तीन दिन
बाद दंतेवाड़ा में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है, दीपावली के ठीक अगले दिन माओवादियों की बारूदी सुरंग ने जिस
तरह चुनाव ड्यूटी पर लगे एक वाहन को उड़ाया, वह बताता
है कि वहां कर्मचारी किस तरह जान जोखिम में डालकर चुनाव प्रक्रिया संपन्न कराने
में लगे हैं। इस हमले में वाहन के परखचे उड़ गए और सुरक्षा बलों के जवानों समेत
उसमें बैठे कई लोगों को जान गंवानी पड़ी। अभी कुछ ही दिनों पहले इसी क्षेत्र में
चुनाव की रिपोर्टिंग करने गए मीडियाकर्मियों पर माओवादियों ने घात लगाकर हमला बोला
था और इस हमले में एक पत्रकार की जान भी चली गई थी। ऐसा नहीं है कि खतरा सिर्फ
चुनाव कार्य में लगे लोगों, सुरक्षा
बलों या फिर चुनाव कवरेज के लिए गए लोगों पर ही मंडरा रहा है। खतरा चुनाव लड़ रहे
या चुनाव प्रचार में लगे राजनीतिक दलों के लोगों पर भी है और सबसे बड़ी बात है कि
खतरा उन आम लोगों पर भी है, जो तीन
दिन बाद मतदान के लिए पोलिंग बूथों पर जाएंगे। माओवादियों ने पूरे क्षेत्र में
चुनाव के बहिष्कार की अपील की है। इसके लिए उन्होंने परचे भी बांटे और पोस्टर भी
लगाए हैं। माओवादियों की दिक्कत यह है कि ऐसा वे हर चुनाव में करते हैं और इसके
बावजूद लोग वहां भारी संख्या में मतदान के लिए जाते हैं। ऐसे में, उनके सामने एक ही चारा बचता है कि वे आतंक पैदा करें, ताकि लोग मतदान के लिए घरों से निकलने में डरें। विस्फोट और
हिंसा की ताजा घटनाएं माओवादियों की इसी हताशा का नतीजा है।
समस्या
किस तरह की है, इसे चुनाव आयोग भी अच्छी तरह
समझ रहा है और सरकारें भी। इसीलिए छत्तीसगढ़ में पहले दौर के मतदान के लिए सुरक्षा
बलों के 65 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती की गई है। माओवाद विरोधी
अभियान के लिए इस क्षेत्र में केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान पहले से ही मौजूद
हैं। पहले दौर के लिए जिन 18 सीटों पर
12 नवंबर को मतदान होना है, वे सब
माओवाद प्रभावित क्षेत्र में ही हैं। इस पूरे क्षेत्र में सुरक्षा बलों की
उपस्थिति काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि
सुरक्षा बलों की मौजूदगी से आश्वस्त होकर ही लोग घरों से निकलते हैं और मतदान के
लिए जाते हैं। इसके अलावा, इन बलों
के जवान राजनीतिज्ञों और कार्यकर्ताओं को भी सुरक्षा देते हैं और मीडियाकर्मियों
को भी। इसीलिए आतंकवादी इस क्षेत्र में सुरक्षा बलों को ही सबसे पहले निशाना बनाते
हैं।
यह लगभग
तय है कि माओवादी इस बार भी मुंह की खाएंगे। हर बार की तरह इस बार भी लोग बड़ी
संख्या में वोट देने निकलेंगे और अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट देंगे। एक बार फिर
जनमत उन बंदूकों को मात देगा, जो उन
लोगों के ही खिलाफ खड़ी हैं, जिनकी
लड़ाई लड़ने की बात नक्सली करते हैं। लोकतंत्र के साथ जंग में उनकी बंदूकें, उनकी बारूदी सुरंगें भले ही कुछ लोगों की जान ले रही हों, लेकिन वे लगातार हार रही हैं। देश के दूर-दराज के इलाकों में
बच गया माओवाद अब कोई विचारधारा नहीं, एक जिद
भर है। लोगों की जान लेने वाली जिद को ही आतंकवाद कहा जाता है। एक जिद का मुकाबला
एक कड़े संकल्प से ही हो सकता है। इस आतंकवादी जिद को जड़ से उखाड़ने का संकल्प लेने
का समय आ गया है। इसके दो ही रास्ते हैं, एक तो
लगातार कड़ी कार्रवाई और दूसरे, लगातार
ऐसा विकास, जिसका लाभ सभी तक पहुंचे।
माओवादी इसीलिए विकास का भी विरोध करते हैं।
Recording kha h sir
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