महोदय, एक गणतांत्रिक देश और एक स्वतंत्र व्यक्ति की मर्यादा को प्रतिष्ठित करने में जनसंचार का महत्वपूर्ण सहयोग रहता है और गणतांत्रिक अधिकार संरक्षण में एक जिम्मेवार अभिभावक की तरह काम करता है। बशर्ते इसे सटीक और नियोजित तरीके से प्रयोग किया जाए। इसिलए माध्यमों को निष्पक्ष, नि:स्वार्थ और जनमुखी होना भी आवश्यक हो जाता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो एक प्रगतिशील, स्वस्थ और संस्कृति-निष्ठ मनुष्य को जन्म देने में देश कभी सफल नहीं होगा। देश और देश में रहने वालों के बीच ये एक सेतु की तरह काम करता है। दूसरी ओर निेडर, निरपेक्ष और जागरूक नागरिक गढ़ने में भी जनसंचार, बलिष्ठ हथियार के रूप में स्वीकृत है। गणतंत्र के आश्रय में एक नायक तंत्र के विनाश में और गणतांत्रिक देश के पतन को टालने में जनसंचार बहुत प्रभावशाली भूमिका निभाता है। दुख की बात तो यह है कि इन दिनों राजनीति की खींचतान में व्यक्ति अधिकार और स्वाधीनता की भावनाएँ मित्र रूप ले रही हैं। अब खुलकर गणतांत्रिक अधिकार की बात करने का मतलब किसी एक दल या समूह के पक्ष में बात करना जैसा हो गया है जैसे इस अधिकार रक्षा का उत्तरदायित्व उसने स्वयं ले लिया हो और इसका एक ही कारण है, नागरिक अधिकार जिसे हमने संविधान के तहत प्राप्त किया है, उसका लगातार दुरुपयोग होते-होते हम गणतंत्र को ही संदेह की दृष्टि से देखने लगे हैं। पर मैं यह भी नहीं कहना चाहूँगा कि देशवासियों की चेतना और मानसिकता में राजनीति अछूती रहे। बल्कि मैं तो कहूँगा कि राजनीतिक शिक्षा के बिना गणतंत्र और स्वाधीनता अचल है। इसके लिए आवश्यक नहीं कि अपनी राजनीतिक भावना लेकर किसी एक दल का सदस्य होना पड़ेगा। यह राजनीतिक शिक्षा स्वयं के लिए अपने मानसिक विकास के लिए। अत: वह किसी एक दल से प्रतिबद्ध नहीं भी हो सकती है।
देश के नागरिक अगर राजनीतिक चेतना प्रवाह से अपने को अलग रखें तो यह गणतंत्र के लिए खतरे का कारण बन जाएगा। क्योंकि मात्र मतदान ही बड़ी बात नहीं है। असल बात तो यह है कि मतदान किसके पक्ष में दिया जा रहा है, नहीं दिया जा रहा है इसका हमें समुचित ज्ञान होना चाहिए। वरना मतदान का उद्देश्य ही अर्थहीन हो जाएगा। यह बात मैं इसलिए कह रहा हूँ कि विश्व में सबसे ज्यादा मतदान भारत में होता है।