यह खबर एक ही साथ डराने वाली भी है और
परेशान करने वाली भी कि वेस्ट नाइल वायरस के संक्रमण से केरल में एक बच्चे की मौत
हो गई। केरल में पिछले दिनों इस संक्रमण के कुछ मामले दर्ज हुए, मगर इसकी वजह से किसी की मौत की यह पहली खबर है। यहां इस बात
पर ध्यान दिया जाना जरूरी है कि सिर्फ दस प्रतिशत मामलों में ही वेस्ट नाइल वायरस
का संक्रमण किसी मरीज की मौत का कारण बनता है। अभी हम यह ठीक से नहीं जानते हैं कि
केरल का यह मामला उन्हीं दस प्रतिशत में से एक था या फिर उस बच्चे की मौत का कारण
ठीक से और समय रहते इलाज न हो पाना था। यहां हमें डेंगू के उदाहरण पर ध्यान देना
चाहिए।
आमतौर पर डेंगू को ऐसा रोग नहीं
माना जाता कि इसकी वजह से किसी की जान चली जाए। लेकिन भारत में यह ऐसे रोगों में
ही गिना जाने लगा है। डेंगू से संक्रमित व्यक्ति के रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या
काफी तेजी से कम होने लगती है। अगर संक्रमण को समय पर पहचान लिया जाए और रक्त में
प्लेटलेट्स की कमी पूरी कर दी जाए, तो रोगी
को बचाया जा सकता है। लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं के हर जगह पर सुलभ न हो पाने के
कारण हमारे देश में यह रोग अक्सर जानलेवा साबित होता है। संभव है कि यह कारण न भी
हो, लेकिन हमें स्वास्थ्य सुविधाओं को
सुलभ कराने के लिए सक्रिय तो होना ही होगा।
यहां डेंगू का जिक्र इसलिए भी जरूरी
है कि वेस्ट नाइल वायरस डेंगू परिवार का ही वायरस है और उसी तरह मच्छरों से फैलता
है। लेकिन वेस्ट नाइल वायरस का सबसे नजदीकी रिश्ता इंसेफ्लाइटिस से है, यानी उस रोग से, जिसकी
वजह से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ हिस्सों में हर साल कई बच्चों की जान
चली जाती है। वेस्ट नाइल वायरस का फैलना इसलिए भी चिंता का कारण होना चाहिए। लेकिन
यह खबर एक और कारण से परेशान करने वाली है। वेस्ट नाइल वायरस का संक्रमण एक पुराना
रोग है, दुनिया के कई हिस्सों में यह पिछली एक
सदी से भी ज्यादा समय से फैलता रहा है। लेकिन भारत इससे बचा रहा है। साल 1952 में हुए
एक शोध में पाया गया था कि भारतीयों के शरीर में इस वायरस से लड़ने वाली एंटीबॉडीज
पहले से ही मौजूद हैं, इसलिए यह
वायरस उनके शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाता। लेकिन अब अगर यह वायरस नुकसान पहुंचा
रहा है, तो इसके कारण पर शीघ्र ही शोध की
जरूरत होगी। कारण कुछ भी हो सकता है। यह भी हो सकता है कि इस वायरस ने अपने रूप
में ऐसा परिवर्तन या म्युटेशन कर लिया है कि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली बेमतलब हो
गई है, या फिर जिन लोगों को यह संक्रमण हुआ, उनमें यह प्रतिरक्षा तंत्र मौजूद नहीं था।
इस मौके पर कुछ और चीजें हैं, जिन पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। मच्छरों से होने वाले
संक्रमण पिछले कुछ समय में हमारे देश में बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। यहां तक कि उस
मलेरिया के मामले भी, जिसका एक
समय में हमने उन्मूलन का दावा कर दिया था। मलेरिया उन्मूलन से अब तक के अनुभवों ने
यह सिखा दिया है कि मच्छरों के खिलाफ लड़ाई कीटनाशकों के भरोसे नहीं जीती जा सकती।
अच्छा तरीका वही पुराना है कि जगह-जगह पानी के जमाव को रोका जाए, ताकि मच्छरों को पनपने का मौका ही न मिले। मच्छरों से मुक्ति
को स्वच्छ भारत मिशन जैसे कार्यक्रम में शामिल करने की जरूरत है।
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