सभापति महोदय, एक विकलांग बच्चा क्षमताओं, योग्यताओं तथा अन्य
बातों में सामान्य बच्चों से कुछ भिन्न होता है। उसे अन्य लोगों से सहयोग की आवश्यकता होती
है। इस सहयोग की अपेक्षा सर्वप्रथम वह
अपने माता-पिता, आस-पास के वातावरण व समाज से करता है। इसलिए माता-पिता की जिम्मेदारी इस बच्चे के
प्रति कुछ ज्यादा हाती है। वह बच्चे के
प्रति अपनी हीन भावना व अपराध बोध को त्याग कर,
उससे एक सामान्य बालक की भाँति
अपेक्षाएँ न रखकर संयम के साथ सहज व्यवहार करें,
क्योंकि यही सहज व्यवहार बालक
के विकास व आत्मसम्मान की वृद्धि में सहायक सिद्ध होता है।
यदि परिवार में विकलांग बच्चा जन्म लेता है या
किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण से विकलांग हो जाता है, तो परिवार में एक मानसिक
तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
अभिभावकों का उसके पालन-पेाषण व भविष्य को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक
है। परंतु इस चिंता और मानसिक तनाव को किसी भी परिस्थिति में उस विकलांग बच्चे के
समक्ष प्रकट न करें, यथाशीघ्र चिकित्सक, परामर्शदाता, या कोई ऐसी संस्था जो उस विकलांगता से संबंधित
क्षेत्र में कार्यरत हो, से मिलकर उसके सहयोग से बच्चे के विकास व भविष्य निर्माण में
अपना योगदान दें, साथ ही साथ परिवार के अन्य सदस्यों को भी बच्चे के प्रति सहज
व्यवहार के लिए प्रेरित करें। इससे
विकलांग बच्चे में हीन भावना नहीं आएगी और थोड़ी-बहुत आ भी जाती है तो बालक को प्यार
व सहयोग से दैनिक कार्य सीखने के लिए प्रोत्साहित कर उसे धीरे-धीरे स्वावलंबी
बनाएँ। इससे उसके मन में उत्पन्न हीन भावना
स्वत: समाप्त हो जाएगी। उसमें अच्छी
आदतों के विकास के लिए जैसे अपने सामान को यथास्थान रखना, खेल के स्थान को
साफ-सुथरा रखना, नहाना, दाँत साफ करना आदि कार्य जो सामान्य बच्चे करते हैं, सिखाएँ और उसे ऐसा करने के
लिए प्रेरित करें, जिससे वह कार्य करने में रुचि ले।
विकलांग बालकों को सिखाते समय उपयुक्त सामग्री
अवश्य उपलब्ध हो, इससे बालक इन कामों को शीघ्र सीखता है। जैसे अगर हम उसे किसी जानवर के विषय में बता
रहे हैं तो हमें उस जानवर को या उसका चित्र बच्चे को दिखाना चाहिए। माता-पिता अपना खाली समय उसके साथ खेलने, बातचीत करने व नए-नए कार्य
सिखाने में व्यतीत करें।