र होगा जिस पर किसी बाहरी शक्ति का न तो दबाव होगा और जहाँ न किसी प्रकार का तनाव और आपसी विरोध होगा।  तनाव तब हेाता है जब कोई देश दूसरे देश के मामलों में हस्‍तक्षेत्र करे।  यही कारण हे कि हम हमेशा इस तरह के हस्‍तक्षेप के विरूद्ध रहे हैं और हमारा सदा यह विश्‍वास रहा है कि सब देश शांति और सहअस्तित्‍व की भावना से रहें।    
    जिन सिद्धान्‍तों पर हमारी विदेश नीति आधारित है, उनमें से एक सिद्धान्‍त गुट-निरपेक्षता है।  हम सैनिक गठबंधन से बाहर रहे हैं, क्‍योंकि हम समझते हैं कि इस तरह के गठबंधनों से थोड़ी देर के लिए सुरक्षा का धोखा हो जाता है।  वास्‍तवि‍क शक्ति कभी नहीं प्राप्‍त होती।  आजकल शक्ति शून्‍यता या रिक्‍तता की बहुत चर्चा है और किसी क्षेत्र से विभिन्‍न राष्‍ट्रों की सेनाएँ हट जाने से जो रिक्‍तता हो सकती है उसके बारे में मुझसे प्रश्‍न पूछे गए हैं।  मैं यह भविष्‍यवाणी नहीं कर सकती कि क्‍या होगा लेकिन यह कहा जा सकता है कि जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा और हालैंड ने इंडो‍नेशिया छोड़ा तो उससे दोनों देशों में शक्ति शून्‍यता आ गई।  लेकिन हमारे राष्‍ट्रों ने इसे तत्‍काल भर दिया।  मुझे इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि इस क्षेत्र के देश इस रिक्‍तता को स्‍वयं भर सकते हैं।  एशिया में दो युद्ध हो चुके हैं।  वियतनाम में एक आशा की किरण फूटी है कोई भी समझौता हो, यह निश्‍चय है कि इससे नई चुनौतियाँ, नई समस्‍याएँ सामने आएँगी।  हम सब को इस तरह की समस्‍याओं को हल करने में सहायता करनी चाहिए।

Sunday, 7 October 2018

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 8 Oct, 2018 at Youtube




          सभापति महोदय, विकास की यह दीर्घकालीन चुनौती है कि हम अधिक से अधिक प्रयत्‍न करें और जिस प्रकार धनी और पिछड़े देशों को आपस में सहायोग करना आवश्यक है उसी तरह विकासशील देशों को भी एक दूसरे से व्‍यापार और दूसरे तरीकों से सहायता देकर सहयोग करना चाहिए।  हमारे लिए अपने साधन और कौशल को आपसी लाभ के लिए बाँटना संभव होना चाहिए।  इस प्रकार के द्विपक्षीय सहयोग का परिणाम यह होगा कि क्षेत्रीय आर्थिक सहयेाग के लिए बहुत से देशों में आपस में समझौते होंगे।
    सामाजिक लक्ष्‍य सिद्ध करने के लिए आं‍तरिक एकता और बाहरी खतरे से मुक्ति भी बेहद आवश्‍यक है।  संसार के सात बड़े देशों में से पाँच एशिया में हैं और उनमें इंडोनेशिया और भारत की भी गिनती होती है।  हम आशा करते हैं कि हमारा सारा क्षेत्र शांति और सहयोग का क्षेत्र होगा जिस पर किसी बाहरी शक्ति का न तो दबाव होगा और जहाँ न किसी प्रकार का तनाव और आपसी विरोध होगा।  तनाव तब हेाता है जब कोई देश दूसरे देश के मामलों में हस्‍तक्षेत्र करे।  यही कारण हे कि हम हमेशा इस तरह के हस्‍तक्षेप के विरूद्ध रहे हैं और हमारा सदा यह विश्‍वास रहा है कि सब देश शांति और सहअस्तित्‍व की भावना से रहें।    
    जिन सिद्धान्‍तों पर हमारी विदेश नीति आधारित है, उनमें से एक सिद्धान्‍त गुट-निरपेक्षता है।  हम सैनिक गठबंधन से बाहर रहे हैं, क्‍योंकि हम समझते हैं कि इस तरह के गठबंधनों से थोड़ी देर के लिए सुरक्षा का धोखा हो जाता है।  वास्‍तवि‍क शक्ति कभी नहीं प्राप्‍त होती।  आजकल शक्ति शून्‍यता या रिक्‍तता की बहुत चर्चा है और किसी क्षेत्र से विभिन्‍न राष्‍ट्रों की सेनाएँ हट जाने से जो रिक्‍तता हो सकती है उसके बारे में मुझसे प्रश्‍न पूछे गए हैं।  मैं यह भविष्‍यवाणी नहीं कर सकती कि क्‍या होगा लेकिन यह कहा जा सकता है कि जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा और हालैंड ने इंडो‍नेशिया छोड़ा तो उससे दोनों देशों में शक्ति शून्‍यता आ गई।  लेकिन हमारे राष्‍ट्रों ने इसे तत्‍काल भर दिया।  मुझे इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि इस क्षेत्र के देश इस रिक्‍तता को स्‍वयं भर सकते हैं।  एशिया में दो युद्ध हो चुके हैं।  वियतनाम में एक आशा की किरण फूटी है कोई भी समझौता हो, यह निश्‍चय है कि इससे नई चुनौतियाँ, नई समस्‍याएँ सामने आएँगी।  हम सब को इस तरह की समस्‍याओं को हल करने में सहायता करनी चाहिए।

