Monday, 30 December 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 31 December, 2019 at YouTube


     स्पीकर महोदय, मैं सोचता हूँ कि अगर आप डेढ़ वर्ष पीछे जा सकते और फिर यह देख सकते कि इन डेढ वर्षों में क्या हुआ है, तो आपको लगेगा कि भारत बहुत अर्थों में अपनी सब तरह की मुश्किलों और तकलीफों के बावजूद, जिनमें से वह गुजरा है, काफी आगे बढ़ा है।  हमारी सरकार और विशेष कर मुझे बहुत बोझ उठाना पड़ रहा है; हमारे सामने आज भी बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ हैं।  फिर भी, मैं पूरी ईमानदारी से कहता हूँ कि मेरे अंदर न असफलता का भाव है और मैं दूर-भविष्य तो नहीं निकट-भविष्य की ओर पूरे विश्वास के साथ देखता हूँ और अपने अंदर छुपा हुआ एक ऐसा अनुभव पाता हूँ कि मुझे इस भारत के इतिहास के महत्वपूर्ण चरण में हिस्सा लेने का अवसर मिला।  क्योंकि आपने मेरे प्रस्तावों का जिक्र किया है, इसलिए मैं एक चीज कहना चाहूँगा कि बजट में बहुत-सी चीजें हुआ करती हैं, जिनसे कुछ सदस्यों को शायद खुशी न होती हो।  शायद हम इस बात में या उस बात में कुछ और बेहतर काम कर सकते थे लेकिन मैं समझता हूँ कि स्वयं बजट हमारी और हमारे राष्ट्र की ताकत की निशानी है।  मेरे ख्‍याल से जिस ध्यान और दूरदर्शिता के साथ हमारे वित्त मंत्री ने यह बजट तैयार किया है, उससे आने वाले महीनों और वर्षों में हमें बहुत लाभ होगा।
     अगर मैं साफ कहूँ कि हमने बहुत फूँक-फूँक कर कदम रखे हैं क्योंकि हममें आपने जो बहुत बड़ा भरोसा रखा है, उसके बारे में हम जोखिम नहीं उठाना चाहते।  बहुत सी चीजें हैं जो हमने चाहते हुए भी नहीं की, क्योंकि हम भारत के भविष्य और भारत के वर्तमान को दाँव पर नहीं लगा सकते थे।  ऐसी चीजों में भी जो हमारे ही सिद्धांतों और विचारों के अनुसार है अगर, कोई जोखिम या खतरा दिखाई दिया तो, हम उसमें भी आगे नहीं बढ़े तथा हम सतर्कता के साथ आगे बढ़े हैं।  हो सकता है कि अगर हमने ज्यादा साहस नहीं दिखाया होता, तो कुछ काम जल्दी हो जाता, लेकिन में व्यक्तिगत तौर से इस नाजुक वक्त में बहुत होशियारी से चलने की नीति पर चलने से पूरी तरह सहमत हूँ।  जहाँ-जहाँ छोटी-मोटी बात के अलावा, मैं अपने साथी वित्तमंत्री की प्रशंसा करना चाहता हूँ कि किस साहस, दृष्टि और ऊँची बुद्धिमत्ता के साथ उन्होंने समस्या को सुलझाया है।  यह सराहनीय प्रयास है।

Thursday, 26 December 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 27 December, 2019 at YouTube


   स्पीकर महोदय, यह सदन निस्संदेह हमारी विदेश नीति और विदेशी मामलों के बहुत-से पहलुओं में दिलचस्पी रखता है और इस बारे में भी कि भारत पर इसका क्या असर पड़ता है।  संभवतः आज जो बहस होने वाली है उसमें इन बहुत-सी बातों के बारे मैं ध्यान खींचा जाएगा।  लेकिन महोदय मैं आपकी अनुमति और इस सदन की सहमति से विदेशी मामलों और विदेश नीति और उनका भारत पर क्या-क्या असर पड़ता है और हम इनको किस दृष्टि से देखते हैं, इन चीजों के सामान्य पहलुओं के बारे में कुछ कहना चाहूँगा और मुख्य समस्या की छोटी-छोटी बातों में नहीं जाऊँगा।  इससे भी पहले मैं केवल विदेशी मामलों में ही नहीं बल्कि स्वयं भारत के बारे में कुछ आम बातें कहूँगा।  पिछले कुछ दिनों में बजट प्रस्तावों के सिलसिले में बहुत कुछ नुक्ताचीनी की गई और कम या ज्यादा जोर के साथ सरकार की असफलताएँ बताई गई हैं। जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मैं हर तरह की आलोचना का स्वागत करता हूँ और मैं इस बात पर विश्वास करता हूँ कि अगर यह सदन सिर्फ एक गतिहीन सदन, दब्बू सदन या ऐसा सदन जो हर सरकारी चीज की हाँ-में-हाँ मिलाने वाला सदन हो जाए, तो यह मेरे विचार से दुर्भाग्यपूर्ण होगा।  हमेशा चौकन्ना रहना ही स्वतंत्रता की कीमत है और इस सदन के हर सदस्य को हर समय जागृत व चौकन्ना रहना है।  हाँ, सरकार को भी चौकस रहना चाहिए।  लेकिन जो लोग सत्ताधारी होते हैं, उनमें लापरवाह प्रवृत्ति रहती है, इसलिए मैं अपनी तरफ से इस सदन के माननीय सदस्यों की चौकसी का स्वागत करता हूँ, जिन्होंने सरकार की हर गलती, असफलता या कमी की तरफ हमारा ध्यान खींचा है।
   मैं आशा करता हूँ कि यहाँ की आलोचना अच्छी भावना से दोस्ती के तरीकों से की गई है और वह सरकार की ईमानदारी को चुनौती देती है।  हाँ, अगर सरकार की अच्छी भावना को भी चुनौती देने की इच्छा हो तो भी मैं उसमें विरोध नहीं करूँगा, बशर्ते, यह स्पष्ट हो कि यही चीज विचाराधीन है।  इस आलोचना को सुनते हुए या उसके बारे में पढ़ते हुए मुझे ऐसा लगा कि शायद हम लकड़ी की तुलना में पेड़ों की तरफ ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।  पिछले 18 महीनों में जो-कुछ हुआ है उस पर और भारत की सारी तस्वीर पर गौर नहीं कर रहे।  जहाँ तक आप निष्पक्ष रूप से देख सकते हैं अवश्य देखिए।