Wednesday, 2 October 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 03 October, 2019 at YouTube


अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की बढ़ती खीझ का असर आज सार्क यानी दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में भी देखने को मिला। वहां जिस समय भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर अपना शुरुआती बयान दे रहे थे, तब पाकिस्तान के विदेश मंत्री महमूद कुरैशी ने इसका बहिष्कार किया। वह जयशंकर का भाषण खत्म होने के बाद ही बैठक में पहुंचे और यह भी कहा कि जब तक भारत कश्मीर पर अपने फैसले को वापस नहीं लेता, वह किसी वैश्विक मंच पर भारत के साथ नहीं रहेंगे। जाहिर है, भारत को वैसा ही जवाब देना पड़ा। जब पाकिस्तानी विदेश मंत्री का भाषण हुआ, तो भारतीय विदेश मंत्री वहां मौजूद नहीं थे। वैसे एस जयशंकर एक दिन पहले ही यह बयान दे चुके थे कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद का इस्तेमाल अपनी विदेश नीति के औजार की तरह करता रहेगा, उसके साथ किसी भी तरह की बातचीत संभव नहीं है। यह पहली बार नहीं है, जब पाकिस्तान के रवैये के चलते सार्क अपना अर्थ खोने लग गया हो। 2016 का सार्क सम्मेलन इस्लामाबाद में होना था, लेकिन उसके ठीक पहले उरी में भारतीय सेना के शिविर पर आतंकवादी हमला हो गया। इसके बाद भारत ने घोषणा कर दी कि वह इस्लामाबाद के सार्क सम्मेलन में भाग लेने नहीं जाएगा। उसके बाद बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान भी भारत के समर्थन में आ गए, उन्होंने भी इस्लामाबाद सम्मेलन में शामिल न होने की घोषणा की, जिसके बाद वह सम्मेलन रद्द करना पड़ा था। सार्क का अगला सम्मेलन कोलंबो में इसी साल होना है, लेकिन सार्क जो उम्मीद बंधाता था, उसकी कमर पाकिस्तान बहुत पहले ही तोड़ चुका है। रही-सही कसर इस बार निकल गई, जब संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन से पहले सार्क देशों ने अपनी बैठक का फैसला किया। 
पाकिस्तान की खीझ लगातार इसलिए भी बढ़ती जा रही है कि कश्मीर मामले पर पूरी दुनिया दो चीजों को अच्छी तरह समझ गई है। एक, कश्मीर में भारत ने जो किया, वह उसका आंतरिक मामला है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना और इस क्षेत्र का दर्जा बदलना ऐसा काम नहीं है, जिसमें किसी अंतरराष्ट्रीय नियम-कायदे का कोई उल्लंघन हुआ हो। दूसरी, पूरी दुनिया शिमला समझौते की उस भावना को स्वीकार करती है कि जिसे कश्मीर मसला कहा जा रहा है, वह भारत और पाकिस्तान का आपसी विवाद है, जिसे दोनों को खुद ही बातचीत से सुलझाना होगा। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान पिछले कई हफ्तों से पूरी दुनिया की ताकतों से मध्यस्थता की मांग करते घूम रहे हैं, लेकिन कोई भी इसे स्वीकार नहीं कर रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस मसले पर यही कहा है कि कोई भी मध्यस्थता तभी हो सकती है, जब दोनों देश इस पर राजी हों। इस मसले पर चीन भी पाकिस्तान की बहुत ज्यादा मदद नहीं कर पाया।
अब पाकिस्तान को कई सच स्वीकार करने होंगे। पहला यह कि कश्मीर में भारत ने जो किया, वह उसका आंतरिक मामला है, उसे इस पर कुछ बोलने का अधिकार नहीं है। दूसरा, आतंक के इस्तेमाल की नीति ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा है और इस नीति को खत्म करने का कोई विकल्प नहीं है। लेकिन लगता नहीं कि पाकिस्तान इतनी जल्दी इन सच को स्वीकार कर पाएगा।


No comments:

Post a Comment