Friday, 5 October 2018

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 6 Oct, 2018 at Youtube


    सभापति महोदय, मैं आपको बता सकता हूँ अपने अनुभव से कि भारत जब स्‍वतंत्र हुआ तो यहाँ बहुत दंगे हुए।  लोगों को बड़ी परेशानी हुई और उनको इधर से उधर जाना पड़ा तो कुछ लोग कहने लगे कि इस स्‍वतंत्रता से हमें क्‍या मिला, इस जनतंत्र से हमें क्‍या मिला, इस लोकतंत्र से हमें क्‍या मिला।  जब इतनी बर्बादी हुई हम अंग्रेजी सरकार से किस तरह से बेहतर हैं?  तो उस जमाने में लोगों के सामने जो पेरशानी आई थी, जो उनका सामना नहीं कर सकते थे उन्‍हें अंग्रेज सरकार अच्‍छी लगती थी, क्‍योंकि अंग्रेजी सरकार में उनको शांति थी और हमारी जब सरकार आई तो अशांति हो गई।  कुछ लोग स्‍वतंत्रता की कोई भी कीमत देने के लिए तैयार नहीं हैं।  वे चाहते हैं कि नि:शुल्‍क ही मिले।  हम जानते हैं कि और देशों में स्‍वतंत्रता की प्राप्ति के लिए बहुत संख्‍या में मारकाट हुई।  महात्‍मा गांधी के पुण्‍य से, उनके आशीर्वाद, उनकी पहल से और उनके बनाए हुए वातावरण से हमें बहुत थोड़ी कीमत ही स्‍वतंत्रता के लिए देनी पड़ी।  फिर भी कुछ लोग इस कीमत को देने के लिए तैयार नहीं थे।  इसलिए यह कहना कि अगर एक बार हमें जनतंत्र मिल गया तो हमेशा के लिए पक्‍का रहेगा यह ठीक नहीं है।  हमारे समाज में ऐसे कमजोर लोग बहुत हैं जो समझते हैं कि यह पद्धति ही खराब है जिससे हमें परेशानी हुई है।  कोई दुकानदार है उसको क्‍या फर्क पड़ता है कि कौन-सी पार्टी आए और कौन-सी पार्टी जाए, जनतंत्र आए या जाए अंतर पड़ता होगा अप्रत्‍यक्ष रूप में, लेकिन प्रत्‍यक्ष में उनको अंतर नहीं पड़ता है इसलिए हमने आज  यह काम किया है पंचायती राज के माध्‍यम से हमारे संविधान निर्माताओं ने जो काम करवा कर दिखाना चाहा वह यह था कि लाखों हमारे लोग हमारे देश में इस नई प्रणाली में इस नई व्‍यवस्‍था में जुट जाएँ।
    पंचायती राज पहली बार 1959 में जब पंडित जी लेकर आए तो हमारी पंचायती समितियाँ आदि सब बनीं।  लेकिन और रूप में बनीं तो उन पंचायती समितियों में कभी चुनाव हुए, कभी नहीं हुए और मुख्‍य मंत्री को ऐसा लगने लगा या जिस पार्टी का शासन उस राज्‍य में था, उस पार्टी को ऐसा लगा, अगली बार चुनाव करेंगे तो शायद हमारा बहुमत नहीं आएगा तो उन्‍होंने पंचायतों के चुनाव नहीं किए।

