अध्यक्ष महोदय, ग्राम
पंचायत स्तर पर भू-राजस्व ही आय का एक मात्र स्थायी साधन है और अगर यह पंचायतों
को मिलता है तो उन्हें अपना काम प्रारंभ करने के लिए प्रारंभिक अवस्था में ही
कुछ धनराशि मिल जाएगी। किसी भी राज्य के
कानून में इसकी व्यवस्था नहीं है। लेकिन
मध्य प्रदेश अधिनियम के अंतर्गत जारी किए गए आदेशों में इसकी व्यवस्था की गई
है। इससे पंचायतों के काम-काज में गति
आएगी। यह एक सकारात्मक बात है। बाजार से प्राप्त शुल्क पंचायतों को मिलता है
और अब भू-राजस्व भी उन्हें मिलेगा। मुख्यमंत्री
ने बताया कि जनपदों के पास कोई राजस्व नहीं है।
मेरा विचार है कि भू-राजस्व को आपस में बाँट लेना चाहिए। कुछ राजस्व का 60 प्रतिशत ग्राम पंचायत के पास
रह सकता है, 20 प्रतिशत
जनपद के पास और शेष प्रतिशत जिला पंचायत के पास दिया जा सकता है ।
हमें याद है कि
1989 में एक सर्वेक्षण किया गया था और यह देखा गया था कि राज्य में पंचायतों की
औसत प्रति व्यक्ति आय 60 पैसे थी। मेरे
विचार से उस समय से आज तक स्थितियों में कोई बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है। 60 पैसे की प्रति व्यक्ति आय से किसी पंचायत
को नहीं चलाया जा सकता। इसलिए धन का एक
बहुत बड़ा हिस्सा करों, अनुदानों और करों
की जिम्मेदारी के जरिये बाहर से लाना ही होगा।
मुझे आशा है कि राज्य वित्त आयोग इन पहलुओं पर ध्यान देगा और इसकी सिफारिशों
को स्वीकार करने से मामले में सरकार पर्याप्त रूप से अनुकूल रुख अपनाएगी।
वित्तीय संसाधनों
पर ध्यान दिया गया है और वर्तमान में जो भी व्यावहिारक है, किया गया है। फिर भी भूमि-कर को लेकर मेरे अंदर कुछ शंकाएँ
हैं। भूमि राजस्व और उपकर पहले से ही
मौजूद हैं। इनके अतिरिक्त जमीन पर लगने
वाले कुछ अन्य करों का भी प्रावधान तैयार किया गया है। राज्य सरकार द्वारा दो तरह के कर लागू किए जा
सकते हैं – उदाहरणार्थ प्रत्येक रुपये पर 50 पैसे का उपकर और एक प्रतिशत अतिरिक्त
स्टांप शुल्क। अधिनियम में करों के लिए
दो अनूसूचियाँ दी गई हैं। इनमें से एक
बाध्यकारी है और इसके अंतर्गत 6 मदे हैं।
दूसरी वैकल्पिक है और इसमें 14 मदे हैं।
इसके अतिरिक्त जमीन पर भी कर लगेंगे।
यह देखना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य होगा कि कर के बोझ को संबद्ध भूमि झेल
सकती है या नहीं।