महोदय, हमारी संघीय रचना और जनता द्वारा
चलाए जाने वाले स्थानीय शासनतंत्र से और सत्ता के विकेंद्रीत प्रयोग से हमारी
एकता सुदृढ़ हुई है। कभी-कभी तनाव और
असहमति होती है, किन्तु हमारे विकास की वर्तमान अवस्था में और विशेष रूप से इस
कारण ऐसा होना अनिवार्य है कि हमारे पास इतने कम साधन हैं कि प्रत्येक को संतुष्ट
नहीं किया जा सकता। हमारे से छोटे देशों
में भी अब क्षेत्रीय खींचातानी अनुभव की जा रही है। इन स्थितियों में हमने अपने राष्ट्रीय
पुनर्निर्माण का कार्य अपने हाथ में लिया।
अपनी पंचवर्षीय योजनाओं में, सामाजिक सुविधाएँ बढ़ाने, उद्योगों के लिए आवश्यक
ढाँचा खड़ा करने और ऐसे बुनियादी उद्योग स्थापित करने का काम शासन ने अपने जिम्मे लिया है, जिन्हें निजी उद्योग स्थापित
नहीं कर सकते। साथ ही निजी उद्योगों के
लिए भी बड़ा क्षेत्र बचा है और स्वतंत्रता के बाद निजी उद्योगों के लिए बढ़ने की
बहुत गुंजाइश है और वास्तव में इन्होंने इतनी अधिक उन्नति की है कि इन्हें
पहचानना कठिन है।
विकास से अंततोगत्वा
सब वर्गों को सहायता मिलती है। फिर भी, यह लगता है कि शुरू के
चरणों में इसके कारण असमानताएँ बढ़ती हैं।
हमें इस तरह के असंतुलन ठीक करने के बारे में सदा सजग रहना चाहिए। साथ ही आर्थिक कारणों के साथ-साथ सामाजिक
कारणों पर भी ध्यान देना चाहिए। इस
स्थिति के कारण कई बार हमारी गति मंद पड़ जाती हैं। किंतु युद्ध,
प्राकृतिक आपत्तियों और अन्य
कठिनाइयों के होते हुए भी हम आगे बढ़े हैं।
हमने अपने लोकतंत्र को सुदृढ़ किया है। हमारे साढ़े सात करोड़ बच्चे स्कूलों
में पढ़ रहे हैं और लगभग बीस लाख विद्यार्थी कालेजों मे हैं। हमारे देश में 50 करोड़ परिवार खेती करते
हैं। खेती ही हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण
हैं। पिछले 55 वर्षों में खेती के विकास
के लिए आवश्यक ढाँचा स्थापित किया जा चुका है और 23 करोड़ एकड़ नई जमीन में
सिंचाई होने लगी है। हमारे किसान नए ढंग
से खेती करने लगे हैं और उन्हें खेती के लिए आवश्यक चीजें दी जाने लगी हैं। उनकी समस्याएँ हल करने के लिए वैज्ञानिकों की
सहायता ली गई है और आज हम अन्न की दृष्टि से और सुदृढ़ हो गए हैं। कृषि के सुधार के लिए, लोगों को रोजगार देने और
स्वावलंबी बनाने के लिए हमें उद्योगों की आवश्यकता है। उद्योगों का हमने तीन गुना विकास किया है और कर
रहे हैं।