Tuesday, 2 October 2018

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 3 Oct, 2018 at Youtube





     सभापति महोदय, बहुत कम हुआ है कि सारे भारतवर्ष के प्रतिनिधियों को एक जगह एकत्रि‍त होने का ऐसा अवसर जैसा आज मिला है, कहीं विधानसभा में, कहीं संसद में, कहने को तो आज भारत के ही हम सब प्रतिनिधि हैं लेकिन जो विशाल प्रतिनिधित्‍व आज मैं अपने सामने देख रहा हूँ जिसमें जीवन का एक स्‍पंदन सारे भारत के हृदय की धड़कन है, वह मैं देख रहा ंारत के हृदय की धड़कर है, वह मैं देख रहा हूँ।  शायद अन्‍यत्र ऐसा दृश्‍य नहीं मिलता, इसलिए आप सब को फिर एक बार मैं हृदय से कहना चाहता हूँ कि यह साक्षात्‍कार आपका और हमारा हो रहा है यह एक नए इतिहास की नींव डालता है यह एक नए इतिहास का प्रतीक है।  यदि कहा जाए कि सन् 1947 के बाद भारत की कोटि-कोटि‍ जनता को और एक बार स्‍वतंत्रता मिली है, और एक बार स्‍वराज मिला है और सच्‍चा स्‍वराज मिला है जिसका वे अनुभव कर सकते हैं जिसको वे उपयोग कर सकते हैं तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।  
हमारे संविधान में हमारे संविधान बनाने वालों ने यह अनुभव किया था कि खाली संसद बनने से और विधान सभाओं के बनने से हमारा स्‍वराज्‍य पूरा नहीं हो सकता।  हमारे स्‍वराज का ढाँचा, हमारी संसद का ढाँचा पूरा नहीं होता लेकिन उनके पास समय नहीं था।  उनको चार वर्ष में संविधान बनाना था इसलिए उन्‍होंने उसको बनाया।  केंद्र और राज्‍य स्‍तरों पर बनाया और उसके आनुषंगिक जो भी संस्‍थाएँ और संगठन हो सकते थे, जिनकी कल्‍पना की जा सकती थी जैसे उच्‍चतम न्‍यायालय, उच्‍च न्‍यायालय और लोक सेवा आयोग इन सारी चीजों की कल्‍पना करके उन्‍होंने संविधान बनाया।  लेकिन बहुत कुछ उनको छोड़ देना पड़ा चार वर्ष में वे पूरा नहीं कर सकते थे  इसके कई कारण थे।  संविधान सभाओं की चर्चाओं में कई बातें आ गई थीं किसी ने कहा कि इसकी क्‍या आवश्‍यकता है।  किसी ने कहा कि इसकी बड़ी आवश्‍यकता है।  इसलिए उन्‍होंने कुछ निर्देशक सिद्धांत दिए।  कुछ ऐसे सिद्धांत दिए जिसके अनुसार सरकारों को आगे कार्य करना था।  उन्‍होंने कहा कि यह आप कीजिए उनमें से पंचायती राज एक है उन सिद्धांतों में यह भी है कि जितना शीघ्र हो सके यहाँ पंचायती राज संस्‍थाएँ स्‍थापित हों।
    आज मैं आपको एक छोटा-सा उदाहरण देता हूँ।  हमने अपने लिए लोकतांत्रिक पद्धति चुनी, अपनाई लेकिन लोकतांत्रिक पद्धति का क्‍या आशय होता है।