Friday, 22 March 2019

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 7 June, 2019 at Youtube


       अध्‍यक्ष महोदय, ग्राम पंचायत स्‍तर पर भू-राजस्‍व ही आय का एक मात्र स्‍थायी साधन है और अगर यह पंचायतों को मिलता है तो उन्‍हें अपना काम प्रारंभ करने के लिए प्रारंभिक अवस्‍था में ही कुछ धनराशि मिल जाएगी।  किसी भी राज्‍य के कानून में इसकी व्‍यवस्‍था नहीं है।  लेकिन मध्‍य प्रदेश अधिनियम के अंतर्गत जारी किए गए आदेशों में इसकी व्‍यवस्‍था की गई है।  इससे पंचायतों के काम-काज में गति आएगी।  यह एक सकारात्‍मक बात है।  बाजार से प्राप्‍त शुल्‍क पंचायतों को मिलता है और अब भू-राजस्‍व भी उन्‍हें मिलेगा।  मुख्‍यमंत्री ने बताया कि जनपदों के पास कोई राजस्‍व नहीं है।  मेरा विचार है कि भू-राजस्‍व को आपस में बाँट लेना चाहिए।  कुछ राजस्‍व का 60 प्रतिशत ग्राम पंचायत के पास रह सकता है, 20 प्रतिशत जनपद के पास और शेष प्रतिशत जिला पंचायत के पास दिया जा सकता है ।
   हमें याद है कि 1989 में एक सर्वेक्षण किया गया था और यह देखा गया था कि राज्‍य में पंचायतों की औसत प्रति व्‍यक्ति आय 60 पैसे थी।  मेरे विचार से उस समय से आज तक स्थितियों में कोई बहुत ज्‍यादा परिवर्तन नहीं आया है।  60 पैसे की प्रति व्‍यक्ति आय से किसी पंचायत को नहीं चलाया जा सकता।  इसलिए धन का एक बहुत बड़ा हिस्‍सा करों, अनुदानों और करों की जिम्‍मेदारी के जरिये बाहर से लाना ही होगा।  मुझे आशा है कि राज्‍य वित्‍त आयोग इन पहलुओं पर ध्‍यान देगा और इसकी सिफारिशों को स्‍वीकार करने से मामले में सरकार पर्याप्‍त रूप से अनुकूल रुख अपनाएगी।
   वित्‍तीय संसाधनों पर ध्‍यान दिया गया है और वर्तमान में जो भी व्‍यावहिारक है, किया गया है।  फिर भी भूमि-कर को लेकर मेरे अंदर कुछ शंकाएँ हैं।  भूमि राजस्‍व और उपकर पहले से ही मौजूद हैं।  इनके अतिरिक्‍त जमीन पर लगने वाले कुछ अन्‍य करों का भी प्रावधान तैयार किया गया है।  राज्‍य सरकार द्वारा दो तरह के कर लागू किए जा सकते हैं – उदाहरणार्थ प्रत्‍येक रुपये पर 50 पैसे का उपकर और एक प्रतिशत अतिरिक्‍त स्‍टांप शुल्‍क।  अधिनियम में करों के लिए दो अनूसूचियाँ दी गई हैं।  इनमें से एक बाध्‍यकारी है और इसके अंतर्गत 6 मदे हैं।  दूसरी वैकल्पिक है और इसमें 14 मदे हैं।  इसके अतिरिक्‍त जमीन पर भी कर लगेंगे।  यह देखना आवश्‍यक ही नहीं अनिवार्य होगा कि कर के बोझ को संबद्ध भूमि झेल सकती है या नहीं।  

