Sunday, 9 February 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 10th February, 2020 at YouTube

          महोदय, एक गणतांत्रिक देश और एक स्‍वतंत्र व्‍यक्ति की मर्यादा को प्रतिष्ठित करने में जनसंचार का महत्‍वपूर्ण सहयोग रहता है और गणतांत्रिक अधिकार संरक्षण में एक जिम्‍मेवार अभिभावक की तरह काम करता है।  बशर्ते इसे सटीक और नियोजित तरीके से प्रयोग किया जाए।  इसिलए माध्‍यमों को निष्‍पक्ष, नि:स्‍वार्थ और जनमुखी होना भी आवश्यक हो जाता है।  अगर ऐसा नहीं हुआ तो एक प्रगतिशील, स्‍वस्‍थ और संस्‍कृति-निष्‍ठ मनुष्‍य को जन्‍म देने में देश कभी सफल नहीं होगा।  देश और देश में रहने वालों के बीच ये एक सेतु की तरह काम करता है।  दूसरी ओर निेडर, निरपेक्ष और जागरूक नागरिक गढ़ने में भी जनसंचार, बलिष्‍ठ हथियार के रूप में स्‍वीकृत है।  गणतंत्र के आश्रय में एक नायक तंत्र के विनाश में और गणतांत्रिक देश के पतन को टालने में जनसंचार बहुत प्रभावशाली भूमिका निभाता है।  दुख की बात तो यह है कि इन दिनों राजनीति की खींचतान में व्‍यक्ति अधिकार और स्‍वाधीनता की भावनाएँ मित्र रूप ले रही हैं।  अब खुलकर गणतांत्रिक अधिकार की बात करने का मतलब किसी एक दल या समूह के पक्ष में बात करना जैसा हो गया है जैसे इस अधिकार रक्षा का उत्‍तरदायित्‍व उसने स्‍वयं ले लिया हो और इसका एक ही कारण है, नागरिक अधिकार जिसे हमने संविधान के तहत प्राप्‍त किया है, उसका लगातार दुरुपयोग होते-होते हम गणतंत्र को ही संदेह की दृष्टि से देखने लगे हैं।  पर मैं यह भी नहीं कहना चाहूँगा कि देशवासियों की चेतना और मानसिकता में राजनीति अछूती रहे।  बल्कि मैं तो कहूँगा कि राजनीतिक शिक्षा के बिना गणतंत्र और स्‍वाधीनता अचल है।  इसके लिए आवश्‍यक नहीं कि अपनी राजनीतिक भावना लेकर किसी एक दल का सदस्‍य होना पड़ेगा।  यह राजनीतिक शिक्षा स्‍वयं के लिए अपने मानसिक विकास के लिए।  अत: वह किसी एक दल से प्रतिबद्ध नहीं भी हो सकती है।
    देश के नागरिक अगर राजनीतिक चेतना प्रवाह से अपने को अलग रखें तो यह गणतंत्र के लिए खतरे का कारण बन जाएगा।  क्‍योंकि मात्र मतदान ही बड़ी बात नहीं है।  असल बात तो यह है कि मतदान किसके पक्ष में दिया जा रहा है, नहीं दिया जा रहा है इसका हमें समुचित ज्ञान होना चाहिए।  वरना मतदान का उद्देश्‍य ही अर्थहीन हो जाएगा।  यह बात मैं इसलिए कह रहा हूँ कि विश्‍व में सबसे ज्‍यादा मतदान भारत में होता है।

Wednesday, 5 February 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 6th February, 2020 at YouTube


महोदय,  गणतंत्र में जनसंचार के महत्‍व के विषय में कुछ कहने से पहले यह देखना आवश्‍यक है कि गणतंत्र में कौन-कौन से अधिकार स्‍वीकृत हैं।  देश का नागरिक होने के नाते एक नागरिक कौन-से अधिकार या सुविधा की आशा कर सकता है और तभी हम इसे स्‍पष्‍ट कर सकेंगे कि उन सुविधाओं अर्थात् जन गणतंत्र की पुष्टि के लक्ष्‍य में जन-संचार को क्‍या और कैसी भूमिकाएँ निभानी चाहिए।  हम सब जानते हैं कि 26 जनवरी, 1930 को देश में सर्वत्र पूर्ण स्‍वराज दिवस मनाया गया था।  इसके बीस वर्ष बाद यानी 1950 के 26 जनवरी को प्रजातंत्र भारत का जन्‍म हुआ।
    भारत का संविधान मानवाधिकार, न्‍याय और एकता पर आधारित है।  इसमें भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्‍लेख किया गया है।  भारत देश में जन्‍म के साथ-साथ ही एक व्‍यक्‍ति कानून की नजर में समानाधिकार का हकदार बन जाता है।  धर्म, जाति, लिंग और जन्‍मस्‍थान के तहत उनके ऊपर किसी भी विधि निषेध का आरोप नहीं किया जाएगा।  नौकरी के क्षेत्र में उन्‍हें बराबर सुविधाएँ मिलेंगी।  कोई छूत-अछूत नहीं रहेगा।  नागरिकों को अपनी भावनाओं को व्‍यक्‍त करने की स्‍वतंत्रता रहेगी।  निरस्‍त्र जनगण शांतिपूर्ण रूप से देश के किसी भी भाग में अथवा स्‍थान में आ-जा सकेंगे।  उन्‍हें मानव के रूप में क्रय-विक्रय नहीं किया जाएगा।  उनके ऊपर कोई दबाव नहीं डाला जाएगा।  बच्‍चों को कारखानों में नियुक्‍त नहीं किया जाएगा।  उनके अधिकार में होगा विवेक की स्‍वाधीनता, वे किसी भी धंधे को चुन सकते हैं, अपना सकते हैं।  उनके पास धर्माचरण की स्‍वाधीनता होगी आदि-आदि।  इन सबके साथ जिसके बलबूते पर एक गणतांत्रिक देश दृढ़ रहता है और राष्‍ट्रीय एकता अटूट रहती है जनगण की परस्‍पर सहयोगिता और योगदान आवश्‍यक है।  अत: इसकी स्‍थापना, प्रचार व प्रसार में जनसंचार की एक महत्‍वपूर्ण भूमिका है। एक विश्‍वस्‍त आशाकारी प्रतिनिधि की तरह जन संचार माध्‍यम चाहे वह दूरदर्शन हो, चाहे आकाशवाणी हो चाहे समाचार पत्र, देश और देशवासियों के बीच एक मशाल का काम करता है।  एक संपर्क का काम करता है और विशेष रूप से इस पर देश की एकता और अखंडता टिकी रहती है।  इस अर्थ में जन संचार का महत्‍व कुछ कम नहीं है।  दूरदर्शन, आकाशवाणी समाचार पत्र - ये सब गणतंत्र के सजग प्रहरी की तरह हैं, और एक महत्‍वपूर्ण माध्‍यम भी हैं।