Shorthand Dictation (Hindi) Matter Published on 22 March, 2019 at Youtube


यह खबर एक ही साथ डराने वाली भी है और परेशान करने वाली भी कि वेस्ट नाइल वायरस के संक्रमण से केरल में एक बच्चे की मौत हो गई। केरल में पिछले दिनों इस संक्रमण के कुछ मामले दर्ज हुए, मगर इसकी वजह से किसी की मौत की यह पहली खबर है। यहां इस बात पर ध्यान दिया जाना जरूरी है कि सिर्फ दस प्रतिशत मामलों में ही वेस्ट नाइल वायरस का संक्रमण किसी मरीज की मौत का कारण बनता है। अभी हम यह ठीक से नहीं जानते हैं कि केरल का यह मामला उन्हीं दस प्रतिशत में से एक था या फिर उस बच्चे की मौत का कारण ठीक से और समय रहते इलाज न हो पाना था। यहां हमें डेंगू के उदाहरण पर ध्यान देना चाहिए। आमतौर पर डेंगू को ऐसा रोग नहीं माना जाता कि इसकी वजह से किसी की जान चली जाए। लेकिन भारत में यह ऐसे रोगों में ही गिना जाने लगा है। डेंगू से संक्रमित व्यक्ति के रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या काफी तेजी से कम होने लगती है। अगर संक्रमण को समय पर पहचान लिया जाए और रक्त में प्लेटलेट्स की कमी पूरी कर दी जाए, तो रोगी को बचाया जा सकता है। लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं के हर जगह पर सुलभ न हो पाने के कारण हमारे देश में यह रोग अक्सर जानलेवा साबित होता है। संभव है कि यह कारण न भी हो, लेकिन हमें स्वास्थ्य सुविधाओं को सुलभ कराने के लिए सक्रिय तो होना ही होगा।
यहां डेंगू का जिक्र इसलिए भी जरूरी है कि वेस्ट नाइल वायरस डेंगू परिवार का ही वायरस है और उसी तरह मच्छरों से फैलता है। लेकिन वेस्ट नाइल वायरस का सबसे नजदीकी रिश्ता इंसेफ्लाइटिस से है, यानी उस रोग से, जिसकी वजह से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ हिस्सों में हर साल कई बच्चों की जान चली जाती है। वेस्ट नाइल वायरस का फैलना इसलिए भी चिंता का कारण होना चाहिए। लेकिन यह खबर एक और कारण से परेशान करने वाली है। वेस्ट नाइल वायरस का संक्रमण एक पुराना रोग है, दुनिया के कई हिस्सों में यह पिछली एक सदी से भी ज्यादा समय से फैलता रहा है। लेकिन भारत इससे बचा रहा है। साल 1952 में हुए एक शोध में पाया गया था कि भारतीयों के शरीर में इस वायरस से लड़ने वाली एंटीबॉडीज पहले से ही मौजूद हैं, इसलिए यह वायरस उनके शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाता। लेकिन अब अगर यह वायरस नुकसान पहुंचा रहा है, तो इसके कारण पर शीघ्र ही शोध की जरूरत होगी। कारण कुछ भी हो सकता है। यह भी हो सकता है कि इस वायरस ने अपने रूप में ऐसा परिवर्तन या म्युटेशन कर लिया है कि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली बेमतलब हो गई है, या फिर जिन लोगों को यह संक्रमण हुआ, उनमें यह प्रतिरक्षा तंत्र मौजूद नहीं था।
इस मौके पर कुछ और चीजें हैं, जिन पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। मच्छरों से होने वाले संक्रमण पिछले कुछ समय में हमारे देश में बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। यहां तक कि उस मलेरिया के मामले भी, जिसका एक समय में हमने उन्मूलन का दावा कर दिया था। मलेरिया उन्मूलन से अब तक के अनुभवों ने यह सिखा दिया है कि मच्छरों के खिलाफ लड़ाई कीटनाशकों के भरोसे नहीं जीती जा सकती। अच्छा तरीका वही पुराना है कि जगह-जगह पानी के जमाव को रोका जाए, ताकि मच्छरों को पनपने का मौका ही न मिले। मच्छरों से मुक्ति को स्वच्छ भारत मिशन जैसे कार्यक्रम में शामिल करने की जरूरत है।