Sunday, 2 February 2020

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 3rd February, 2020 at YouTube


    उपाध्‍यक्ष महोदय, इन वि‍शेषज्ञों और ऐसे अन्‍य लोगों की भविष्‍यवाणियाँ एकदम गलत सिद्ध हुई हैं क्‍योंकि वे प्रत्‍येक समाज की व्‍याख्‍या यूरोपीय दृष्टिकोण से करने की कोशिश करते रहे हैं और भारत को अपने पूर्वानुमानित सिद्धांतों और चौखटों में फिट करने की कोशिश करते रहे हैं।  वे हमारी जनता की असाधारण समुत्‍थान शक्‍ति और आस्‍था तथा साहस के उनके अक्षय भंडार को देख पाने में असफल रहे हैं।  भारत में हमने जान-बूझकर अतिवादी स्थितियों को अपनाने से बचाव किया है।  हमें प्रत्‍येक परिस्थिति की विविधतओं की ओर ध्‍यान देना होता है।  हम अपने पूर्वजों द्वारा घोषित एक महनतम सत्‍य को सदा दृष्टिकोण में रखने का प्रयास करते हैं।  सत्‍य एक है परंतु विवेकीजन प्राय: उसके विविध रूपों का वर्णन करते हैं।  यह विश्‍वास कि सत्‍य तक पहुँचने के अनेक रास्‍ते हैं, हमारी सह-अस्तित्‍व की नीति का आधार है।  प्रत्‍येक राष्‍ट्र को अधिकार होना चाहिए कि वह अपनी सामाजिक पद्धति का अनुसरण करे और दूसरों द्वारा अपने ढंग से अनुसरण करने के अधिकार को स्‍वीकार करे।  एशिया और अफ्रीका तथा विश्‍व के बहुसंख्‍यक देशों ने हमारी जैसी विदेशी नीति अपनाई है और वे शांतिपूर्ण सह-अस्‍तित्‍व और गुट-निरपेक्ष के मार्ग पर चल रहे हैं।  अब यह बात और स्‍पष्‍ट रूप से मानी जा रही है कि विश्‍व-व्‍यवस्‍था सहयोग पर निर्भर करती है, इस बात पर निर्भर करती है कि हम छोटे-से-छोटे देश के प्रति भी समानता का व्‍यवहार करें और यह समझें कि विश्‍व बड़े-से-बड़े राष्‍ट्र से भी बड़ा है।
    किसी देश का आकार महत्‍वपूर्ण नहीं होता।  एक समय था, जब एक छोटे-से देश ने हमें आक्रांत किया था।  ऐसे भी उदाहरण मिल जाएँगे कि एक छोटे-से देश ने बहुत बड़े और शक्‍तिशाली देश का सफलतापूर्वक सामना किया और उसके इरादों को पूरा नहीं होने दिया।  इसका सर्वोत्‍तम उदाहरण वियतनामी जनता का संघर्ष है, जिसने शक्‍ति की सीमा को उजागर कर दिया है।  वियतनाम की जनता की पीड़ा से हमें गहरी हमदर्दी है और उनकी उद्वि‍तीय वीरता की हम सराहना करते हैं।  अपने आसपास हमने देखा है कि किस प्रकार त्‍याग और कष्‍ट सहिष्‍णुता की विजय बर्बरता और अत्‍याचार पर हुई, जिससे बांगलादेश का उदय हुआ।  प्रत्‍येक देश में ऐसे अनेक उज्‍जवल उदाहरण होंगे जो यह सिद्ध कर दिखाते हों कि मानव की आत्‍मा अजर-अमर है और यह ध्‍यान रखना है।